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Explainer: ढलान, इंसानी गलती या खराब ड्रेनेज सिस्टम… क्यों हर साल 'डूब' जाता है गुरुग्राम?


नई दिल्ली:

तारीख 28 जुलाई 2016. जगह-गुरुग्राम. शाम को कई लोग ऑफिस खत्म करके घर के लिए निकलें, लेकिन आधी रात तक घर नहीं पहुंचे. उनकी कार ट्रैफिक में फंसी रही. पब्लिक ट्रांसपोर्ट से घर लौटने वाले लोग रास्ते में ही फंसे रह गए. बच्चे, बुजुर्ग, प्रेग्नेंट महिलाएं और युवाओं को रास्ते में कई घटें बिना पानी और बिना खाने के गुजारा करने को मजबूर होना पड़ा. गुरुग्राम के मिलेनियम सिटी में उस दिन 55 mm की बारिश हुई. जलजमाव होने से सड़कें नदियों में तब्दील हो चुकी थीं. 

सोमवार (12 अगस्त) को दिल्ली से सटे साइबर सिटी गुरुग्राम की हालत एक बार फिर बारिश ने बिगाड़ कर रख दी. पूरा शहर पानी पानी हो गया. जलजमाव से सड़कों पर लंबा ट्रैफिक जाम लग गया. गाड़ियां रेंगती नजर आईं. दिल्ली-जयपुर हाईवे पर नरसिंहपुर में जलभराव होने से करीब 10 किमी लंबा जाम लगा रहा. सर्विस लेन में जलभराव से गुजरते समय कई गाड़ियां फंस गईं. कई इलाकों में घरों के भीतर पानी घुस गया. सदर थाने में भी पानी घुस गया. इस बीच IMD ने गुरुग्राम में बारिश को लेकर येलो अलर्ट जारी किया है. 13 अगस्त तक गुरुग्राम में बारिश की संभावना है. बता दें कि इस मॉनसून सीजन में गुरुग्राम में 39 दिनों के अंदर 596 mm तक बारिश हो चुकी है.

सेंट्रल वॉटर कमीशन स्टैंडर्ड के हिसाब से गुरुग्राम में टेक्निकली जलजमाव या बाढ़ की स्थिति नहीं है. फिर भी हर साल मॉनसून में यहां की सड़कों पर पानी भर आता है. गाड़ियों की लंबी लाइनें लगने से घंटों का ट्रैफिक जाम हो जाता है. ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने अपनी डिटेल रिपोर्ट में गुरुग्राम की टोपोग्राफी और इसके इंफ्रास्ट्रक्चर को समझने की कोशिश की, ताकि हर साल बारिश के सीजन में गुरुग्राम में बाढ़ जैसी स्थिति होने के कारणों का पता लगाया जा सके.

मिलेनियम सिटी गुरुग्राम में साल 2016 के महाजाम के बाद से ड्रेनेज और सीवरेज, अंडर पास फ्लाईओवर के अलावा अन्य साजो सामान पर करोड़ों खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन हर मॉनसूनी बारिश में साइबर सिटी को वाटर लॉगिंग जैसी शर्मनाक स्थिति का सामना करना पड़ता है. 2010 में बादशाहपुर ड्रेन को बनाने का काम शुरू किया गया था. 26 किलोमीटर लंबी इस ड्रेनेज के निर्माण में उस समय तकरीबन 294 करोड़ की राशि मंजूर की गई थी. बाद में इसका बजट 400 करोड़ रुपये कर दिया. हैरानी की बात है कि 13 साल बाद भी ड्रेनेज सिस्टम का काम पूरा नहीं हो पाया है. अभी करीब 3 किलोमीटर ड्रेन निर्माण का काम बाकी है.

ये टोपोग्राफिकल गलती?
गुरुग्राम चारों तरफ से अरावली की पहाड़ियों से घिरा हुआ है. इन्हीं पहाड़ियों का पानी गिरता हुआ शहर तक पहुंचता है. ये पानी निचले इलाकों में जमा हो जाता है. ग्वाल पहाड़ी (ईस्ट) ऐसा ही एक निचला इलाका है. दिल्ली बॉर्डर के करीब स्थित ग्वाल पहाड़ी की समुद्र तल से ऊंचाई मात्र 290 मीटर है. जबकि, नज़फगढ़ ड्रेन (वेस्ट) समुद्र तल से मात्र 200 मीटर ऊंचाई पर स्थित है. 

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परिणामस्वरूप, गुरुग्राम में सबसे निचले और सबसे ऊंचे पॉइंट के बीच का अंतर सिर्फ 90 मीटर है. आसान शब्दों में समझा जाय तो 90 मीटर किसी बहुमंजिला इमारत से ज्यादा लंबा होगा.

गुरुग्राम में कई तालाब
गुरुग्राम में कई तालाब हैं, जो ज्यादा ऊंचाई पर स्थित हैं. पानी के बहाव को रोकने के लिए मेढ़ें भी बनाई गई हैं. मामले की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने बताया, ब्रिटिश काल में 100 से ज्यादा चेक डैम बनाए गए थे, ताकि पानी के बहाव को कंट्रोल में किया जा सके और जलभराव को कम किया जा सके. गुरुग्राम में घटा, झाड़सा, वजीराबाद और चक्करपुर चार मुख्य मेढ़ें हैं.

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GMDA अधिकारी ने कहा, “जब भारी बारिश होती है, तो बारिश का पानी इन तालाबों में इकट्ठा हो जाता है. ये मेढ़ें पानी के बहाव को कंट्रोल करेंगी. ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि निचले इलाकों में पानी नहीं भरेगा.” हालांकि, हाल के सालों में शहरीकरण के कारण ये तालाब गायब हो गए. वहीं. मेढ़ों के ज्यादातर हिस्सों पर भी अतिक्रमण हो चुका है. घटा मेढ़ की बात करें, तो वर्तमान में इसका सिर्फ कुछ अंश ही बचा है. पहले घटा मेढ़ (Bundh) 370 एकड़ में फैला हुआ था. अब ये 2 एकड़ में सिमट गया है. जहां पहले मेढ़ हुई करती थी, वहां अप रेजिडेंशियल बिल्डिंग बन चुके हैं. झाड़सा के केस में भी यही हुआ. इसका मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में है.

तालाबों के गायब होने और मेढ़ों के घटने के बीच ऐसा कोई मैकानिज्म तैयार नहीं हुआ, जिससे अरावली की पहाड़ियों से आ रहे पानी के बहाव को रोका जा सके. इसका नतीजा ये हुआ कि पानी जमा होने लगा. जब-जब भी थोड़ी बहुत बारिश होती है, गुरुग्राम में पानी भरने लगता है.

शहरीकरण का खामियाजा
GMDA के सूत्र के मुताबिक, किसी भी शहर के ड्रेनेज सिस्टम के लिए उसकी टोपोग्राफी अहम रोल अदा करती है. जलभराव की समस्या के लिए टोपोग्राफी का रोल करीब 30% होता है. लेकिन गुरुग्राम में जलभराव की सबसे बड़ी वजह क्रंकीटाइजेशन (निर्माण कार्य) को माना जा रहा है.

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गुरुग्राम मानेसर अर्बन कॉम्प्लेक्स के मास्टर प्लान 2031 के मुताबिक, शहर का करीब 60% इलाका कंक्रीटाइज्म हो जाएगा. गुरुग्राम में ग्रीन कवर पहले से ही कम है. प्रति व्यक्ति सिर्फ 5 स्क्वॉयर मीटर ग्रीन एरिया है.

जियोग्राफिक इंफॉर्मेशन सिस्टम डिविजन के हेड डॉ. सुल्तान सिंह ने बताया, “औसतन 60% बारिश के पानी का रिसाव हो रहा है. हालांकि, गुरुग्राम के मामले में सिर्फ 20% बारिश के पानी का ही रिसाव हो रहा है. बाकी 80% पानी नाले में चला जाता है. इससे ड्रेनेज सिस्टम पर एक एक्सट्रा प्रेशर बनता है.”

गुरुग्राम की हालत इसलिए भी बारिश में खराब हो जाती है, क्योंकि यहां की ज्यादातर सड़कें नैचुरल वॉटर चैनल के रास्तें पर बनाई गई हैं. गोल्फ कोर्स रोड इसका उदाहरण है. इसलिए यहां हर साल बारिश में बाढ़ जैसी स्थिति हो जाती है.

GMDA के एडिशनल CEO एमडी सिन्हा बताते हैं, “नैचुरल वॉटर चैनल के रास्तें सड़कें बनाना आसान है, इसलिए ऐसा किया जाता है. निर्माण कार्यों में तेजी के कारण न सिर्फ पानी का बहाव रुका है, बल्कि ग्राउंड वॉटर के रिचार्ज की संभावना भी बढ़ जाती है.”

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हालांकि, राज्य सरकार ने पानी के बहाव को कम करने के लिए रेनवॉटर हार्वेस्टिंग (Rainwater Harvesting) को रेजिडेंशियल, कमर्शियल और इंस्टिट्यूशनल बिल्डिंग के लिए अनिवार्य कर दिया है. लेकिन, ये नियम सिर्फ औपचारिकता साबित हो रही है. क्योंकि ज्यादातर लोग नॉन-फंक्शनल रेनवॉटर हार्वेंस्टिंग के लिए छोटा सा गड्ढा खुदवाकर छोड़ दे रहे हैं, ताकि सर्टिफिकेट मिल जाए.

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खराब ड्रेनेज इंफ्रास्ट्रक्चर
किसी भी शहर में खराब ड्रेनेज सिस्टम चीजों को बदतर कर सकता है. पूरे शहर में कुल 7 नाले हैं. एक नाला एंबिएंस मॉल के साथ सीधा नजफगढ़ नाले को जोड़ता है. जबकि दूसरा नाला DLF 1, 2, 3, सुशांत लोक-1, एमजी रोड और दूसरे इलाकों को कनेक्ट करता है. हालांकि, बाकी 5 नाले बादशाहपुर ड्रेन में खुलते हैं. इनसे बारिश के समय पानी का ओवर फ्लो होने से बाढ़ का खतरा बना रह सकता है. ज्यादातर बारिश का पानी खंडसा में आता है, जिससे यहां जलभराव की स्थिति पैदा हो जाती है.

घटा और खंडसा के बीच ड्रेन की क्षमता 2300 क्यूसेक है. लेकिन ये क्षमता घटकर 500 क्यूसेक हो गई है. 1400 क्यूसेक की क्षमता के लिए नालों को चौड़ा किया गया है. अभी 1900 क्यूसेक का काम बाकी है. इसी तरह वाटिका चौक वाले नाले में 1900 क्यूसेक पानी जाता है, जबकि इसका क्षमता 1150 है. शहर में जलभराव की स्थिति हर दिन बढ़ती जा रही है. इससे निपटना NHAI, GMDA, MCG और जिला प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है.

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