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मध्‍य प्रदेश चुनाव में भाजपा ने 70 साल से अधिक उम्र के उतारे थे 14 उम्मीदवार, जानिए- कितने जीते

2018 में अधिक मत प्रतिशत होने के बावजूद, भाजपा सिर्फ 109 सीटें जीतने में सफल रही

भोपाल:

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव (MP Assembly Election) में इस बार कई चौंकानेवाली चीजें देखने को मिलीं. ज्‍यादातर एग्जिट पोल गलत साबित हुए. वहीं, 70 साल से अधिक उम्र के 14 उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का भारतीय जनता पार्टी का फैसला फायदेमंद साबित हुआ. इनमें सबसे अधिक आयु का व्यक्ति 80 साल का है. भाजपा ने 230 सदस्यीय विधानसभा में 163 सीटें जीतकर राज्य में सत्ता बरकरार रखी और कांग्रेस को 66 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर धकेल दिया, जो कि 2018 के चुनाव में कांग्रेस को मिली 114 सीटों से कम है.

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राज्य के पूर्व मंत्री नागेंद्र सिंह नागौद (80) ने सतना जिले के नागौद से जीत हासिल की, जबकि नागेंद्र सिंह (79) रीवा जिले के गुढ़ से विजयी हुए. एक राजनीतिक पर्यवेक्षक और मध्य प्रदेश में पंडित दीनदयाल विचार प्रकाशन द्वारा निकाली जाने वाली मासिक पत्रिका ‘चरैवती’ के पूर्व संपादक जयराम शुक्ला ने कहा, “पिछली विधानसभा के सदस्य नागोद और सिंह, दोनों ने लगभग पांच महीने पहले चुनाव लड़ने की अनिच्छा व्यक्त की थी.” दमोह से जयंत मलैया (76), अशोक नगर जिले के चंदेरी से जगन्नाथ सिंह रघुवंशी (75), नर्मदापुरम के होशंगाबाद से सीताशरण शर्मा (73), और अनुपपुर सीट से बिसाहूलाल सिंह (73) भी चुनाव जीत गए.

2023 के चुनावों में विधानसभा में पहुंचने वाले भाजपा के अन्य उम्र दराज नेताओं में राजगढ़ जिले के खिलचीपुर से हजारीलाल दांगी (72), नर्मदापुरम के सिवनी-मालवा से प्रेमशंकर वर्मा (72), शहडोल जिले के जैतपुर से जयसिंह मरावी (71) , सागर जिले के रहली से गोपाल भार्गव (71) और जबलपुर पाटन से अजय विश्नोई (71) भी शामिल हैं.  हालांकि, श्योपुर सीट से दुर्गालाल विजय (71), बालाघाट से गौरीशंकर बिसेन (71) और ग्वालियर पूर्व से माया सिंह (73) चुनाव हार गये. मध्‍य प्रदेश चुनाव में भाजपा ने 70 साल से अधिक उम्र के जो 14 उम्मीदवारउतारे थे, उनमें से 11 ने जीत दर्ज की है.

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2016 में, सरताज सिंह (तब 76 वर्ष) को कथित तौर पर उम्र बढ़ने के कारण शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया गया था। जब वह 78 वर्ष के थे, तब उन्हें 2018 के विधानसभा चुनाव में टिकट देने से इनकार कर दिया गया था। सिंह ने भाजपा छोड़ दी और होशंगाबाद सीट से कांग्रेस के टिकट पर लड़े लेकिन असफल रहे.  इसी तरह, उस समय मंत्री रहीं कुसुम महदेले (अब 80) को भी 2018 के चुनावों के लिए टिकट नहीं दिया गया था. 

राजनीतिक पर्यवेक्षक जयराम शुक्ला ने कहा कि इस बार 70 से अधिक उम्र वालों को टिकट देने का भाजपा का कदम 2018 के चुनावों में मिली मामूली हार के कारण हो सकता है.  2018 में अधिक मत प्रतिशत होने के बावजूद, भाजपा सिर्फ 109 सीटें जीतने में सफल रही, जबकि कांग्रेस 114 सीटों पर विजयी हुई, जो 230 सदस्यीय सदन में बहुमत से कुछ ही कम थी.  शुक्ला ने याद किया कि रामकृष्ण कुसमरिया (81) को 2018 में टिकट नहीं दिया गया था और उन्होंने दमोह और पथरिया से निर्दलीय चुनाव लड़ा था. 

इससे पहले, राजनीतिक पर्यवेक्षक गिरजा शंकर ने बताया था कि भाजपा ने कभी भी आधिकारिक घोषणा नहीं की है कि वह 75 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को टिकट नहीं देगी. उन्होंने कहा कि किसी भी पार्टी के लिए जीत की संभावना सबसे ज्यादा मायने रखती है. शंकर ने दावा किया, राजनीतिक दल (चुनाव में) प्रयोग करते हैं और उनसे सीखते हैं.

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