देश

कमजोर हुई है उत्तर प्रदेश विधानसभा की गरिमा, The Hindkeshariसे बोले नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय


लखनऊ:

उत्तर प्रदेश विधानसभा के बजट सत्र में पिछले हफ्ते भाषा को लेकर जमकर हंगामा हुआ. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मदरसों से निकलने वाले छात्रों के लिए कुछ कठोर शब्दों का प्रयोग किया. इसी तरह से उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने समाजवादी पार्टी के संस्थापक रहे मुलायम सिंह यादव के लिए भी कठोर शब्दों का इस्तेमाल किया. इस पर विपक्षी समाजवादी पार्टी के सदस्यों ने आपत्ति जताई. विधानसभा में सत्ता पक्ष और विपक्ष की भाषा से नेता विपक्ष माता प्रसाद पांडेय काफी आहत हैं.वो प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार में विधानसभा अध्यक्ष रह चुके हैं.नेता प्रतिपक्ष ने इस विषय पर ‘ The Hindkeshariइंडिया’ से एक खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने सदन में भाषा की मर्यादा और विधानसभा के सत्रों को लेकर सरकार के रुख समेत कई मुद्दों पर अपनी बेवाक राय रखी. आप भी पढ़िए माता प्रसाद पांडेय से हुई बातचीत के संपादित अंश.    

सदन में विधानसभा अध्यक्ष का अधिकार

नेता विपक्ष माता प्रसाद पांडेय कहते हैं कि सदन की एक मर्यादित भाषा होती है. वहां सब कुछ तय है कौन से शब्द बोले जा सकते हैं और कौन से नहीं. लेकिन आजकल वह मर्यादा धड़ल्ले से तोड़ी जा रही है. सदन में न तो सीधे किसी पर आरोप लगाया जा सकता है और न ही सीधे किसी को कुछ कहा जा सकता है. सदन में झूठ को असंसदीय शब्द माना गया है, इसलिए अगर कोई सदस्य झूठ शब्द का इस्तेमाल करता है तो उसे कार्रवाई से निकाल दिया जाता है. वो कहते हैं कि हाल के दिनों में सदन की गरिमा कमजोर हुई है. यह विधानसभा अध्यक्ष का अधिकार है कि अगर वो किसी सदस्य के भाषण में कोई असंसदीय शब्द पाते हैं, तो उसे कार्रवाई से निकाल सकते हैं. लेकिन आजकल यह हो नहीं रहा है. वो कहते हैं कि विधानसभा अध्यक्ष से मिलकर अपील करुंगा कि सदन में जो असंसदीय भाषा प्रयोग की जा रही है, उसे कार्रवाई से निकाल दिया जाए. नेता विपक्ष का कहना है कि सदन में भाषण के दौरान जब कोई सदस्य असंसदीय शब्द का प्रयोग करता है या अमर्यादित भाषा का प्रयोग करता है तो उस पर हस्तक्षेप तो किया जाता है, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई होती हुई दिखती नहीं है. 

नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय ने कहा है कि वो विधानसभा अध्यक्ष से मिलकर अपनी बात रखेंगे.

यह भी पढ़ें :-  उन्हें लगता है कि यह उनका जन्मसिद्ध अधिकार...: कुणाल कामरा विवाद पर सीएम योगी आदित्यनाथ

माता प्रसाद पांडेय 2012 से 2017 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष थे. उनके कार्यकाल में सदन में असंसदीय शब्दों या अमर्यादित भाषा के प्रयोग के सवाल पर वो कहते हैं कि उनके कार्यकाल में अगर कोई सदस्य असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल करता था या अमर्यादित भाषा बोलता था तो उसे कार्यवाही से मैं निकाल देता था.उन्होंने बताया कि जब वो विधानसभा अध्यक्ष थे तो 12 घंटे आसन पर बैठता था और हर चीज पर रखता था. लेकिन इस विधानसभा के अध्यक्ष जी दिल के मरीज हैं और कुछ देर ही पीठ पर बैठते हैं, उनके बाद अधिष्ठाता मंडल सदन की कार्यवाही का संचालन करता है.लेकिन वो लोग इतनी बातें जानते नहीं हैं, इसलिए मैं अध्यक्ष से मिलकर मांग करुंगा कि वो इस तरह की कार्यवाही पर रोक लगाएं. 

सदन में जल्दबाजी में क्यों हो रहे हैं विधायी कार्य

विधानसभा और विधान परिषद में कम बैठकों के सवाल पर पांडेय कहते हैं कि पहले की तुलना में सदन में कार्यवाही अब कम हो रही है. वो कहते हैं कि पहले बजट के लिए 21 दिन या 29 दिन निर्धारित होते थे. लेकिन अब इन दिनों की संख्या कम कर दी गई है. वो कहते हैं कि बजट सत्र कितने दिन चलेगा, विधानसभा अध्यक्ष या विधानसभा तय नहीं करती है, यह सरकार के सलाह पर तय करते हैं. लेकिन अब सत्रों के दिनों की संख्या कम कर दी गई है. विपक्ष के लोग सरकार से बजट सत्र को बढ़ाने की मांग करते हैं, लेकिन उनकी मांग अनसुनी रह जाती है. इसलिए सत्र कम दिन में खत्म हो जाता है. 

यह भी पढ़ें :-  मार्च 2026 तक वामपंथी उग्रवाद पूरी तरह होगा खत्म : अमित शाह

नेता प्रतिपक्ष बताते हैं कि चार दिन राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा के लिए निर्धारित है. इसी तरह से बजट पर चर्चा के लिए चार दिन तय है. उसी तरह से तीन दिन हर एक विभाग के बजट पर चर्चा होनी चाहिए. इससे पहले लोक निर्माण विभाग (पीडब्लूडी) पर दो दिन, सिंचाई विभाग पर दो दिन, ग्रामीण विकास पर दो दिन और स्वास्थ्य विभाग पर दो दिन तक लंबी-लबीं चर्चा होती थी, इसमें सदस्य अपनी राय रखते थे, लेकिन अब यह नहीं हो पा रहा है. अब एक ही दिन में दो-दो घंटे की चर्चा कराकर बजट पास करा लिया जा रहा है. वो कहते हैं कि इसमें विधानसभा अध्यक्ष का दोष नहीं है, बल्कि यह सरकार का काम है. वो कहते हैं कि सरकार अपने काम की ज्यादा चर्चा नहीं कराना चाहती है. वह जानती है कि अगर ज्यादा चर्चा होगी तो उसकी पोल खुल जाएगी. इसलिए जल्दी-जल्दी चर्चा कराकर सत्र को खत्म कर दिया जाता है. 

समाजवादी पार्टी भी नहीं होने देते थी सदन में चर्चा

संसद में कम होती बहस की परंपरा के सवाल पर वो कहते हैं कि बजट और विधायी कार्य विधानसभा के मुख्य काम हैं. लेकिन आजकल बहुत से महत्वपूर्ण विधेयक आते हैं, लेकिन अधिकारी उसकी कॉपी तक नहीं उपलब्ध कराते हैं. वो कहते हैं कि अधिकारी शाम को विधेयक रखते हैं और अगले दिन उसे पारित कराना चाहते हैं, क्योंकि पास काम अधिक है और समय कम होता है. इसलिए विधायी कार्यों के लिए समय नहीं मिल पाता है. विधानसभा सत्रों के दिनों की संख्या सरकार कम क्यों कर रही है. इस सवाल पर नेता विपक्ष ने कहा कि जब विधानसभा का सत्र चलता है तो कई नियमों के तहत सरकार के कामकाज की आलोचना की जाती है और उसके कमियों को उजागर किया जाता है, इससे सरकार की बदनामी होती है, इससे बचने के लिए ही सरकारों ने सत्र के दिनों की संख्या कम कर दी है. वो कहते हैं कि यह प्रवृत्ति केवल बीजेपी की ही सरकार में नहीं है, इससे पहले जब समाजवादी पार्टी की सरकार में भी यही प्रवृत्ति थी. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है. 

यह भी पढ़ें :-  PDA हमारी रणनीति, सपा अभी भी INDIA गठबंधन का हिस्सा: कांग्रेस के साथ 'मतभेद' पर बोले अखिलेश यादव

ये भी पढ़ें: राम मंदिर पर हमले की साजिश रचने वाला गिरफ्तार, ISI से है कनेक्शन, जानिए इसकी पूरी कुंडली


Show More

संबंधित खबरें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button