Explainer : कैसे हेमंत सोरेन ने झारखंड में राष्ट्रपति शासन के बन रहे हालात को टाला
अपने पिता और पार्टी संस्थापक शिबू सोरेन की छत्रछाया में अपना राजनीतिक करियर शुरू करने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा के 48 वर्षीय कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने पिछले सप्ताह चतुराईपूर्ण राजनीतिक कदमों से कई लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया था, जिसकी वजह से झारखंड में सरकार बचाने में मदद मिली. हेमंत सोरेन इस दौरान राज्य में राष्ट्रपति शासन को रोकने और अपने सबसे करीबी सहयोगी को सत्ता के सुचारु हस्तांतरण में कामयाब रहे.
बीजेपी ने झारखंड के मुख्यमंत्री को ‘लापता’ बताया
पिछले सोमवार को प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों की एक टीम हेमंत सोरेन के दिल्ली आवास पर पहुंची थी और उनके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग मामले में तलाशी ली. आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि हेमंत सोरेन का पता नहीं चल रहा है और यहां तक कि उनके स्टाफ के सदस्यों को भी उनके बारे में कोई जानकारी नहीं है. भाजपा ने तुरंत मौके का फायदा उठाया और मुख्यमंत्री को ‘लापता’ घोषित कर दिया. बीजेपी ने दावा किया कि झारखंड संवैधानिक संकट के बीच खड़ा है. हालांकि, झामुमो आश्वासन देता रहा कि वे हेमंत सोरेन के संपर्क में हैं और वो 31 जनवरी को एजेंसी के सामने पेश होंगे. जिस विमान से हेमंत सोरेन दिल्ली पहुंचे थे, वो हवाई अड्डे पर खड़ा रहा और ईडी के अधिकारियों ने कहा कि उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है, कि वो कहां था.
दरअसल, झारखंड विधानसभा में विपक्ष के नेता बाबूलाल मरांडी ने मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए दावा किया था कि हेमंत सोरेन रविवार रात अपने दिल्ली आवास से पैदल ही निकले थे. ये भी स्पष्ट नहीं है कि मुख्यमंत्री को कैसे पता चला कि ईडी के अधिकारी अगले दिन उनके घर पर छापा मारेंगे और ठीक समय पर निकल गए.
ईडी के अधिकारियों ने बुधवार तक हेमंत सोरेन से पूछताछ की और जब ये स्पष्ट हो गया कि उन्हें गिरफ्तार किया जाएगा, तो उन्होंने एक साहसिक कदम उठाया, जिससे शायद उनकी सरकार बच गई. ईडी सूत्रों के मुताबिक, हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने से पहले गिरफ्तारी ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया. मौजूदा मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी से संवैधानिक संकट के आधार पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की संभावना पैदा हो जाती.
शिबू सोरेन के सहयोगी चंपाई सोरेन को बनाया नेता
इससे पहले, चंपई सोरेन को झामुमो विधायक दल का नेता चुना गया था, जिससे उन अटकलों पर विराम लग गया कि हेमंत सोरेन अपनी पत्नी कल्पना को कमान सौंप सकते हैं. दरअसल, मुख्यमंत्री के रूप में कल्पना सोरेन की पसंद का विरोध सोरेन परिवार के भीतर से ही हुआ था. जामा से जेएमएम विधायक और हेमंत सोरेन की भाभी सीता ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा कि वो कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने के किसी भी कदम का विरोध करेंगी, क्योंकि उनके पास कोई राजनीतिक अनुभव नहीं है. पार्टी नेतृत्व, इस महत्वपूर्ण बिंदु पर वरिष्ठता में दरार का जोखिम उठाने के मूड में नहीं था, उसने सुरक्षित विकल्प चुना और शिबू सोरेन के दीर्घकालिक सहयोगी 67 वर्षीय चंपाई सोरेन को आगे किया.
शपथ से पहले लंबा इंतजार
जेएमएम और कांग्रेस ने राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन पर झारखंड में सरकार गठन में देरी करने का आरोप लगाया है, जबकि 31 जनवरी को हेमंत सोरेन के पद छोड़ने के तुरंत बाद चंपाई सोरेन ने दावा पेश किया था. एक फरवरी को चंपाई सोरेन ने राज्यपाल को पत्र लिखकर कहा था कि राज्य में कोई सरकार नहीं है. उन्होंने राज्यपाल से तत्काल कदम उठाने का आग्रह किया. उसके बाद झामुमो-कांग्रेस गठबंधन के अन्य नेताओं ने राज्यपाल से मुलाकात की. चंपाई सोरेन का समर्थन करने वाले विधायकों ने भी बहुमत के प्रमाण के रूप में राज्यपाल को एकजुटता दिखाई.
हेमंत सोरेन ने सभी को एकजुट रखा
चंपाई सोरेन ने सीएम पद की शपथ तो ले ली, लेकिन असली लड़ाई सोमवार को फ्लोर टेस्ट को लेकर थी. जैसे ही चंपाई सोरेन और उनके दो विधायकों ने शपथ ली, सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायकों को हैदराबाद के लिए विमान में बिठाया गया. महत्वपूर्ण शक्ति परीक्षण से पहले भाजपा के किसी भी अवैध प्रयास को रोकने के लिए उन्हें हैदराबाद के एक निजी रिसॉर्ट में रखा गया था. इस बीच, हेमंत सोरेन ने बहुमत मतदान में भाग लेने की अनुमति के लिए अदालत में अनुरोध किया. झामुमो नेतृत्व ने लोबिन हेम्ब्रोम जैसे नाराज विधायकों से भी संपर्क किया.
फ्लोर टेस्ट से ठीक पहले हैदराबाद में डेरा डाले विधायकों को वापस रांची लाया गया. हेमंत सोरेन भी समय पर विधानसभा पहुंच गये. नतीजा, चंपाई सोरेन ने अपने पक्ष में 47 वोटों के साथ विश्वास मत हासिल कर लिया. वहीं उनके ख़िलाफ़ 29 वोट पड़े.