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दुनिया

Explainer : रूस ने क्या पाया और यूक्रेन ने क्या खोया… जानिए जंग के 3 सालों की पूरी कहानी

उधर रूस ने भी युद्ध में अपने नागरिकों के मारे जाने की संख्या नहीं बताई है. जानकारों के मुताबिक रूस के सीमावर्ती इलाके कुर्स्क में क़रीब साढ़े तीन सौ लोगों की यूक्रेन के हमले में मौत हुई है. कुर्स्क का एक छोटा इलाका यूक्रेन के कब्ज़े में है. International Committee of the Red Cross के मुताबिक वो रूस और यूक्रेन दोनों ही ओर करीब 50 हजार लापता लोगों की फाइल पर काम कर रहा है. रेड क्रॉस के मुताबिक ये संख्या भी वास्तविक संख्या से काफी कम ही होगी. उधर यूक्रेन सरकार ने फरवरी 2025 तक 63 हजार नामों की लिस्ट तैयार की है. इस बीच रूस के रक्षा उप मंत्री ने बीते नवंबर में मॉस्को में एक सरकारी बैठक में कहा था कि रूस सरकार को युद्ध में लापता सैनिकों के परिवारों की ओर से डीएनए टेस्ट कराने की 48 हजार मांगें आई हैं.

इस युद्ध ने बड़े पैमाने पर लोगों को विस्थापित भी किया है. यूक्रेन में करीब एक करोड़ लोगों को युद्ध के कारण अपने घरों को छोड़कर भागना पड़ा है. शरणार्थियों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था The United Nations High Commissioner for Refugees (UNHCR) के मुताबिक यूक्रेन के अंदर ही क़रीब 37 लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा है. और क़रीब 60 लाख यूक्रेन के लोग पड़ोसी देशों में शरणार्थियों की तरह रह रहे हैं. इनमें से अधिकतर यूरोपीय देश हैं, तो अपनी आत्मरक्षा के लिए यूक्रेन के इस युद्ध ने एक बड़ी कीमत वसूली है. इस युद्ध की गूंज बीते तीन साल से दुनिया के हर हिस्से में सुनाई दे रही है. भारत समेत दुनिया के कई देशों ने युद्ध खत्म करने की पहल की कोशिश की है. लेकिन इस दिशा में तेजी आई अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के साथ. लेकिन ट्रंप इस मामले में जिस तरह की जल्दबाजी और एकतरफा रुख दिखा रहे हैं. उसने पूरी दुनिया को चौकन्ना कर दिया है. सत्ता में आने से पहले ट्रंप कहते रहे थे कि वो एक दिन के अंदर ही युद्ध खत्म करा देंगे. सत्ता में आने के बाद वो एक दिन में युद्ध तो नहीं खत्म करा पाए. लेकिन अपने रुख से यूक्रेन को सतर्क कर दिया. यूरोप को हैरान कर दिया. बाइडेन की नीतियों को पलटते हुए ट्रंप ने यूक्रेन और उसके नेताओं को ही रूस के हमले के लिए दोषी ठहराना शुरू कर दिया. कहा कि यूक्रेन ने रूस के साथ बातचीत से ख़ुद को बहुत जल्दी पीछे खींच लिया. ट्रंप ने ज़ेलेंस्की को डिक्टेटर यानी तानाशाह तक कह दिया. ट्रंप की टीम ये भी कह चुकी है कि यूक्रेन के लिए नाटो की सदस्यता की गुंजाइश नहीं है. ट्रंप कहते हैं कि वो यहां शांति हासिल करने के लिए हैं.. हालांकि ये शांति यूक्रेन के लिए किस क़ीमत पर आएगी इसकी उन्हें परवाह नहीं दिख रही है.

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सत्ता में आने के बाद डोनल्ड ट्रंप का रुख़ रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के नैरेटिव की तरफ़ झुका हुआ दिख रहा है. वो रूस के साथ अमेरिका के कूटनीतिक संबंधों को पूरी तरह पलटते दिख रहे हैं. इसका उदाहरण है पिछले हफ़्ते रियाध में अमेरिका और रूस के उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल की मुलाक़ात. बातचीत रूस-यूक्रेन युद्ध को ख़त्म कराने से जुड़ी थी. लेकिन अमेरिका और रूस के संबंधों को नए सिरे से मज़बूत करने की ओर बढ़ गई. तीन साल बाद कूटनीतिक संबंधों को नए सिरे से बहाल करने का फ़ैसला किया गया. डोनल्ड ट्रंप और व्लादिमीर पुतिन के बीच सीधी बातचीत की भूमिका तैयार की गई. इस बीच रूस के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि ट्रंप और पुतिन के बीच आमने-सामने बातचीत की तैयारियां जारी हैं.

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सवाल ये है कि यूक्रेन की मौजूदगी के बिना क्या ट्रंप और पुतिन यूक्रेन की किस्मत का फ़ैसला कर लेंगे, क्या इस प्रक्रिया में यूरोप को भी दरकिनार कर पाएंगे. ट्रंप का रुख़ लगातार सबको हैरान कर रहा है. अब ट्रंप ने यूक्रेन को अब तक अमेरिका की ओर से दी गई आर्थिक और सैनिक सहायता का मोल मांग लिया है. ट्रंप कहते हैं कि बाइडेन प्रशासन में दी गई सहायता के बदले में यूक्रेन अपने खनिज भंडार में अमेरिका को हिस्सा दे. हालांकि, यूक्रेन बदले में अमेरिका से सुरक्षा की गारंटी मांग रहा है. पिछले ही हफ्ते जेलेंस्की डोनल्ड ट्रंप द्वारा 500 अरब डॉलर की खनिज संपदा की मांग को ठुकरा चुके हैं. ज़ेलेंस्की ने कहा कि इतनी सहायता नहीं दी गई और न ही वो अपने देश को बेच सकते हैं. लेकिन ये भी खबरें आ रही हैं कि इस मुद्दे पर अमेरिका और यूक्रेन के बीच डील काफ़ी क़रीब है. हालांकि, ये साफ़ नहीं है कि यूक्रेन अमेरिका को कौन सी खनिज संपदा में हिस्सा देगा और क्या बदले में भविष्य के लिए कोई सुरक्षा गारंटी मिलेगी भी या नहीं.

दरअसल, यूक्रेन में कई ऐसे दुर्लभ तत्व और खनिज हैं जिनकी आज दुनिया को बड़ी ज़रूरत है. एक अनुमान के मुताबिक दुनिया के 5% दुर्लभ खनिज यूक्रेन में हैं. इनमें करीब 2 करोड़ टन ग्रेफ़ाइट भी शामिल है जिसका इस्तेमाल कारों की बैटरी बनाने में भी किया जाता है. पूरे यूरोप का एक तिहाई लिथियम का भंडार यूक्रेन में है. रूस के हमले से पहले दुनिया का 7% टाइटेनियम उत्पादन यूक्रेन में हो रहा था. टाइटेनियम हवाई जहाजों से लेकर पावर स्टेशनों तक में काम आता है. हथियार, विंड टर्बाइन, इलेक्ट्रॉनिक्स और कई अन्य अहम उपकरणों में काम आने वाले 17 दुर्लभ रेयर अर्थ मेटल्स का यूक्रेन में बड़ा भंडार है. इसके अलावा यूरेनियम, कोयले, गैस और तेल के भी यूक्रेन में बड़े भंडार हैं.

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अमेरिका और रूस के बीच यूक्रेन को लेकर कोई भी इकतरफा बातचीत दुनिया की भूराजनीति को भी गहरा प्रभावित करेगी. ट्रंप यूरोपीय देशों को भी संकेत दे चुके हैं कि अपनी सुरक्षा की तैयारी वो ख़ुद करें. ऐसे में रूस-यूक्रेन युद्ध के यूरोप के लिए बड़े मायने हैं. इसी के मद्देनज़र युद्ध की तीसरी बरसी के मौके पर आज बारह से ज़्यादा यूरोपीय देशों और कनाडा के नेता यूक्रेन के साथ एकजुटता दिखाने के लिए यूक्रेन की राजधानी कीव में जुटे. इन नेताओं में यूरोपियन कमीशन की अध्यक्ष Ursula von der Leyen भी मौजूद रहीं. उन्होंने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा कि यूरोप कीव में है क्योंकि यूक्रेन यूरोप में है… ये बचे रहने की लड़ाई है. सिर्फ़ यूक्रेन का भविष्य ही दांव पर नहीं है. यूरोप का भविष्य भी दांव पर लगा है. यही वजह है कि ये देश यूक्रेन को अकेला छोड़ने को तैयार नहीं और उसे ज़्यादा सैनिक सहायता देने की तैयारी कर रहे हैं. वैसे कुछ जानकार तो मानते हैं कि यूक्रेन में रूस की कामयाबी चीन का हौसला भी बढ़ा सकती है. चीन ताइवान को अपना बताता है और उसे हासिल करने का सार्वजनिक एलान कर चुका है.

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इस बीच आज ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच फोन पर बात हुई है. बीजिंग के मुताबिक पुतिन ने ये फोन किया और शी चिनफिंग को रूस और अमेरिका के बीच हाल में रियाध में हुई बातचीत की जानकारी दी. चीन की ओर से इसके बाद दिए गए बयान में कहा गया कि पुतिन ने शी चिनफिंग को बताया कि वो रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की मूल वजहों को पूरी तरह से ख़त्म करने और एक लंबी और टिकाऊ शांति योजना के लिए प्रतिबद्ध हैं.

रूस-यूक्रेन युद्ध ख़त्म कराने की कोशिशों के बीच व्लादिमीर पुतिन के साथ नए सिरे से संपर्क स्थापित करने की डोनल्ड ट्रंप की कोशिशें कितनी अहम हो सकती हैं. अगर जल्द ही डोनल्ड ट्रंप और व्लादिमीर पुतिन की बैठक होती है और दोनों देश एक दूसरे के और क़रीब आते हैं, किसी बड़े फ़ैसले का ऐलान करते हैं तो ये दुनिया का बड़ा ऐतिहासिक मौका होगा, जो विश्व की भू-राजनीति को नए सिरे से तय कर देगा. कुछ जानकार मानते हैं कि ये उतना ही अहम हो सकता है जितना अस्सी साल पहले दूसरे विश्व युद्ध के अंत में हुआ याल्टा सम्मेलन. ये सम्मेलन तत्कालीन सोवियत संघ के एक रिज़ॉर्ट टाउनशिप याल्टा में 4 से 11 फरवरी 1945 के बीच हुआ था. इसमें युद्ध के भविष्य और उसके बाद की दुनिया पर विचार किया गया  या कहें युद्ध के बाद की दुनिया को तय किया गया. याल्टा सम्मेलन में मित्र राष्ट्रों के तीन बड़े नेताओं के बीच समझौता हुआ. अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूज़वेल्ट, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल और तत्कालीन सोवियत संघ के राष्ट्रपति जोसफ़ स्टालिन फरवरी समझौते पर पहुंचे. इसके के तहत विश्व युद्ध के लिए ज़िम्मेदार देश जर्मनी को चार हिस्सों में बांटने का फ़ैसला हुआ. जिनपर अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस और सोवियत संघ पर नियंत्रण होगा. बर्लिन को भी चारों मित्र देशों के नियंत्रण वाले चार हिस्सों में बांटने का फ़ैसला हुआ. भविष्य में युद्धों को रोकने और अंतरराष्ट्रीय क़ानून लागू करने के लिए मित्र देश एक अंतरराष्ट्रीय संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना पर राज़ी हुए. नाज़ी प्रभुत्व से आज़ाद हुए सभी देशों को स्वतंत्र चुनावों के अधिकार की गारंटी पर बात हुई. मित्र देश सोवियत संघ के लिए पूर्वी यूरोप में अपना प्रभाव बनाए रखने पर सहमत हुए. नाज़ी युद्ध अपराधियों को सजा दिलाने पर भी सब एक राय हुए. लेकिन यूरोप की मौजूदगी के बिना पुतिन और ट्रंप की संभावित बातचीच क्या याल्टा समझौते जैसी अहम साबित होगी. इस पर भी सवाल खडे़ हो रहे हैं.

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