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Year End Special 2023: वसुंधरा-गहलोत युग समाप्त, साल 2023 से राजस्थान की राजनीति का नया दौर हुआ शुरू

गौरतलब है पूर्व राजस्थान सीएम गहलोत और पूर्व सीएम वसुंधरा दोनों के नाम विधानसभा चुनाव नहीं हारने का रिकॉर्ड हैं. पांच साल के अंतराल में पार्टियां हारती-जीतती रही, लेकिन दोनों नेता अपनी सीट कभी नहीं हारे. वर्तमान में भी दोनों का अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र मे जलवा ज्यों का त्यों बरकरार है.

सरदारपुरा और झालरापाट सीट पर जलवा कायम

2023 विधानसभा चुनाव में अशोक गहलोत सरदारपुरा सीट और वसुंधरा राजे झालरापाटन सीट से फिर चुनाव जीते. कह सकते हैं कि वर्ष 1999 से अशोक गहलोत का जलवा विधानसभा चुनाव में सरदारपुरा में और वर्ष 2003 से वसुंधरा झालरापाटन में जलवा बरकरार है, लेकिन अब उनके प्रदेश की राजनीति में लौटने पर प्रश्नचिह्न लग गया है. 

इसमें कोई दो राय नहीं है कि राजस्थान की राजनीति में पूर्व सीएम अशोक गहलोत और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे दो ऐसे कद्दावर नेता हैं, जिनकी धुरी पर पिछले करीब ढाई दशक से सूबे की सियासत चलती आई है और इस चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियां इनका तोड़ नहीं निकाल सकीं.

गहलोत के चौथी बार सीएम बनने को लेकर आशंका थी

2023 में अगर कांग्रेस चुनाव जीतती, तब भी अशोक गहलोत के चौथी बार सीएम बनने को लेकर आशंका थी. ठीक ऐसी ही संभावना वसुंधरा राजे के साथ भी हुआ. वसुंधरा की पार्टी चुनाव में जीती, सारे दवाबों के बावजूद पार्टी ने उन्हें सीएम नहीं बनाया. वसुंधरा एक ज़िद्दी नेता हैं, जो शीर्ष नेतृत्व पर दबाव बनाने में माहिर हैं, लेकिन मोदी युग में उनकी एक नहीं चली. 

वसुंधरा-गहलोत के सामने बिना लड़े हार जाते हैं उम्मीदवार

पिछले 20 सालों का रिकॉर्ड खंगालेंगे तो पाएं कि दोनों की परंपरागत सीट पर अक्सर पार्टियां को कमज़ोर कैंडिडेट ही खड़ा करना पड़ता है, क्योंकि दोनों के आगे दूसरे प्रत्याशियों का चेहरा फीका पड़ जाता है. यह परंपरा 2023 विधानसभा में भी कायम रहा और दोनों दिग्गज नेता आसानी से अपनी सीट पर चुनाव जीत गए.

राजस्थान कांग्रेस में जैसी हैसियत अशोक गहलोत की है, वैसी ही शख्सियत राजस्थान भाजपा में वसुंधरा राजे की है. सुग्रीव के भाई बालि के समान दोनों के खिलाफ खड़े दूसरे प्रत्याशियों की ताकत आधी पड़ जाती है

प्रदेश में गहलोत के सामने कोई पनप नहीं सका

राजस्थान कांग्रेस में अशोक गहलोत ऐसे नेता के रूप में शुमार थे, जिनके सामने दूसरा नेता कभी पनप नहीं सका. 2018 में सचिन पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस ने जीत दर्ज की, फिर भी पार्टी पायलट को सीएम नहीं बना पाई. पायलट को डिप्टी सीएम से संतोष करना पड़ा. अंततः टकराव इतना बढ़ा को पायलट को डिप्टी सीएम पद भी छोड़ना. पायलट सड़कों पर उतरे फिर भी गहलोत का कुछ नहीं बिगाड़ पाए. 

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गांधीवादी छवि, सादगी, सहज उपलब्धता और क्षेत्र में बड़े स्तर पर विकास कार्यों के कारण गहलोत लगातार चुनाव जीतते रहे हैं. क्षेत्र के लोगों को पता है कि उनका विधायक सीएम बनता है या विपक्ष में भी बैठकर सारे काम करवा लेता है.

नहीं मिला वसुंधरा-गहलोत को टक्कर देने वाला

यह सिलसिला पिछले 25 सालों से चला आ रहा है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों को सीएम अशोक गहलोत के सामने जोधपुर की सरदारपुरा सीट और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के सामने झालावाड़ की झालरापाटन सीट पर टक्कर देने वाला नेता अब तक नहीं मिला है. दोनों ने एक बार फिर बड़ी जीत दर्ज कर पार्टी आलाकमान बगले झांकने के लिए मजबूर कर दिया.

दो दशक से गहलोत-वसुंधरा का जलवा बरकरार

तीन बार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी सरकार की योजनाओं, 10 गारंटियों और विजन 2030 डॉक्यूमेंट के दम पर फिर से चौथी बार सीएम बनने की कवायद में जुटे थे, पार्टी हार गई, लेकिन गहलोत नहीं हारे. जबकि दो बार की पूर्व सीएम रह चुकीं वसुंधरा विपरीत परिस्थितियों के बाद भी झालरापाटन में फिर विजेता बनकर उभरीं.

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2023 विधानसभा चुनाव ने पार्टी आलाकमान इस बार मोदी के चेहरे और कमल फूल के निशान पर चुनाव लड़ी थी, पार्टी जीती तो आलाकमान ने वसुंधरा के हाथों ही भजनलाल शर्मा के नाम का प्रस्ताव करवा दिया.  

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राजस्थान में परिपाटी रही है कि एक बार कांग्रेस और दूसरी बार एंटी एंकम्बेंसी के बूते बीजेपी के पास सत्ता चली जाती है.  जनता ने इस बार भी द्विदलीय व्यवस्था के आधार पर पांच साल राज कर चुकी कांग्रेस को सत्ता से उतार भाजपा को बैठाया है. यह सिलसिला पिछले 35 सालों बदस्तूर कायम है.

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2023 चुनाव मोदी के चेहरे और कमल फूल पर जीती भाजपा

2023 विधानसभा चुनाव में आंतरिक गुटबाजी से संभावित नुकसान से सत्ता को बचाने के लिए बीजेपी राजस्थान में मोदी के चेहरे और कमल निशान पर चुनाव में उतरी थी. भले ही एक तरफ मोदी का चेहरा और कमल का फूल था, लेकिन स्थानीय नेतृत्व और सीएम फेस के आंतरिक डिमांड को पार्टी इग्नोर नहीं करना चाहती थी, जिसके बिना चुनाव में जीत मुश्किल था.

राजपरिवार की बहू होने के बावजूद जनता में करिश्माई पकड़

पूर्व सीएम वसुंधरा राजे भी रॉयल सिन्धिया परिवार की बेटी और धौलपुर के राजपरिवार की बहू होने के बावजूद जनता में भरोसे, मजबूत पकड़ अपने क्षेत्र में जनसुनवाई और विकास कार्यों के दम पर चुनाव जीतती आ रही हैं. सीएम गहलोत और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे 6-6 बार विधायक और 5-5 बार सांसद भी रह चुके हैं.  

2023  विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को झालरापाटन में वसुंधरा राजे और बीजेपी को सरदारपुरा सीट पर अशोक गहलोत को दमदार उम्मीदवार नहीं मिला और दोनों की बादशाहत एक बार फिर कायम रही.
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हर बार जीती बाजी,  सियासी जोड़-तोड़ में माहिर हैं जादूगर

सूबे में बहुत से मंत्री और विधायक चुनाव हार जाते हैं, लेकिन सीएम गहलोत और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे अपनी सीटों सरदारपुरा और झालरापाटन से हर बार जीतकर आते हैं. साल 2003 से लेकर अब तक 20 साल का रिकॉर्ड ये बताता है.  गहलोत सियासी जोड़-तोड़ कर संख्या बल लाने में माहिर हैं.

झालरापाटन सीट पर अविजित रहीं वसुंधरा राजे

साल 2018 में मानवेंद्र सिंह जसोल को कांग्रेस ने झालरापाटन से टिकट देकर वसुंधरा को कड़ी चुनौती देने की सोची थी, लेकिन महारानी के सामने वो टिक नहीं पाए. इस चुनाव में भी वसुंधरा ने कांग्रेस उम्मीदवार रामलाल को चारो खाने चित्त कर दिया और फिर साबित किया कि उनके गढ़ में उन्हें कोई हरा नहीं सकता. इससे पहले सचिन पायलट की माताजी रमा पायलट ने भी 2003 में झालरापाटन से चुनाव लड़ा था, लेकिन रमा पायलट को भी वसुंधरा से हार का मुंह देखना पड़ा था. 

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सरदारपुरा सीट पर छठीं बार अजेय रहे अशोक गहलोत 

अशोक गहलोत ने 2003 विधानसभा चुनाव में बीजेपी के महेंद्र झाबक को 24000 वोटों के अंतर से हराया था. 2008 में बीजेपी के राजेंद्र गहलोत को 16000 वोटो से हराया था और 2013 और 2018 में शंभू सिंह खेतासर को 18000 वोटों से हराया था. 2023 में अशोक गहलोत ने छठी बार जीत दर्ज की. उन्होंने भाजपा उम्मीदवार महेंद्र राठौड़ को भारी मतों से हराकर साबित कर दिया कि उनमें अभी दम बाकी है. 

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