जस्टिस वर्मा नोट कांड की पुलिस जांच है जरूरी, पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी की राय

नई दिल्ली:
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाले सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने जस्टिस यशवंत वर्मा को तबादला इलाहाबाद हाई कोर्ट में करने की सिफारिश की है.दिल्ली हाई कोर्ट ने जस्टिस वर्मा से कामकाज वापस ले लिया है.कॉलेजियम के प्रस्ताव में कहा गया है,”सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 20 और 24 मार्च, 2025 को आयोजित अपनी बैठकों में दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट में वापस भेजने की सिफारिश की है.” जस्टिस वर्मा के तबादले को लेकर The Hindkeshariने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से बातचीत की. पेश है उनसे बातचीत के संपादित अंश.
क्या तबादले का ‘नोट कांड से कोई संबंध है’
जस्टिस वर्मा के तबादले के सवाल पर मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह कहने का कोई मतलब नहीं है कि इस तबादले का ‘नोट कांड’ के साथ कोई संबंध नहीं है. उन्होंने कहा कि यह तबादला ही नोट कांड की वजह से किया गया है. उन्होंने कहा कि उनके लिए तबादला क्यों हुआ यह जरूरी नहीं,क्योंकि जस्टिस वर्मा के पास पिछले कई दिनों से कोई न्यायिक काम नहीं था. ऐसे में वो दिल्ली में अपने घर में बैठें या इलाहाबाद में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. उन्होंने कहा कि सबसे जरूरी बात यह है कि यह तय किया जाए कि उन्होंने आर्थिक अपराध किया है या नहीं.
पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी का मानना है कि इस मामले की पुलिस से जांच कराने की जरूरत है.
इस मामले को लेकर आम जनता में बन रहे परशेप्शन के सवाल पर रोहतगी ने कहा कि यह मामला बिल्कुल अलग है, क्योंकि एक जज और एक ब्यूरोक्रेट की स्थिति अलग-अलग होती है. उन्होंने कहा कि जज जो फैसले सुनाते हैं, उससे एक पार्टी संतुष्ट होती है और दूसरी असंतुष्ट. उन्होंने कहा कि असंतुष्ट पार्टी को लगता है कि जज ने रिश्वत ली होगी या किसी के प्रभाव में रहा होगा. उन्होंने कहा कि हर स्तर के जजों के खिलाफ रोज-रोज शिकायतें आती हैं. ऐसे में आप हर केस की पुलिस जांच नहीं करवा सकते हैं. अगर जांच की तलवार हर जज के सिर पर लटकी रहेगी तो वह ठीक से काम नहीं कर पाएगा.
जज के खिलाफ जांच किसके आदेश से होगी
रोहतगी ने कहा कि संसद के पास जजों के खिलाफ महाभियोग चलाने का अधिकार है, वो इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पास भी इस तरह के मामलों की जांच कराने की व्यवस्था है. वह कुछ मामलों की मेरिट के आधार पर जांच करा सकता है. किसकी जांच होगी और किसकी नहीं, इसका फैसला चीफ जस्टिस या चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ही करते हैं. उन्होंने कहा कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है, किसी जज पर भी मुकदमा चलाया जा सकता है, इसके लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की इजाजत लेनी होगी.

दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस वर्मा के घर के पास से मिले जले हुए नोट.
कैसी है पुलिस की भूमिका
जज के आवास के पास से जले हुए नोट बरामद होने के बाद लोगों का विश्वास न्यायपालिका में बना रहे इसके लिए अदालत को क्या करने चाहिए. इस सवाल के जवाब में मुकुल रोहतगी ने कहा कि नोटों की रिकवरी नहीं हुई है. कोई सबूत नहीं है. उन्होंने कहा कि सभी सबूतों को पुलिस और फायर विभाग ने नष्ट कर दिया है. उन्होंने कहा कि इस मामले में जले हुए नोटों से भी अधिक अच्छे नोट मैंने एक अखबार में देखे हैं, लेकिन वो नोट गए कहां. उन्होंने का कि अगर किसी जूनियर इंजीनियर के पास पांच लाख रुपये भी मिल जाएं तो उसे तत्काल बर्खास्त कर दिया जाता है. आयकर विभाग को बुला लिया जाता है. लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ.उन्होंने कहा कि इस मामले में अभी कोई सबूत नहीं है. केवल कूड़ा मिला है, जिसे नगर निगम ने निपटा दिया है.इस मामले में पुलिस का काम देखकर मैं आश्चर्यचकित हूं.उन्होंने कहा कि यह ऐसा मामला हो सकता था, जिसमें पैसा मिला हो. लेकिन पैसा है कहां. उन्होंने कहा कि इस मामले की पुलिस से जांच कराने की जरूरत है, तीन जजों से नहीं, इससे इस मामले में कोई मदद नहीं मिलेगी.
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