''राजीव गांधी से ज्यादा बुद्धिमान हैं राहुल'' : जानिए- सैम पित्रोदा ने यह क्यों कहा और क्या दिए तर्क?
नई दिल्ली:
लंबे समय से गांधी परिवार के वफादार सैम पित्रोदा (Sam Pitroda) ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) और उनके बेटे राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को “भारत की अवधारणा का संरक्षक” बताया. उन्होंने कहा कि राहुल अपने पिता से ज्यादा बुद्धिमान हैं और वह रणनीति बनाने के मामले में भी उनसे बेहतर हैं. शिकागो से ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक साक्षात्कार में पित्रोदा ने जोर देकर कहा कि लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी में प्रधानमंत्री बनने के सारे गुण हैं.
‘इंडियन ओवरसीज कांग्रेस’ के अध्यक्ष पित्रोदा ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के इन आरोपों को ‘झूठा’ करार देते हुए खारिज किया कि राहुल ने अपनी पिछली विदेश यात्राओं के दौरान भारत सरकार की आलोचना करने वाली टिप्पणियां की थीं.
राहुल की अगले हफ्ते प्रस्तावित अमेरिका यात्रा के बारे में पित्रोदा ने कहा कि वह अमेरिका की आधिकारिक यात्रा पर नहीं आ रहे हैं, लेकिन इस दौरान उन्हें कैपिटल हिल (अमेरिका का संसद परिसर) में विभिन्न लोगों से ‘व्यक्तिगत स्तर’ पर बातचीत करने का मौका मिलेगा.
पित्रोदा ने कहा, “राहुल निश्चित तौर पर राष्ट्रीय प्रेस क्लब में प्रेस के साथ बातचीत करेंगे, वह थिंक टैंक के लोगों से मिलेंगे और जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में लोगों से मुखातिब होंगे, जिसका वाशिंगटन डीसी में भी उतना ही महत्व है.”
राहुल गांधी अमेरिका की यात्रा पर जाएंगे
राहुल लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद संभालने के बाद पहली बार अमेरिका की यात्रा पर जाएंगे. वह आठ से 10 सितंबर तक अमेरिका में होंगे, जिस दौरान वह जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय और टेक्सास यूनिवर्सिटी में लोगों के साथ संवाद करने के साथ ही वाशिंगटन डीसी और डलास में कई महत्वपूर्ण बैठकें करेंगे.
राजीव गांधी और राहुल गांधी के बीच समानताओं और अंतर के बारे में पूछे जाने पर पित्रोदा ने कहा कि उन्होंने राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह, वीपी सिंह, चंद्र शेखर और एचडी देवेगौड़ा सहित कई प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया है.
उन्होंने कहा, “मुझे कई प्रधानमंत्रियों के साथ बहुत करीब से काम करने का मौका मिला, लेकिन राहुल और राजीव के बीच अंतर शायद यह है कि राहुल कहीं अधिक बुद्धिमान और बेहतर रणनीतिकार हैं, राजीव काम करने में ज्यादा यकीन रखते थे. दोनों का डीएनए एक जैसा है, लोगों के लिए उनकी चिंताएं एवं भावनाएं समान हैं, वे वास्तव में सभी के लिए ‘बेहतर भारत’ बनाने में विश्वास करते हैं, वे वास्तव में सरल लोग हैं. उनकी कोई बड़ी निजी महत्वाकांक्षाएं नहीं हैं.”
राहुल अपने पिता राजीव से बेहतर रणनीतिकार
पित्रोदा ने कहा, “राहुल अपने पिता राजीव से बेहतर रणनीतिकार हैं. दोनों अलग दौर के नेता हैं, जिन्होंने अलग मुद्दों का सामना किया और जिनके अनुभव भी अलग हैं. बेचारे राहुल को जीवन में दो बड़े झटके (अपनी दादी और अपने पिता की मौत) झेलने पड़े. इसलिए उनके सामने अलग चुनौतियां रही हैं.”
उन्होंने कहा कि राहुल और राजीव के सिद्धांत एकदम स्पष्ट रहे हैं, दोनों “भारत की उस अवधारणा के संरक्षक” हैं, जिसकी कल्पना कांग्रेस ने की थी और पार्टी का हर नेता उस पर यकीन करता था.
पित्रोदा ने कहा, “नरसिम्हा राव इसमें विश्वास करते थे, (मल्लिकार्जुन) खरगे जी इसमें विश्वास करते हैं और सामूहिक रूप से यह हमारा काम है कि हम उस भारत का निर्माण करें, जिसकी हमारे संस्थापकों ने कल्पना की थी.” उन्होंने दावा किया कि राहुल गांधी की छवि आखिरकार वैसी ही बन रही है, जैसे वह हैं और दो ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने इसमें मदद की है.
बदनाम करने के लिए करोड़ों डॉलर खर्च किए गए
पित्रोदा ने कहा, “पहली बात तो यह कि मीडिया में बनाई गई छवि एक व्यक्ति (राहुल) के खिलाफ चलाए गए सुनियोजित अभियान पर आधारित थी, जिसमें उन्हें बदनाम करने के लिए लाखों-करोड़ों डॉलर खर्च किए गए जबकि वह उच्च शिक्षा प्राप्त है. लेकिन लोगों ने कहा कि वह कभी कॉलेज नहीं गए.”
उन्होंने कहा, “लोगों ने बहुत बड़ी राशि खर्च कर यह छवि बनाई. यह एक झूठी छवि थी. मैं राहुल गांधी को सारा श्रेय देता हूं कि वह लंबे समय तक इसके खिलाफ लड़े और अपनी असली छवि बचाए रखी. कोई और ऐसा नहीं कर पाता.”
पित्रोदा (82) ने कहा, “किसी व्यक्ति पर, उसके परिवार पर, उसकी विरासत पर, उसकी पार्टी के विचार पर, आए दिन हमला करना गलत है. ये मतलबी लोग हैं, जो जानबूझकर झूठ का पुलिंदा तैयार करते हैं, धोखा देते हैं और व्यक्तियों के बारे में हर तरह की बातें कहते हैं. मैंने यह बात कुछ हद तक अपने मामले में भी देखी है.”
उन्होंने दावा किया कि जनता की धारणा बदल गई है और झूठ आखिरकार पकड़ में आ रहा है, क्योंकि लोगों को एहसास होने लगा है कि मीडिया स्वतंत्र नहीं है और विमर्श व्यक्तियों की छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए तैयार किए जाते हैं.
कांग्रेस नेता ने कहा, “आप हर समय सभी लोगों से झूठ नहीं बोल सकते. लोगों को अब यह नजर आने लगा है कि “दो करोड़ नौकरियां पैदा करने” का वादा किया गया था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. कहा गया था कि काला धन वापस लाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.”
राहुल पीएम बनने के लिए बहुत सक्षम
यह पूछे जाने पर कि क्या वह राहुल गांधी को देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखते हैं, पित्रोदा ने कहा कि यह भारत के लोगों को तय करना है. उन्होंने कहा, “मेरे व्यक्तिगत अनुभव से मैं पक्षपाती हो सकता हूं, लेकिन मुझे लगता है कि वह बहुत सक्षम हैं. वह एक सभ्य इंसान हैं, वह अच्छी तरह से शिक्षित हैं, उनके पास सही डीएनए है और मैं उन्हें कांग्रेस की लोकतंत्र की अवधारणा के संरक्षक के रूप में देखता हूं, जिसे उन्होंने हमेशा बढ़ावा दिया है.”
कांग्रेस के सत्ता में आने पर राहुल के प्रधानमंत्री पद के लिए उपयुक्त होने के कांग्रेस नेताओं के विचार से जुड़े सवाल पर पित्रोदा ने कहा कि वह इस विचार से सहमत हैं, लेकिन अंतत: पार्टी को इस मुद्दे पर फैसला करना है.
यह पूछे जाने पर कि क्या वह राहुल में भविष्य में प्रधानमंत्री बनने के गुण देखते हैं, पित्रोदा ने जोर देकर कहा, “बिल्कुल, इसमें कोई संदेह नहीं है.” पिछली विदेश यात्राओं पर सरकार के खिलाफ आलोचनात्मक टिप्पणियों को लेकर राहुल और कांग्रेस पर भाजपा के हमलों के बारे में पूछे जाने पर पित्रोदा ने कहा कि इस दौर में जब संचार त्वरित हो गया है और भौतिक दूरी के कोई मायने नहीं रह गए हैं, तब कोई कार्यक्रम स्थानीय नहीं रह जाता.
उन्होंने कहा, “हर स्थानीय घटनाक्रम एक वैश्विक घटनाक्रम बन जाता है, फ्रांस में चर्च में आग लगाए जाने की घटना अब सिर्फ एक फ्रांसीसी घटना नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक घटना है. युद्ध के मामले में भी ऐसा ही है. इसलिए यह मान लेना गलत है कि कुछ चीजें आपको स्वदेश में कहनी चाहिए और कुछ चीजें विदेश में.”
विपक्षी नेता द्वारा सरकार की आलोचना करना जायज
पित्रोदा ने जोर देकर कहा, “सरकार की आलोचना करना भारत की आलोचना करना नहीं है. किसी विपक्षी नेता द्वारा सरकार की आलोचना करना जायज है, और यह वास्तव में उसका काम है, तो शिकायत क्यों करें. मुझे लगता है कि विदेश में की गई टिप्पणियों को लेकर आलोचना करना बकवास है.”
गत चार जून को घोषित लोकसभा चुनाव परिणाम और उनके महत्व के बारे में पित्रोदा ने कहा, “पिछले चुनाव में भाजपा के 400 सीट जीतने का डर था. इस तरह यह पूर्ण बहुमत होता, जिससे संविधान को लेकर विभिन्न स्तर पर कई लोगों के मन में थोड़ी चिंता पैदा हो सकती थी और निरंकुश मानसिकता तथा विपक्ष एवं मीडिया पर हमलों को बढ़ावा मिल सकता था. यह चुनाव इसलिए बेहद अहम था, क्योंकि इसमें भाजपा को 240 सीट पर समेटा जा सका.”
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