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आठवें वेतन आयोग से बेसिक सैलरी 3 गुना बढ़ जाएगी! सरकारी कर्मचारियों के मन में क्यों फूट रहे लड्डू?

8th Pay Commission: केंद्र सरकार के कर्मचारियों के मन में लड्डू फूट रहे हैं. कइयों ने तो घर, कार आदि लेने की प्लानिंग भी शुरू कर दी है. आप सोच रहे होंगे कि अचानक ऐसा क्या हो गया. दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बृहस्पतिवार को केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन और पेंशनभोगियों के भत्तों में संशोधन के लिए आठवें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दे दी. सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया, ‘‘प्रधानमंत्री ने केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए आठवें केंद्रीय वेतन आयोग को मंजूरी दे दी है. आयोग के चेयरमैन और दो सदस्यों की नियुक्ति जल्द की जाएगी.” मंत्री ने कहा कि 2025 में नये वेतन आयोग के गठन की प्रक्रिया शुरू होने से यह सुनिश्चित होगा कि सातवें वेतन आयोग का कार्यकाल पूरा होने से पहले इसकी सिफारिशें प्राप्त हो जाएं और उसकी समीक्षा की जा सके.

सूत्रों ने बताया कि इस कदम से रक्षा क्षेत्र में काम कर रहे कर्मचारियों सहित केंद्र सरकार के लगभग 50 लाख कर्मियों को लाभ होगा. साथ ही लगभग 65 लाख पेंशनधारकों की पेंशन में भी बढ़ोतरी होगी. इससे अकेले दिल्ली में लगभग चार लाख कर्मचारियों को लाभ होगा. इनमें रक्षा और दिल्ली सरकार के कर्मचारी शामिल हैं. सूत्रों ने कहा कि आमतौर पर, दिल्ली सरकार के कर्मचारियों के वेतन में केंद्रीय वेतन आयोग के साथ वृद्धि होती है. 

फिटमेंट वाला फॉर्म्युला क्या है?

सातवें वेतन आयोग फिटमेंट फैक्टर 2.57  था. इससे बेसिक सैलरी 7 हजार से बढ़कर 17,990 तय हुई थी. अगर इसी फॉर्म्युला को आधार माना जाता है तो 8वें वेतन आयोग में फिटमेंट फैक्टर की अधिकतम रेंज के तहत न्यूनतम सैलरी 26, 000 रुपये हो जाएगी.  कर्मचारी यूनियन और बाकी संगठन आठवें वेतन आयोग में इसे 2.86 से 3 के बीच रखने की मांग कर रहे हैं. यह मांग मानी गई तो सैलरी में 180% बढ़ोतरी होगी. रिपोर्ट्स के अनुसार, आठवें वेतन आयोग में न्यूनतम आधार वेतन को बढ़ाकर 34,650 रुपये किया जा सकता है, जो कि सातवें वेतन आयोग में 17,990 रुपये है. वहीं, पेंशन को 9,000 रुपये से बढ़ाकर 17,280 रुपये किया जा सकता है. हालांकि, ये सिर्फ संभावना है. 

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फिटमेंट फैक्टर वह गुणांक है, जिसके जरिए सैलरी (Salary) और पेंशन (Pension) में संशोधन किया जाता है. 7वें वेतन आयोग (7th Pay Commission) ने 2.57 का फिटमेंट फैक्टर सुझाया था, जिससे न्यूनतम वेतन ₹7,000 से बढ़कर ₹17,990 हो गया था. अब 8वें वेतन आयोग (8th Pay Commission) में फिटमेंट फैक्टर कितना रखा जाएगा ये देखना होगा. वेतन आयोग के चेयरमैन 2026 तक अपनी सिफारिशें पेश करेंगे. उसमें ही इस बात का पता चल सकेगा. सातवें वेतन आयोग का गठन 2014 में किया गया था और इसकी सिफारिशें एक जनवरी, 2016 से लागू हुई थीं. इसकी अवधि 2026 में समाप्त हो रही है.

कितने साल पर होता है बदलाव?

आमतौर पर, हर 10 साल में केंद्र सरकार अपने कर्मचारियों के वेतन को संशोधित करने के लिए वेतन आयोग का गठन करती है. 1947 के बाद से सात वेतन आयोग का गठन किया गया है. वेतन आयोग सरकार को सिफारिशें देने से पहले केंद्र और राज्य सरकारों और अन्य संबंधित पक्षों के साथ व्यापक परामर्श करता है. सरकारी कर्मचारियों के लिए वेतन संरचना, लाभ और भत्ते तय करने में वेतन आयोग की महत्वपूर्ण भूमिका है. राज्य सरकारों के स्वामित्व में आने वाली ज्यादातर इकाइयां आयोग की सिफारिशों को लागू करती हैं. सातवें वेतन आयोग के तहत वित्त वर्ष 2016-17 में खर्च में एक लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई थी.

55 रुपये से शुरू हुआ वेतन का सफर 

अबतक सात वेतन आयोग गठित हो चुके हैं. उनका कार्यकाल और मुख्य सिफारिशें इस प्रकार हैं: … 

  • पहला वेतन आयोग (मई 1946 से मई 1947) चेयरमैन: श्रीनिवास वरदाचार्य. भारत की आजादी के बाद वेतन संरचना को तर्कसंगत बनाने पर ध्यान दिया गया. ‘जीविका पारितोषिक’ की अवधारणा पेश की गई. न्यूनतम वेतन: 55 रुपये प्रति माह हुआ. अधिकतम वेतन: 2,000 रुपये प्रति माह. लाभार्थी: लगभग 15 लाख कर्मचारी .
  • दूसरा वेतन आयोग (अगस्त 1957 से अगस्त 1959) अध्यक्ष: जगन्नाथ दास. अर्थव्यवस्था और जीवन-यापन की लागत को संतुलित करने पर ध्यान दिया गया. न्यूनतम वेतन 80 रुपये प्रति माह की सिफारिश की गई. समाजवादी प्रतिरूप को अपनाया गया. लाभार्थी: लगभग 25 लाख कर्मचारी. 
  • तीसरा वेतन आयोग (अप्रैल 1970 से मार्च 1973) अध्यक्ष: रघुबीर दयाल. न्यूनतम वेतन 185 रुपये प्रति माह की सिफारिश की गई. सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच वेतन समानता पर जोर दिया गया. वेतन संरचना में असमानताओं को दूर किया गया. लाभार्थी: लगभग 30 लाख कर्मचारी. 
  • चौथा वेतन आयोग (सितंबर, 1983 से दिसंबर, 1986) चेयरमैन: पी.एन. सिंघल. न्यूनतम वेतन 750 रुपये प्रति माह की सिफारिश की गई. सभी रैंक में वेतन में असमानताओं को कम करने पर ध्यान दिया गया. प्रदर्शन से जुड़ी वेतन संरचना पेश की गई. लाभार्थी: 35 लाख से अधिक कर्मचारी. 
  • पांचवां वेतन आयोग (अप्रैल, 1994 से जनवरी, 1997) चेयरमैन: न्यायमूर्ति एस. रत्नावेल पांडियन. न्यूनतम वेतन 2,550 रुपये प्रति माह की सिफारिश की गई. वेतनमान की संख्या कम करने का सुझाव दिया. सरकारी दफ्तर को आधुनिक बनाने पर ध्यान दिया. लाभार्थी: लगभग 40 लाख कर्मचारी. 
  • छठा वेतन आयोग (अक्टूबर, 2006 से मार्च, 2008) चेयरमैन: न्यायमूर्ति बी.एन. श्री कृष्ण. ‘पे बैंड’ और ‘ग्रेड पे’ पेश किया गया. न्यूनतम वेतन: 7,000 प्रति माह. अधिकतम वेतन: 80,000 रुपये प्रति माह. प्रदर्शन संबंधी प्रोत्साहन पर जोर. लाभार्थी: लगभग 60 लाख कर्मचारी .
  • सातवां वेतन आयोग (फरवरी, 2014 से नवंबर, 2016) अध्यक्ष: न्यायमूर्ति ए के माथुर. न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये प्रति माह तक बढ़ाया गया. अधिकतम वेतन 2,50,000 रुपये प्रति माह. ग्रेड पे सिस्टम की जगह नये पे मैट्रिक्स की सिफारिश की गई.भत्तों और कार्य-जीवन संतुलन पर ध्यान दिया गया. लाभार्थी: एक करोड़ से अधिक (पेंशनधारक सहित).
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सरकारी कर्मचारी vs प्राइवेट कर्मचारी

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सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने से पहले IIM अहमदाबाद ने सरकारी कर्मचारियों और निजी क्षेत्र के कर्मचारियों की सैलरी की तुलना की थी. इसमें उसने पाया था कि निचले पायदान पर बैठे सरकारी कर्मचारी की सैलरी निजी क्षेत्र से ज्यादा है. मसलन अगर ड्राइवर की ही बात करें तो इसमें दोगुने तक का फर्क था. 2015 में की गई इस स्टडी के मुताबिक तब सरकारी ड्राइवर का औसत वेतन करीब 18 हजार रुपये था, जो तब मार्केट के हिसाब से करीब दोगुना था. लेकिन सरकारी अधिकारियों की सैलरी की बात करें, तो इसमें कॉर्पोरेट के मैनेजर बाजी मारते हैं. सातवें वेतन आयोग की सिफारिश से पहले की इस स्टडी में सरकारी अधिकारी की सैलरी  58100 से शुरू होती है. जॉइंट सेक्रटरी की सैलरी 1.82 लाख, सेक्रटरी की 2.25 लाख और कैबिनेट सेक्रटरी की सैलरी 2.5 लाख थी. लेकिन इसमें बड़ी बात यह है कि अगर भत्तों और बंगलों को मिला दें तो यह कई गुना बैठ जाएगी. मसलन कैबिनेट सेक्रटरी का लुटियंस जोन के बंगले का किराया जाहिर तौर पर उनकी सैलरी से ज्यादा है. ऐसे में भत्तों और सैलरी का जोड़ करें, तो सरकारी कर्मचारी ज्यादा मौज में रहते हैं. 

सुविधाएं सरकारी कर्मचारी प्राइवेट कर्मचारी
जॉब सिक्यॉरिटी है नहीं है
महंगाई के हिसाब से सैलरी बढ़ोतरी होती है नहीं होती
सालाना इंक्रिमेंट     पक्का है तय नहीं है
भत्ते करीब 196 तरह के भत्ते हैं सीमित हैं
अनलिमिटेड मेडिकल सुविधा है नहीं है
रिटायरमेंट के बाद पेंशन, मेडिकल     है नहीं है
टारगेट्स उतना प्रेशर नहीं टारगेट पर जॉब चलती है
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