वायु प्रदूषण से बढ़ रहे हैं ब्रेन स्ट्रोक के मामले, भारत समेत इन देशों में हो रही परेशानी: शोध
नई दिल्ली:
गुरुवार को एक अध्ययन से पता चला है कि परिवेशी कणीय वायु प्रदूषण सबराचोनोइड रक्तस्राव – एक प्रकार का मस्तिष्क स्ट्रोक – के लिए धूम्रपान के बराबर एक शीर्ष जोखिम कारक है. भारत, अमेरिका, न्यूजीलैंड, ब्राजील और संयुक्त अरब अमीरात के शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम के नेतृत्व में किए गए अध्ययन से पता चला है कि वायु प्रदूषण इस गंभीर स्ट्रोक उपप्रकार के कारण होने वाली मृत्यु और विकलांगता में 14 प्रतिशत का योगदान देता है.
नारायणा हेल्थ के एचओडी और निदेशक एवं क्लिनिकल लीड इंटरवेंशनल न्यूरोलॉजी डॉ. विक्रम हुडेड ने आईएएनएस को बताया, ” भारत के युवाओं में ब्रेन स्ट्रोक के बढ़ते मामले देखने को मिल रहे हैं. इन मामलों में पिछले पांच वर्षों में 25 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिली है. सबसे ज्यादा मामले 25-40 वर्ष की आयु के लोगों में देखने को मिल रहे हैं. यह मुख्य रूप से गतिहीन जीवन शैली, खराब आहार संबंधी आदतें, धूम्रपान और शहरी जीवन से जुड़े उच्च तनाव के कारण होता है.
डॉ. हुडेड ने कहा, ” इन खतरों से बचने के लिए युवाओं को स्वस्थ जीवनशैली के साथ नियमित शारीरिक गतिविधि से जुड़े रहना जरुरी है. साथ ही तनाव को कम करने के उपाय भी बेहद जरुरी हैं.”
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अनुमान के अनुसार, भारत में कुल बीमारियों में न्यूरोलॉजिकल विकारों का योगदान 10 प्रतिशत है. बढ़ती उम्र की वजह से देश में बीमारों की संख्या बढ़ रही है.
कोलकाता स्थित नारायण अस्पताल के कंसल्टेंट-न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. अरिंदम घोष ने बताया, “सिर में चोट लगने से बचने, पोषक तत्वों और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर संतुलित आहार खाने, धूम्रपान से बचने, तनाव दूर करने के उपाय जैसे ध्यान, व्यायाम या सैर करने और मधुमेह, मोटापा, उच्च रक्तचाप और डिस्लिपिडेमिया जैसी बीमारियों का पर्याप्त ध्यान रखने जैसे उपायों को बढ़ाने से कई तरह की न्यूरोलॉजिकल बीमारियों से बचा जा सकता है.”
भारत में प्रतिवर्ष लगभग 185,000 स्ट्रोक के मामले सामने आते हैं, जिसमें से हर 40 सेकंड में एक स्ट्रोक और हर 4 मिनट में स्ट्रोक से एक मौत होती है. इन चिंताजनक आंकड़ों के बावजूद भी देश के कई अस्पतालों में आवश्यक बुनियादी ढांचे की कमी है.
उन्होंने कहा, “उन्नत इमेजिंग तकनीक, ब्रेन-मशीन इंटरफेस और डीप ब्रेन स्टिमुलेशन जैसी हालिया तकनीकी सफलताएं इन बीमारियों का पता लगाने और इनके उपचार में बदलाव ला रही है. जो इन समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए उम्मीद की नई किरण है.”