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Explainer: 4 चरण के मतदान में वोटिंग प्रतिशत पर क्या है विवाद,1.07 करोड़ वोट कैसे बढ़े?

 लोकसभा चुनाव का चरण 2024  वोटिंग प्रतिशत 2019 वोटिंग प्रतिशत
पहला चरण, 19 अप्रैल 66.14 प्रतिशत 69.43 प्रतिशत
दूसरा चरण, 26 अप्रैल 66.71 प्रतिशत  69.64 प्रतिशत
तीसरा चरण, 7 मई 65.68 प्रतिशत  68.4 प्रतिशत
चौथा चरण, 13 मई 69.16 प्रतिशत 65.52 प्रतिशत

मतदान के बाद वोट प्रतिशत कैसे बढ़ा?

ADR ने अपने याचिका में मांग की है कि चुनाव आयोग वोटिंग के 48 घंटे बाद वोटिंग प्रतिशत का फाइनल डेटा जारी करे। सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने भी यह सवाल चुनाव आयोग के वकील से किया। चुनाव आयोग ने अपनी मजबूरी बताते हुए कहा कि डेटा इतना ज्यादा है कि इसे 48 घंटे के अंदर फाइनल कर लेना संभव नहीं है। 

एडीआर ने चुनाव आयोग को वोटिंग खत्म होने के 48 घंटे के भीतर मतदान के आंकड़े जारी करने के निर्देश देने की मांग की थी. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पूछा कि “मतदान के आंकड़े को वेबसाइट पर डालने में क्या कठिनाई है”. इस पर चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि इसमें समय लगता है,  क्योंकि हमें बहुत सारा डेटा इकट्ठा करना होता है. वहीं 26 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने मतपत्रों की वापसी और ईवीएम पर संदेह की एडीआर की याचिका को खारिज कर दिया था. ईवीएस के खिलाफ संदेश को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया था, कि यह विश्वसनीय हैं.

NGO ने याचिका में क्या कहा?

असोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने वोट प्रतिशत बढ़ने का हवाला देते हुए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को बदलने की आशंका जताई थी.  दरअसल एनजीओ ने अपनी याचिका में कहा है कि लोकसभा चुनाव के पहले दो चरणों के लिए वोटिंग प्रतिशत का अनुमानित डेटा चुनाव आयोग ने 30 अप्रैल को जारी किया था. 19 अप्रैल को हुई पहले चरण की वोटिंग के 11 दिन बाद और दूसरे चरण की 26 अप्रैल को हुई वोटिंग के चार दिन बाद चुनाव आयोग ने आंकड़े जारी किए थे. चुनाव आयोग के 30 अप्रैल के आंकड़ों में करीब 5-6% की बढ़त देखी गई.

बता दें कि चुनाव आयोग के सीनियर वकीस मनिंदर सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि आयोग के सीनियर अधिकारियों ने NGO के वकील प्रशांत भषण के सभी संदेशों का जवाब दिया है. हालांकि जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस दीपांकर दत्ता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने चुनाव आयोग के अधिकारियों से बात करने के बाद 26 अप्रैल को याचिका को खारिज कर दिया था. चुनाव आयोग के वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि क्यों कि NGO के वकील प्रशांत भूषण को 2019 से लंबित याचिका में आवेदन के जरिए कुछ भी लाने का मन है, कोर्ट को इस पर विचार नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा कि ये चुनाव प्रक्रिया को बाधित करने की कोशिश है. चुनाव के चार चरण सही ढंग से संपन्न हो चुके हैं. 

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चुनाव आयोग के वकील को सुप्रीम कोर्ट का जवाब

चुनाव आयोग के वकील द्वारा भूषण के साथ तरजीही व्यवहार किए जाने वाली दलील पर सीजेआई की अगुवाई वाली बेंच ने आपत्ति जताते हुए इसे गलत आरोप बताया. उन्होंने कहा कि अदालत को अगर लगता है कि किसी मुद्दे पर कोर्ट के हस्तक्षेप की जरूरत है तो वह ऐसा ही करेंगे. चाहे उनके सामने कोई भी हो.जरूरत पड़ने पर सुनवाई के लिए बेंच पूरी रात बैठेगी. 

EC के अपडेटेड टर्नआउट में वोटों का कितना अंतर?

चुनाव आयोग के 4 चरणों के अपडेटेड टर्नआउट में 1.07 करोड़ की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. प्रत्येक चरण में मतदान वाले दिन देर रात चुनाव आयोग की तरफ से जारी मतदान के आंकड़ों और अंत में अपडेटेड आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि लोकसभा चुनावों के पहले चार चरणों की तुलना में अंतर करीब 1.07 करोड़ वोटों का हो सकता है.  379 निर्वाचन क्षेत्रों, जहां वोटिंग खत्म हो चुकी है, वहां पर हर निर्वाचन क्षेत्र में औसतन 28,000 से अधिक वोट हैं. 

हम इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंचें कि चुनाव आयोग अपने ऐप पर ‘रियल टाइम’ डेटा के अलावा, प्रत्येक चरण में हर स्टेजेस की वोटिंग पर डेटा डाल रहा है. प्रत्येक चरण में मतदान के दिन का लेटेस्ट  डेटा रात 10.30 बजे से 11.30 बजे के बीच का है. ‘अंतिम’ आंकड़ों को चुनाव आयोग ने अपने ऐप पर अनुमानित रुझान बताया है, हालांकि इनमें अभी भी डाक वोट शामिल नहीं हैं. बता दें कि चुनाव आयोग ने पहले चरण के मतदान के 11 दिन बाद दूसरे, तीसरे और चौथे चरण के मतदान के चार दिन बाद डेटा जारी किया था.

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EC के अंतिम आंकड़ों में 1.07 करोड़ वोटों का तक

चुनाव आयोग की तरफ से जारी किए गए अंतिम आंकड़े मतदान के अगले दिन देर शाम को जारी किए जाने वाले आंकड़ों से थोड़े अलग हैं. हालांकि, वे कई राज्यों में वोटिंग वाली रात को दिए गए आंकड़ों से काफी अलग हैं. क्यों कि चुनाव आयोग ने प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं के नंबर्स भी जारी किए हैं. हालांकि सिर्फ पहले दो चरणों के बाद और किसी भी पूर्ण संख्या की कमी पर विवाद है. इस तरह कैल्कुलेशन से पता चलता है कि  वोटिंग के दोनों आंकड़ों में वोटों की संख्या में अंतर पहले चरण में करीब 18.6 लाख, दूसरे चरण में 32.2 लाख, तीसरे चरण में 22.1 लाख और चौथे चरण में 33.9 लाख था, जो कि कुल मिलाकर 1.07 करोड़ तक है. वोटों की संख्या में सबसे बड़ा अंतर आंध्र प्रदेश में देखा गया. यहां पर 4.2 प्रतिशत नंबर 17.2 लाख वोटों में बदल गए. 

मतदान डेटा पर चुनाव आयोग ने क्या कहा?

लोकसभा चुनाव के प्रत्येक चरण में अंतिम वोटिंग प्रतिशत डेटा जारी करने को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के सवाल उठाए थे. हालांकि चुनाव आयोग ने इसका खंडन किया है. विपक्ष ने सवाल उठाया है कि चुनाव आयोग ने अंतिम मतदान प्रतिशत जारी करने में कई दिन लगा दिए और हर चरण के बाद डाले गए वोटों की सही संख्या का खुलासा नहीं किया, जैसा कि पिछले लोकसभा चुनावों में किया गया था. हालांकि चुनाव आयोग के अधिकारियों ने मतदान डेटा जारी करने में किसी भी देरी से इनकार किया है.

चुनाव आयोग ने विवरणों का हवाला देते हुए कहा है कि इस बार, अंतिम मतदाता मतदान डेटा वोटिंग के चार दिन बाद जारी किया गया है, जबकि 2019 में प्रत्येक चरण में मतदान के बाद कम से कम छह दिनों का अंतर था. इसके अलावा, 2019 में भी अंतिम मतदान का डेटा मतदान के प्रत्येक चरण के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिए गए आंकड़ों से ज्यादा था. पहले चरण का डेटा 11 दिनों के बाद जारी करने पर चुनाव आयोग के अधिकारियों ने कहा कि 66.1% मतदान का आंकड़ा 66% मतदान के जैसा था, जो कि 21 अप्रैल की रात को चुनाव आयोग के वोटर टर्न आउट ऐप में बताया गया था. वास्तव में, मतदान के अगले दिन बताई गई संख्या और दूरदराज के बूथों से भी विवरण आने और सभी चार चरणों के लिए चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए “अंतिम आंकड़ों” में बहुत अंतर नहीं है.

आंकड़ों के हेरफेर पर क्या कहते हैं पूर्व चुनाव आयुक्त?

चुनाव आयोग ने इस बार प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित नहीं की है, और सिर्फ प्रतिशत के रूप में वोटर टर्नआउट का विवरण देते हुए बयान जारी कर रहा है. चुनाव आयोग ने साफ कहा है कि  पोल डेटा में हेरफेर नहीं किया जा सकता है. जिसका पूर्व चुनाव आयुक्तों ने पुरजोर समर्थन किया है. पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने कहा, “सिस्टम में वोटर टर्नआउट के आंकड़ों में हेरफेर करने की कोई गुंजाइश नहीं है. पहले भी अंतिम मतदान डेटा मतदान के दिन जारी आंकड़ों से बदला गया है, क्योंकि इसे अपडेट किया जाता है.” हालांकि, उन्होंने टीओआई से कहा कि चुनाव आयोग को चेतावनियों के साथ सटीक डेटा सार्वजनिक डोमेन में डालने में संकोच नहीं करना चाहिए. इसे साझा करने में क्या बुराई है. इससे कोई नुकसान कैसे होता है. उन्होंने कहा कि अधिक पारदर्शिता का मतलब अधिक विश्वास है.

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