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लोकसभा चुनाव 2024: पूर्वांचल के इन जिलों में 'हवाओं का रुख' बदल सकते हैं बृजभूषण शरण सिंह

कितनी बार सांसद चुने गए हैं बृजभूषण शरण सिंह?

बाहुबली की छवि रखने वाले बृजभूषण शरण सिंह अब तक छह बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं.इनमें से वो पांच बार भाजपा और एक बार सपा के टिकट पर चुनाव जीते हैं. वो दो बार गोण्डा, तीन बार कैसरगंज और एक बार बलरामपुर (अब श्रावस्ती) से लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं.बलरामपुर वह सीट हैं, जहां से भाजपा के संस्थापक और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने संसदीय जीवन का आगाज किया था.

बृजभूषण शरण सिंह की पत्नी केतकी सिंह भी एक गोण्डा से सांसद रह चुकी हैं.उनके बड़े बेटे प्रतीक भूषण सिंह गोण्डा से भाजपा के विधायक हैं.वहीं उनके छोटे बेटे करन भूषण सिंह अपना पहला चुनाव लड़ रहे हैं. 
कितने जिलों में है बृजभूषण शरण सिंह का प्रभाव?

दबंग राजपूत नेता की पहचान रखने वाले बृजभूषण शरण सिंह बड़ी संख्या में शैक्षणिक संस्थान चलाते हैं. ये संस्थान उनके गृह जिले गोण्डा के अलावा बहराइच, बलरामपुर, अयोध्या और श्रावस्ती जिले में फैले हुए हैं. इसलिए उनका प्रभाव भी इन जिलों में भरपूर है. वो जिन संसदीय क्षेत्रों से चुनाव जीते हैं, उनमें तीन जिले गोण्डा, बहराइच और बलरामपुर आते हैं. इनके अलावा बृजभूषण शरण सिंह का प्रभाव पूर्वांचल के श्रावस्ती, अयोध्या, बस्ती, अंबेडकरनगर, सुल्तानपुर और गोरखपुर तक में है.

अयोध्या में बने राम मंदिर के लिए चले आंदोलन में भी बृजभूषण शरण सिंह एक प्रमुख चेहरा थे. छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद सीबीआई ने लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी समते जिन 40 लोगों को गिरफ्तार किया था, उनमें बृजभूषण शरण सिंह का नाम भी शामिल था. राम मंदिर आंदोलन में शामिल होने की वजह से बृजभूषण शरण सिंह की अयोध्या के साधु-संतों में भी अच्छी पहचान है. यह उस समय नजर आया जब महिला पहलवानों के आरोपों के बाद अयोध्या के कई साधु-संत उनके समर्थन में आगे आ गए थे. 

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अपने इलाके में बृजभूषण शरण सिंह की छवि केवल एक बाहुबली की ही नहीं है, वो एक लोकप्रिय नेता की भी पहचान रखते हैं. उन्हें हर जाति-धर्म के लोगों का समर्थन मिलता रहा है. भाजपा में होने के बाद भी मुसलमान बड़ी संख्या में बृजभूषण शरण सिंह के समर्थक हैं.उनके घर पर रोज लगने वाले जनता दरबार में आने वाले हर व्यक्ति की समस्या सुनी जाती है और उनका समाधान कराया जाता है. 

भाजपा को किस बात का था डर?

बृजभूषण शरण सिंह राजपूतों में भी काफी लोकप्रिय हैं. बीजेपी ने इस बार गाजियाबाद से पूर्व सेना अध्यक्ष जनरल वीके सिंह का टिकट काट दिया. गुजरात के पुरुषोत्तम रूपाला के बयान से आहत राजपूत वीके सिंह का टिकट कटने से और आहत हो गए. इसे देखते हुए बीजेपी ने बीच का रास्ता निकालते हुए बृजभूषण शरण सिंह की जगह उनके बेटे को टिकट दे दिया. भाजपा के इस फैसले को बृजभूषण शरण सिंह के दबदबे के तौर पर देखा गया.भाजपा अगर बृजभूषण शरण सिंह का टिकट काटती या उनके बेटे को उम्मीदवार नहीं बनाती तो उसे कैसरगंज के अलावा पूर्वांचल के करीब 10 जिलों में उसकी मुश्किलें बढ़ जातीं. इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि कैसरगंज पर सपा ने भी अपने उम्मीदवार का ऐलान तब तक नहीं किया, जबतक की भाजपा ने नहीं किया. अगर भाजपा बृजभूषण शरण सिंह को टिकट नहीं देती तो सपा उन्हें अपना उम्मीदवार बनाने के लिए तैयार बैठी थी.

बेटे की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद से ही बृजभूषण शरण सिंह ने खुद को लाइमलाइट से दूर रखा हुआ है.यहां तक कि करन भूषण सिंह तीन मई को पर्चा दाखिल करने गए तब भी बृजभूषण शरण सिंह उनके साथ नहीं गए. नामांकन वाले दिन बृजभूषण शरण सिंह ने शक्ति प्रदर्शन करने के लिए एक रैली का आयोजन किया. इसमें उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य शामिल हुए थे. बेटे की उम्मीदवारी की घोषणा से पहले बृजभूषण सिंह लगातार रैलियां कर रहे थे. लेकिन अब उन्होंने रैलियां करनी बंद कर दी हैं. अब वे पर्दे के पीछे रहकर अपने बेटे के चुनाव अभियान का संचालन कर रहे हैं.

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बृजभूषण शरण सिंह के बेटे का चुनाव प्रचार अभियान

करन के बड़े भाई प्रतीक भूषण सिंह भी छोटे भाई के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं. करन भूषण सिंह अपने चुनाव प्रचार में अपने पिता के ही नाम पर वोट मांगते हुए नजर आ रहे हैं. 

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कैसरगंज ब्राह्मण बाहुल्य सीट है, जिनकी आबादी करीब 30 फीसदी है. इनके अलावा अलावा करीब 20 फीसदी राजपूत, 10 फीसदी कुर्मी, 10 फीसदी दलित और 15 फीसदी मुसलमान शामिल हैं.सपा ने करन के खिलाफ रामभगत मिश्र को मैदान में उतारा है. मिश्र सपा से पहले कांग्रेस में थे. वहीं बसपा ने स्थानीय व्यापारी नीरज पांडेय को टिकट दिया है. 

साल 2019 के चुनाव में बृजभूषण सिंह ने बसपा के चंद्रदेवराम यादव को दो लाख 61 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया था. 

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