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ब्रिटेन में भारतीय पेशेवरों की संख्‍या सर्वाधिक, जानिए रिपोर्ट में और क्‍या है खास


लंदन:

ब्रिटेन में पेशेवर कामगारों की सर्वाधिक संख्या वाला जातीय समूह भारतीय है और सार्वजनिक नीति के उद्देश्यों से सभी जातीय अल्पसंख्यकों को एकल समूह के रूप में मानना ​​अब देश में अर्थहीन हो गया है. एक नए थिंक-टैंक के विश्लेषण में सोमवार को यह निष्कर्ष निकाला गया. ‘पॉलिसी एक्सचेंज’ द्वारा प्रकाशित ‘आधुनिक ब्रिटेन का एक रूपचित्र: जातीयता और धर्म’ देश में विभिन्न जातीय समूहों की जनसांख्यिकीय, शैक्षिक, स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति की गहन पड़ताल को दर्शाता है.

रिपोर्ट में सरकार के नेतृत्व वाली एक नई राष्ट्रीय एकीकरण रणनीति का आह्वान किया गया है, जिसमें ब्रिटेन में बच्चों को समावेशी तरीके से अपनी राष्ट्रीय विरासत पर गर्व करना सिखाया जाए जो देश के इतिहास और परंपराओं को प्रतिबिंबित करें.

पॉलिसी एक्सचेंज’ द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में क्‍या है?

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘पेशेवर श्रमिकों की उच्चतम संख्या वाला जातीय समूह भारतीय था. ब्रिटिश भारतीयों के पास घर के स्वामित्व की दर भी सबसे अधिक है, जिनमें से 71 प्रतिशत ऐसी संपत्ति में रहते थे जिन पर उनका या तो सीधा स्वामित्व था या बंधक/ऋण या साझा स्वामित्व के तहत स्वामित्व था.”

इसमें कहा गया है, ‘‘वाक्यांश ‘जातीय अल्पसंख्यक’ में निहित विविधता अब व्यापक है – प्रत्येक अल्पसंख्यक समूह के भीतर और विभिन्न अल्पसंख्यक समूहों के बीच. सार्वजनिक नीति के उद्देश्यों से जातीय अल्पसंख्यकों को एक अखंड समूह के रूप में मानना ​​अब अर्थहीन हो गया है.”

इसमें कहा गया है कि ‘दक्षिण एशियाई’ जैसी श्रेणियां न केवल ब्रिटेन के भारतीयों, पाकिस्तानियों और बांग्लादेशियों के बीच उल्लेखनीय आर्थिक और सामाजिक असमानताओं को छिपाने का काम करती हैं – बल्कि इसका मतलब यह भी है कि इन बड़े समूहों के बीच विविधता के बहुत वास्तविक रूप को चिह्नित नहीं किया जाता.

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जनगणना और अन्य सांख्यिकीय आंकड़ों का विश्लेषण

रिपोर्ट में 2021 की ब्रिटिश जनगणना के आंकड़े और अन्य सांख्यिकीय संसाधनों का विश्लेषण किया गया है जो इसे रेडफील्ड और विल्टन द्वारा कराए गए मतदान के साथ जोड़ती है. सभी जातीयता के 2,000 लोगों के राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधि नमूने के अलावा, 1,400 जातीय अल्पसंख्यक उत्तरदाताओं के ‘बूस्टर’ नमूनों का उपयोग किया गया था – अश्वेत अफ्रीकी, अश्वेत कैरेबियन, भारतीय, पाकिस्तानी, बांग्लादेशी, चीनी और मिश्रित नस्ल वाले जातीय समूहों से प्रत्येक समूह से 200 नमूने लिये गये थे.

विश्लेषण के प्रमुख निष्कर्षों में यह भी शामिल है कि लगभग चार में से तीन लोग (सर्वेक्षण में शामिल 72 प्रतिशत लोग) मानते हैं कि बच्चों को ब्रिटिश इतिहास पर गर्व करना सिखाया जाना चाहिए, साथ ही बहुमत का यह भी मानना ​​​​है कि ब्रिटेन ऐतिहासिक रूप से दुनिया में एक अच्छाई की ताकत रहा है.

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को The Hindkeshariटीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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