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Explainer : किसानों को केंद्र ने MSP पर पेश किया 5 वर्षीय प्रस्ताव, जानें इसका क्या है मतलब

एमएसपी के लिए कानूनी आश्वासन को किसानों की इच्छा सूची में नंबर 1 के रूप में देखा जा रहा है. दोनों पक्षों की मुलाकात चंडीगढ़ में हुई थी जहां सरकार की ओर से तीन केंद्रीय मंत्री पहुंचे थे. इनमें कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल शामिल हैं. 

प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देते हुए किसान नेता सरवन सिंह पंढेर ने कहा, ”हम अपने मंचों पर (सोमवार और मंगलवार को) इस पर चर्चा करेंगे, विशेषज्ञों की राय लेंगे और उसके अनुसार फैसला करेंगे.”

हालांकि, इस पर किसानों की ओर उत्साहजनक संकेत नहीं मिले हैं. किसान नेताओं ने The Hindkeshariसे कहा कि सरकार को सभी 23 फसलों पर गारंटी देनी चाहिए, न कि केवल दाल या मक्का पर. अधिकतर प्रदर्शनकारी किसान पंजाब से आते हैं लेकिन दाल या मक्के की खेती के मामले में उनकी हिस्सेदारी कम है. “इस प्रस्ताव से पंजाब और हरियाणा के किसानों को कोई फ़ायदा नहीं है… इस वजह से यह प्रस्ताव अधूरा है.”

MSP पर एकमत हुए किसान और सरकार?

चंडीगढ़ में हुई बैठक से सामने आई हैं ये मुख्य बातें

1. एनसीसीएफ या राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता महासंघ, और एनएएफईडी या भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ जैसी केंद्रीय सहकारी समितियां – दाल या मक्का खरीदने के लिए पांच साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर करेंगी.

2. इस अनुबंध के तहत दाल या मक्के को MSP के तहत खरीदा जाएगा.

3. खरीद की मात्रा पर कोई सीमा नहीं होगी और एक वेबसाइट बनाई जाएगी.

पीयूश गोयल ने कहा यह एक लंबे वक्त से बनाई जा रही रणनीति का हिस्सा है ताकि मक्के की खेती को बढ़ावा दिया जा सके.

उन्होंने समझाया कि यह पंजाब के कृषि क्षेत्र को बचाएगा, भूजल स्तर में सुधार करेगा और भूमि को बंजर होने से बचाएगा. सरकार मक्का और दाल की खेती को प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रही है जो “फसल विविधीकरण” का हिस्सा है. पिछले साल मक्के का एमएसपी 2,090 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया था, जो 2019 में  1,760 रुपये था.

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भूजल पर चिंताएं पहले भी व्यक्त की गई हैं, पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को उपाय करने की चेतावनी दी थी – जिसमें मक्के की खेती पर स्विच करना भी शामिल था. 2022/23 में अनुमानित 346.13 लाख टन मक्का उगाया गया, जो मक्के की अधिकतम खेती रही है.

वर्तमान MSP स्कीम

वर्तमान में धान, गेहूं, दालें और मक्के जैसी प्रमुख फसलों के अलावा 23 फसलों पर एमएसपी की पेशकश की जाती है. इनमें रागी, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी के बीज, जौ, रेपसीड और सरसों शामिल हैं. 2023 की कीमतों की घोषणा जून में की गई थी, जब खरीफ फसल की एमएसपी में वृद्धि की गई थी.

इस कीमत को उत्पादन की अखिल भारतीय भारित औसत लागत के कम से कम 1.5 गुना के स्तर पर तय किया गया था.

किसानों की MSP की मांग

एमएसपी के लिए कानूनी समर्थन के अलावा, किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू कराना चाहते हैं, साथ ही किसानों और खेत मजदूरों के लिए पेंशन भी चाहते हैं. एमएसपी पर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें उल्लेखनीय हैं, क्योंकि इसमें सुझाव दिया गया था कि उत्पादन का न्यूनतम मूल्य भारित औसत लागत से कम से कम 50 प्रतिशत अधिक निर्धारित किया जाना चाहिए. इसे C2+50 फॉर्मुला के नाम से जाना जाता है और इसमें एमएसपी निर्धारित करने में पूंजी और भूमि किराये की लागत भी शामिल है.

विरोध प्रदर्शन कर रहे किसान संगठन संयुक्त किसान मोर्चा के प्रमुख ने संकेत दिया है कि वह इस फॉर्मुला से नीचे कुछ भी स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं.

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क्या है एसएसपी?

एमएसपी बाजार हस्तक्षेप का एक रूप है जो किसानों की फसलों की कीमत में आने वाली भारी गिरावट से उन्हें बचाने में मदद करता है. इसके लिए सरकार द्वारा एक फिक्स सेट निर्धारित किया जाता है ताकि भरपूर फसल होने की स्थिति में जब अचानक फसलों की कीमत गिर जाती हैं तो उससे किसानों को किसी तरह का नुकसान न पहुंचे.

मूलतः, हर साल सरकार कुछ निश्चित फसलों की मात्रा खरीदती है, जिनकी सूची और कीमतें बुआई से पहले घोषित की जाती हैं. इसका उद्देश्य न केवल किसानों को उनके निवेश पर न्यूनतम रिटर्न की अनुमति देना है, बल्कि सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए फसलों की खरीद भी निर्धारित करता है. एमएसपी फ्लोर प्राइस है, यानी यह वो न्यूनतम कीमत है जिस पर बाजार में फसल खरीदी जा सकती है.

हालांकि, एमएसपी को लेकर कोई कानूनी समर्थन नहीं है. इसका अर्थ है कि सरकार किसान की धान की फसल का 10 प्रतिशत न्यूनतम मूल्य पर खरीदने के लिए बाध्य नहीं है और किसान इसी में बदलाव चाहते हैं. 

चार साल पहले भी MSP को लेकर विवाद सुर्खियों में रहा था, जब 2020-21 में हुए किसानों के विरोध-प्रदर्शन के बाद मोदी सरकार के लाए तीन कृषि कानूनों को वापस ले लिया गया था. हालांकि, किसानों को लगा कि इससे एमएसपी सुविधा भी पूरी तरह से खत्म हो जाएगी. 

किसानों की अन्य मांगे

इसके अलावा किसान कर्ज माफी, बिजली दरों में कोई बढ़ोकरी नहीं और 2020/21 के विरोध प्रदर्शन के दौरान दर्ज किए गए पुलिस मामलों को वापस लिए जाने की भी मांग कर रहे हैं. इन मामलों को उस वक्त दर्ज किया गया था जब किसानों की सुरक्षा कर्मियों के साथ हिंसा झपड़ हुई थी. अंत में, वे उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में मारे गए किसानों के लिए न्याय, भूमि अधिग्रहण अधिनियम की बहाली और चार साल पहले मारे गए लोगों के परिवारों के लिए मुआवजा भी चाहते हैं. 

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अब किसान कहां हैं?

प्रदर्शनकारी किसान अब दिल्ली से लगभग 200 किमी दूर डेरा डाले हुए हैं. फिलहाल प्रदर्शनकारी किसान पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू बॉर्डर पर हैं. इतना ही नहीं दिल्ली में किसानों को घुसने से रोकने के लिए बॉर्डर पर कंक्रीट ब्लॉकों, कंटीले तारों और कील पट्टियों का इस्तेमाल किया गया था. 

बता दें कि प्रदर्शन की शुरुआत पिछले हफ्ते हुई थी. 

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