2024 रहेगा सबसे गर्म साल? आखिर धरती का माथा इतना क्यों तप रहा है?
नई दिल्ली:
नवंबर लगभग आधा बीत चुका है और पंखे चल रहे हैं. पसीने छूट रहे हैं. दिल्ली ही नहीं यह हाल सभी शहरों का है. पहाड़ों पर भी वैसी ठंड नहीं है, जैसी कभी पड़ा करती थी. आखिर कुदरत को क्यों ‘बुखार’ चढ़ा हुआ है! दरअसल धरती को यह बुखार अल नीनो की वजह से चढ़ा है. वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन (WMO) की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2024 अब तक का सबसे गर्म साल रह सकता है. कुछ दिन पहले यूरोप की जलवायु एजेंसी ने भी ठीक यही अनुमान जाहिर किया है.
लंबित मुद्दों का तत्काल हल निकालें देश
इस वर्ष के संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के मेजबान अजरबैजान ने सोमवार को सभी देशों से लंबित मुद्दों को तत्काल हल करने का आह्वान किया, ताकि एक नए जलवायु वित्त पोषण लक्ष्य पर सहमति बन सके. संयुक्त राष्ट्र जलवायु प्रमुख ने कहा कि यह सहमति पूरी तरह से प्रत्येक देश के हित में है. अजरबैजान की राजधानी बाकू में आयोजित हो रहे सीओपी29 की वार्ता की प्राथमिकता नया जलवायु वित्त पैकेज है, जिसे नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य भी कहा जाता है. ऐतिहासिक प्रदूषकों को एक ऐसा पैकेज देना होगा जो महत्वाकांक्षी, पूर्वानुमानित, समयबद्ध, विश्वसनीय हो तथा ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों के लिए ऋण के रूप में नहीं बल्कि अनुदान के रूप में दिया जाए. ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का इस्तेमाल आमतौर पर आर्थिक रूप से कम विकसित देशों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है.
उत्सर्जन में तेजी से कटौती नहीं की तो बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन कार्यकारी सचिव साइमन स्टील ने उद्घाटन सत्र के दौरान कहा कि अगर दुनिया के कम से कम दो तिहाई देश उत्सर्जन में तेजी से कटौती नहीं कर सकते, तो हर देश को इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी. अगर देश आपूर्ति शृंखलाओं में लचीलापन नहीं ला पाते, तो पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था घुटनों पर आ जाएगी. कोई भी देश इससे अछूता नहीं है इसलिए आइए इस विचार को त्याग दें कि जलवायु वित्त दान है. एक महत्वाकांक्षी नया जलवायु वित्त लक्ष्य पूरी तरह से हर देश के हित में है. उन्होंने कहा कि सिर्फ नए जलवायु वित्तपोषण लक्ष्य पर सहमति जताना ही पर्याप्त नहीं है तथा देशों को वैश्विक वित्तीय प्रणाली में सुधार के लिए और अधिक मेहनत करनी होगी. विकासशील देश जलवायु वित्तपोषण को अधिक सुलभ, किफायती और निष्पक्ष बनाने के लिए वैश्विक वित्तीय प्रणाली में सुधार की मांग कर रहे हैं. वर्तमान प्रणाली में अक्सर उन्हें जलवायु परियोजनाओं के लिए ऋण लेना पड़ता है या उच्च ब्याज दर का भुगतान करना पड़ता है, जिससे उनकी अर्थव्यवस्था पर दबाव पड़ता है.
वर्तमान नीतियां विश्न को तीन डिग्री सेल्सियम तापमान वृद्धि की ओर ले जा रहीं
सीओपी29 के अध्यक्ष मुख्तार बाबायेव ने कहा कि वर्तमान नीतियां विश्व को तीन डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि की ओर ले जा रही हैं, जो अरबों लोगों के लिए विनाशकारी होगा. उन्होंने कहा कि सीओपी29 अध्यक्ष की सर्वोच्च प्राथमिकता एक निष्पक्ष और महत्वाकांक्षी नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (एनसीक्यूजी) या नए जलवायु वित्त लक्ष्य पर आम सहमति बनाना है, जो 2009 में सहमत 100 अरब अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष के पिछले लक्ष्य का स्थान लेगा. बाबायेव ने इस बात पर जोर दिया कि समस्या के पैमाने और तात्कालिकता को संबोधित करने के लिए एनसीक्यूजी प्रभावी और पर्याप्त होना चाहिए. बातचीत में कुछ प्रगति हुई है, लेकिन अभी बहुत काम बाकी है, करार को अंतिम रूप देने में सिर्फ 12 दिन बचे हैं. उन्होंने कहा कि अब देशों को तत्काल मुद्दों को अंतिम रूप देने, योगदानकर्ताओं और मात्रा पर अपने मतभेदों को सुलझाने और नया लक्ष्य निर्धारित करने की आवश्यकता है. विकासशील देशों का तर्क है कि 2009 में सहमत हुए 100 अरब अमेरिकी डॉलर के जलवायु वित्त लक्ष्य के विपरीत, एनसीक्यूजी को उनकी “आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं” का समाधान करना चाहिए.
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए हजारों अरब डॉलर की आवश्यकता
अनुमान बताते हैं कि विकासशील और गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आने वाले वर्षों में हजारों अरब डॉलर की आवश्यकता होगी. ‘ग्लोबल साउथ’ के वार्ताकारों में, समान विचारधारा वाले विकासशील देशों (एलएमडीसी) समूह ने सुझाव दिया है कि प्रति वर्ष एक हजार अरब अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है, अरब समूह ने 1.1 हजार अरब अमेरिकी डॉलर, अफ्रीकी समूह ने 1.3 हजार अरब अमेरिकी डॉलर, भारत ने एक हजार अरब अमेरिकी डॉलर तथा पाकिस्तान ने दो हजार अरब अमेरिकी डॉलर की मांग की है.
संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन से पहले आई रिपोर्ट
यूरोपीय जलवायु परिवर्तन एजेंसी ‘कॉपरनिकस’ ने कहा कि यह लगभग तय है कि साल 2024 अब तक का सबसे गर्म साल होगा और औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में कम से कम 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक रहेगा. यूरोपीय जलवायु एजेंसी ने बताया कि ऐसा दूसरा साल है जब इतिहास में अक्टूबर का महीना सबसे गर्म रहा है. शिखर सम्मेलन में देशों से जलवायु संबंधी नए वित्तीय सहायता समझौते पर सहमत होने की उम्मीद है, जिसे विकसित देशों को 2025 से विकासशील देशों को देना होगा ताकि उन्हें जलवायु परिवर्तन से निपटने और अनुकूलन में मदद मिल सके.
कॉपरनिकस के निदेशक ने कही ये बात
कॉपरनिकस के निदेशक कार्लो बुओनटेंपो ने हाल ही में कहा, “मैं समझता हूं कि तापमान में निरंतर वृद्धि चिंताजनक है.” बुओनटेंपो ने कहा कि आंकड़े स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि अगर वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की निरंतर वृद्धि के कारण ग्लोबल वार्मिंग नहीं होती, तो धरती पर रिकॉर्ड तोड़ तापमान का इतना लंबा क्रम देखने को नहीं मिलता. बुओनटेंपो और अन्य वैज्ञानिकों का कहना है कि तापमान में लंबे समय तक उतार-चढ़ाव का यह सिलसिला एक बुरा संकेत है.
उप निदेशक सामंथा बर्गेस ने भी जताई चिंता
कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) की उप निदेशक सामंथा बर्गेस ने भी बताया था कि, “2024 के 10 महीने बीतने के बाद अब यह लगभग तय है कि 2024 रिकॉर्ड पर सबसे गर्म वर्ष होगा. यह पूर्व-औद्योगिक काल के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान वाला पहला वर्ष होगा. यह वैश्विक तापमान रिकॉर्ड में एक नया मील का पत्थर है, जो आगामी जलवायु परिवर्तन सम्मेलन ‘सीओपी29’ में जलवायु संबंधी लक्ष्य को पाने की महत्वाकांक्षा बढ़ाने के लिए उत्प्रेरक के रूप में काम करना चाहिए.”
2023 के बाद इस साल भी अक्टूबर सबसे गर्म महीना रहा
सी3एस के वैज्ञानिकों ने कहा कि 2023 के बाद इस साल भी अक्टूबर वैश्विक स्तर पर दूसरा सबसे गर्म महीना रहा, जब औसत सतही वायु तापमान 15.25 डिग्री सेल्सियस रहा, जो 1991-2020 के दौरान अक्टूबर के महीने में औसत तापमान से 0.80 डिग्री सेल्सियस अधिक था. उन्होंने कहा कि 2023 का तापमान पूर्व-औद्योगिक काल के स्तर से 1.48 डिग्री सेल्सियस अधिक है, इसलिए यह भी लगभग निश्चित है कि 2024 का वार्षिक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक होगा और इसके 1.55 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने की संभावना है.
भारत मौसम विभाग ने नवंबर के और गर्म रहने की संभावना जताई
पेरिस में 2015 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में विश्व नेताओं ने जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए वैश्विक औसत तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की प्रतिबद्धता जताई थी. सी3एस ने कहा कि यूरोप, उत्तरी कनाडा में तापमान औसत से अधिक था तथा मध्य और पश्चिमी अमेरिका, उत्तरी तिब्बत, जापान और ऑस्ट्रेलिया में तापमान औसत से काफी अधिक था. भारत में 1901 के बाद से अक्टूबर सबसे गर्म महीना रहा, जिसमें औसत तापमान सामान्य से 1.23 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया. भारत मौसम विज्ञान विभाग ने नवंबर के और गर्म होने का अनुमान जताया है. (इनपुट भाषा से भी)