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अब ठंडी फुहारें लाएगी मौसम की छोटी बेटी 'ला नीना', समझिए कुदरत का 'बेटा-बेटी' कनेक्शन

लेकिन ये तो बात तब की है जब पृथ्वी के वायुमंडल और प्रशांत महासागर पर सभी चीजें एक सामान्य हों. लेकिन क्या हो अगर जो ट्रेड विंड दक्षिण अमेरिका के पास से समुद्र के ऊपरी सतह के गर्म पानी को ऑस्ट्रेलिया और एशिया की तरफ ले जाती हों वो ही हल्की पड़ जाएं. और दक्षिण अमेरिका के पास की सतह पर अपवेलिंग हो ही ना. 

ऐसा होने पर जो पानी समुद्र की सहत पर गरम रहता था वो वहीं या उससे थोड़ा आगे पीछे के इलाके में मूव करके लगातार गरम होता रहेगा. यानी जो बारिश पहले ऑस्ट्रेलिया और एशिया के देशों में इन गरम हवाओं के बादल बनने के बाद होती थी वो अब प्रशांत महासागर के ही बीच में कहीं हो जाएगी. क्योंकि ट्रेड विंड्स में इतनी ताकत ही नहीं थी कि वो इन हवाओं को धकेल कर ऑस्ट्रेलिया या एशिया तक पहुंचा पाए. 

ट्रेड विंड की स्पीड और चक्र में आए इस बदलाव का असर ऑस्ट्रेलिया और एशिया के देशों में देखने को मिलता है और इन देशों में जबरदस्त गर्मी पड़ती है. अल नीनो एक साइकिल की तरह होने वाला एक इफेक्ट है, हालांकि ये साइकिल कितने साल में दोबारा दिखेगा ये कुछ पक्का नहीं होता है. कई बार ये साइकिल तीन साल में तो कई बार चार या सात साल में भी देखने को मिलता है. लेकिन जब ये होता है तो इसका असर 6 से 12 महीने तक दिखता है. और ये जब भी होता है तो उस दौरान दुनिया भर में वेदर का पैटर्न बदल जाता है. 

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ऑस्ट्रेलिया और साउथ ईस्ट एशिया में इसकी वजह से ज्यादा गर्मी पड़ती है. इन देशों में हीट वेव का रिस्क बढ़ जाता है. जिन इलाकों में जंगल होते हैं वहां फॉरेस्ट फायर का रिस्कर भी बढ़ जाता है. 

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ला नीनो क्या होता है ? 

अल नीनो का असर जब अपने चरण पर पहुंच जाता है तो फिर ला नीनो कहा जाता है. इससे होता ये है कि जो ट्रेड विंड्स दक्षिण अमेरिका से ऑस्ट्रेलिया और एशिया की तरफ चल रहीं थी वो पहले की तुलना में और तेज चलने लगती हैं. इसका असर ये होता है कि दक्षिण अमेरिका के तटों के पास समुद्र का ठंडा पानी समुद्र के तल से और तेजी से ऊपर की तरफ आता है. वहीं, दूसरी तरफ समुद्र की सतह पर जो गरम पाना था वह मजबूत ट्रेड विंड्स की वजह से ऑस्ट्रेलिया और एशिया के देशों की तरफ तेजी से बढ़ती है और फिर इन महाद्वीप के देशों में जबरदस्त बारिश होती है. मौसम वैज्ञानिक मानते हैं कि अल नीनो की तुलना में ला नीनो का चक्र थोड़ा लंबा होता है. ये एक से चार साल तक भी चल सकते हैं. 

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अल नीनो की वजह से ही बीते कुछ सालों से पड़ रही है भीषण गर्मी 

जानकारों का मानना है कि एशिया और ऑस्ट्रेलिया में बीते कुछ सालों से जो भीषण गर्मी पड़ रही है उसके पीछे की एक सबसे बड़ी वजह अल नीनो इफेक्ट ही है. दक्षिण अफ्रीका के देशों जो सूखा पड़ रहा है वो भी इसी की वजह से होता है. जानकार मानते हैं कि दुबई जहां बारिश होना कोई समान्य बात नहीं है वहां बीते दिनों जो मुसलाधार बारिश हुई थी उसके पीछे भी इसी अल नीनो इफेक्ट को जिम्मेदार बताया जाता है. 

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क्लाइमेट चेंज की वजह से और ज्यादा मजबूत हो रहा है अल नीनो 

वैज्ञानिकों का मानना है कि इंसानों द्वारा किए गए क्लाइमेट चेंज की वजह से इस अल नीनो का असर और भी ज्यादा देखने को मिल रहा है. उनके अनुसार क्लाइमेट चेंज के कारण अल नीनो और मजबूत हो रहा है. यानी अल नीनो की वजह से  जो हीट वेव की स्थिति बन रही है वो और खतरनाक होते जा रहे हैं. इस इफेक्ट के कारण जिन भी इलाकों में बारिश हो रही है और पहले की तुलना में बेहद भयावह होती दिख रही है. 

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Photo Credit: Pexels/ Kellie Churchman

मानसून और अल-नीनो इफेक्ट का क्या है रिश्ता 

भारत में मानसून के आने के समय में हर साल उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है. मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार इस उतार-चढ़ाव के पीछे का सबसे बड़ा कारण है अल-नीनो इफेक्ट. इसी इफेक्ट की वजह से भारत में आने वाले मानसून की रफ्तार भी कम या ज्यादा होती रहती है. आम तौर पर जब प्रशांत महासागर के ऊपर से बहने वाली ट्रेड विंड्स धीमी रफ्तार से चलती है तो इसका असर अल-नीनो इफेक्ट पर दिखता है और इसके असर से भारत में आने वाले मानसून की रफ्तार कम हो जाती है. होता कुछ ऐसा है कि जब प्रशांत महासागर के ऊपर की गर्म हवा को ट्रेड विंड आगे नहीं धकेल पाती तो गर्मी की वजह से जो पानी भाप में परिवर्ति हुए थे तो ऑस्ट्रेलिया या भारत जैसे देश तक उस मात्रा में नहीं पहुंच पाती हैं जितनी पहुंचनी चाहिए. इसकी वजह से भारत के कई इलाकों में मानसून की बारिश हो भी नहीं पाती है. 

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