क्या उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को उनके पद से हटा पाएगा विपक्ष, क्या कहते हैं कायदे-कानून
नई दिल्ली:
विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ ने जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद से हटाने के लिए प्रस्ताव लाने संबंधी नोटिस मंगलवार को सौंपा.आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने संसद परिसर में इसकी जानकारी दी. उन्होंने बताया कि करीब 60 सांसदों के हस्ताक्षर वाला नोटिस राज्यसभा सभापति के सचिवालय को दिया गया है. इसकी जानकारी कांग्रेस मीडिया सेल के प्रभारी और राज्य सभा सांसद जयराम रमेश ने भी दी. उन्होंने ट्वीटर पर लिखा इंडिया की पार्टियों के लिए यह बेहद ही कष्टकारी निर्णय रहा है, लेकिन संसदीय लोकतंत्र के हित में यह अभूतपूर्व कदम उठाना पड़ा है.यह प्रस्ताव अभी राज्यसभा के सेक्रेटरी जनरल को सौंपा गया है.आइए जानते हैं कि किस प्रक्रिया के जरिए उपराष्ट्रपति को उनके पद से हटाया जा सकता है. उपराष्ट्रपति ही राष्ट्रपति का सभापति होता है.राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और कांग्रेस के दूसरे सदस्यों ने सोमवार को सभापति जगदीप धनखड़ पर राज्यसभा की कार्यवाही में पक्षपात करने का आरोप लगाया था. भारतीय संसद के इतिहास में यह पहला मौका है, जबकि राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है.
राज्य सभा और उपराष्ट्रपति का संबंध
उपराष्ट्रपति, राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं. संसद के उच्च सदन को नियमों और परंपराओं के आधार पर सुचारू रूप से चलाने की जिम्मेदारी सभापति पर होती है.उन्हें राज्यसभा के सभापति पद से तभी हटाया जा सकता है, जब उन्हें भारत के उपराष्ट्रपति के पद से हटा दिया जाए.
संविधान के अनुच्छेद 67 में उपराष्ट्रपति की नियुक्ति और उन्हें पद से हटाने से जुड़े प्रावधान हैं. संविधान के अनुच्छेद 67(बी) में कहा गया है, ”उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के एक प्रस्ताव, जो सभी सदस्यों के बहुमत से पारित किया गया हो और लोकसभा द्वारा सहमति दी गई हो, के जरिये उनके पद से हटाया जा सकता है.लेकिन कोई प्रस्ताव तब तक पेश नहीं किया जाएगा, जब तक कम से कम 14 दिनों का नोटिस नहीं दिया गया हो, जिसमें यह बताया गया हो ऐसा प्रस्ताव लाने का इरादा है.” इसके अलावा इस प्रस्ताव के राज्य सभा में पारित हो जाने के बाद उसे लोकसभा में भी पारित कराना होगा. इस प्रस्ताव को लाने के लिए कम से कम 50 सांसदों के दस्तखत जरूरी है.
उपराष्ट्रपति को हटाने के नियम
- उपराष्ट्रपति को उनके पद से हटाने का प्रस्ताव केवल राज्यसभा में ही पेश किया जा सकता है. लोकसभा में नहीं.
- इसके लिए 14 दिन पहले नोटिस देना पड़ता है. इसके बाद ही प्रस्ताव पेश किया जा सकता है.
- राज्य सभा में यह प्रस्ताव उपस्थित सदस्यों में बहुमत के आधार पर पारित होगा.राज्य सभा में इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद उसे लोकसभा में साधारण बहुमत से पारित कराना पड़ेगा.
- जब प्रस्ताव विचाराधीन हो तो सभापति सदन की अध्यक्षता नहीं कर सकते.
- प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान सदन की अध्यक्षता उपसभापति करेंगे. हालांकि इसको लेकर कानून में स्पष्ठता नहीं है.
- प्रस्ताव पर मतदान के दौरान पक्ष और विरोध में बराबर मत मिलने की स्थिति में सभापति के पास मतदान का अधिकार नहीं होता है.
प्रस्ताव पास कराना विपक्ष के लिए क्यों मुश्किल है
इंडिया गठबंधन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ प्रस्ताव लाया तो है, लेकिन उसके पास संख्या बल नहीं है. इसके अलावा उसने प्रस्ताव लाने से 14 दिन पहले नोटिस देने की प्रक्रिया का पालन नहीं किया है. शीतकालीन सत्र 20 दिसंबर को खत्म हो रहा है.राज्य सभा में विपक्ष के पास कुछ 103 सीटें ही हैं. ऐसे में वह प्रस्ताव पारित करने के लिए जरूरी 126 का आंकड़ा जुटा पाएगा, इस पर संदेह है.ऐसे में विपक्ष का यह प्रस्ताव केवल रणनीतिक ही बनकर रह जाएगा.
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव पर समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस ने भी दस्तखत किए हैं. ये दोनों दल संसद भवन परिसर में कांग्रेस के नेतृत्व में हो रहे प्रदर्शनों से खुद को अलग रखा हुआ है. इन दोनों दलों के भी जगदीप धनखड़ से संबंध ठीक नहीं रहे हैं. राज्यसभा के सभापति टीएमसी सांसद डेरेक ओब्रायन और सागरिका घोष समेत कई सांसदों को डांट चुके हैं. जगदीप धनखड़ के खिलाफ प्रस्ताव लाने के पीछे विपक्ष का सबसे बड़ा तर्क है कि वह राज्यसक्षा में पक्षपातपूर्ण रवैया अपना रहे हैं. ऐसे आरोप उनपर पिछले कुछ समय से लग रहे हैं. जॉर्ज सोरोस से जुड़े मुद्दे पर उनकी भूमिका से समूचा विपक्ष बुरी तरह नाराज है. इस मुद्दे ने विपक्ष को एकजुट कर दिया है.सोरोस मुद्दे पर राज्यसभा में बुरी तरह हंगामा हुआ.इस साल अगस्त में विपक्ष ने उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की तैयारी की थी. लेकिन किसी कारणवश वो ऐसा नहीं कर पाया था.
क्या इससे पहले भी आया है प्रस्ताव
भारत में उपराष्ट्रपति को हटाने के लिए कभी भी प्रस्ताव नहीं लाया गया है. जबकि 1963 के बाद से कई प्रधानमंत्रियों के खिलाफ 31 अविस्वास प्रस्ताव पेश किए गए हैं.इनमें से तीन प्रस्ताव पारित हुए हैं.इससे विश्वनाथ प्रताप सिंह, एचडी देवेगौड़ा और अटल बिहारी वाजपेयी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
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