100 दिन बाद मोदी 3.0 का रिपोर्ट कार्ड : 'संकल्प वही, उद्देश्य वही' और विकास की तीन गुना ज्यादा रफ्तार
नई दिल्ली:
हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. साथ ही नरेंद्र मोदी सरकार भी अपनी तीसरी पारी के 100 दिन पूरे कर रही है. ऐसे में ये चुनाव बेहद अहम हो गए हैं. माना जा रहा है कि मोदी सरकार के कामकाज पर जनता मुहर लगा रही है कि नहीं, इसका जवाब भी हरियाणा के अखाड़े में मिल सकता है. मंगलवार को प्रधानमंत्री मोदी का जन्मदिन है और इसी दिन केंद्र सरकार अपने 100 दिन भी पूरे कर रही है. आइए ऐसे में जानते हैं कि खुद सरकार अपने शुरुआती कार्यकाल का आकलन कैसे कर रही है.
- नरेंद्र मोदी ने लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद जब कहा कि अब तीन गुना तेजी से विकास होगा, तो इसके क्या मायने थे?
- प्रधानमंत्री मोदी अपना काम शुरू कर पाते, इससे पहले ही सवाल उठने लगे कि सहयोगियों के दबाव में सरकार की रफ्तार का क्या होगा?
अब मोदी 3.0 के सौ दिन पूरे होने पर इसका जवाब आ गया है. खबर ये है कि सरकार की नीतियां वही रहेंगी, जो अब तक थी, यानी सरकार जैसे चलती आई है, वैसे ही चलेगी.
“ये मोदी है, यहां किसी का दबाव नहीं चलता है. हां मुझ पर दबाव है भावी पीढ़ी की संतानों का, जो जन्में भी नहीं हैं, उनके उज्ज्वल भविष्य की चिंता है. इसीलिए मैं आने वाली पीढ़ियों के कल्याण के लिए काम कर रहा हूं.”
नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री
“10 साल सरकार जैसे चली है, तीसरी पारी में भी वैसे ही चलेगी”
ऐसे में जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन 17 सितंबर को मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे हो रहे हैं, सरकार के प्रमुख रणनीतिकारों का क्या कहना है, “उनका आकलन है कि पिछले 10 साल सरकार जैसे चली है, तीसरी पारी में भी सरकार वैसे ही चलेगी. क्योंकि सरकार की नीतियां स्थायी हैं. उनका मूल उद्देश्य वही है, जो पहले था और पीएम मोदी का संकल्प भी वही है. यानी सभी 140 करोड़ देशवासियों को साथ लेकर बढ़ने का संकल्प, ये भी कहा जा रहा है कि यू-टर्न की कोई बात ही नहीं है. सहयोगी दलों के दबाव का कोई प्रश्न ही नहीं है. जो एजेंडा 2014 में तय किया गया था. उसी के मुताबिक सरकार चल रही है.”
मोदी सरकार की तीसरी पारी में ‘एक देश, एक चुनाव’ को लेकर लगातार चर्चा हो रही है. सूत्रों के मुताबिक ‘एक देश, एक चुनाव’ मोदी सरकार के इसी कार्यकाल में लागू कराया जाएगा. प्रधानमंत्री ने इसी साल स्वतंत्रता दिवस पर भी इसका जिक्र किया था.
मोदी सरकार ने अपनी तीसरी पारी में ये भी तय कर लिया है कि वो जम्मू कश्मीर में अलगाववादियों से कोई समझौता नहीं करने जा रही है.
बीजेपी सूत्रों ने साफ कहा है कि अवामी इत्तेहाद पार्टी के चेयरमैन और बारामूला के सांसद इंजीनियर राशिद के साथ कोई समझौता नहीं होगा. कहा जा रहा है कि इंजीनियर राशिद यूएपीए के तहत जेलयाफ्ता हैं और उन्हें जमानत केवल इसलिए मिली, क्योंकि अरविंद केजरीवाल के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था, लेकिन उनसे बीजेपी का तालमेल नहीं हो सकता.
कश्मीर में बीजेपी की निर्दलियों पर नजर
घाटी में निर्दलियों के बड़ी संख्या में चुनाव लड़ने के सवाल पर बीजेपी सूत्रों ने कहा कि वे ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं और वहां उनकी बड़ी संख्या में जीत भी होगी. बीजेपी सूत्रों के मुताबिक 32 निर्दलीय घाटी में चुनाव लड़ रहे हैं और इनमें से कई के जीतने की पूरी संभावना है.
सूत्रों ने ये भी कहा कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने को लेकर सरकार अपनी कथनी पर कायम है. संसद में पहले ही कहा जा चुका है कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा. हालांकि ये कब होगा, इसका जवाब अभी नहीं दिया जा सकता.
समान नागरिक संहिता
प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले से समान नागरिक संहिता का भी जिक्र किया है. सूत्रों के मुताबिक कई राज्य समान नागरिक संहिता की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. उत्तराखंड ने इसे लागू भी कर दिया है और वहां के कानून को अभी तक चुनौती नहीं दी गई है. कई राज्य सरकारों ने यूसीसी के लिए कमेटी बनाई है. पांच राज्यों में इन कमेटियों का गठन हो चुका है. कुछ की रिपोर्ट एक दो महीने में आ जाएगी. इसके बाद इन्हें उन राज्यों में लागू कर दिया जाएगा.
जनगणना
जिन मुद्दों पर चर्चा हो रही है, उनमें जनगणना भी प्रमुख है. सूत्रों की मानें तो देशव्यापी जनगणना जल्दी ही शुरू होगी. ये पूछने पर कि क्या जातिगत जनगणना भी कराई जाएगी और जाति का कॉलम भी होगा? हमें जवाब मिला है कि इस बारे में अभी कोई फैसला नहीं हुआ है.
पीएम ने सोमवार को कहा कि उन्होंने विकास के लिए कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी. सारे अपमान बर्दाश्त किए, लेकिन अपने रास्ते से भटके नहीं. विपक्ष शुरू से ही आरोप लगा रहा है कि सरकार अबकी बार बैसाखियों पर है, इसलिए मजबूती से काम नहीं कर पाएगी, लेकिन सरकार के सूत्र हमें ये बता रहे हैं कि उनका एजेंडा बिल्कुल उसी तरह से आगे बढ़ रहा है, जैसे 2014 में शुरू हुआ था.
“100 दिन के एजेंडे के लिए मैंने पूरी ताकत झोंक दी. मैंने दिन-रात नहीं देखा. विकास के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ा. सारे अपमान पचाकर सिर्फ लोगों के बारे में सोचा.”
मोदी 3.0 के सौ दिन पूरे होने पर प्रधानमंत्री जब 100 दिनों का रिपोर्ट कार्ड पेश कर रहे हैं, तब कुछ बातें ध्यान में रखने की जरूरत हैं. इस लोक सभा चुनाव में बीजेपी की सीटें कम हो गई हैं, संख्या बल के मामले में मोदी सरकार सहयोगी दलों पर निर्भर है. लेकिन सरकार इसका तर्क क्या दे रही है.
सूत्रों का कहना है कि 2014 से ही मोदी सरकार में सहयोगी दल शामिल रहे हैं, पार्टी ने तब भी लोकसभा की सभी सीटों पर चुनाव नहीं लड़ा. बीजेपी ने कई सीटें अपने सहयोगी दलों के लिए छोड़ीं, अगर सभी सीटों पर चुनाव लड़ते तो बीजेपी को बहुमत मिल जाता. हालांकि सूत्रों ने स्पष्ट किया कि सहयोगी दलों का कोई दबाव नहीं है और सरकार 2014 के एजेंडे के तहत ही चल रही है.
यानी ये अटकलें लगाना व्यर्थ है कि लोकसभा में बीजेपी की सीटें कम होने के बाद सरकार पर सहयोगी दल हावी हो गए हैं और उनके दबाव में सरकार को फैसले वापस लेने पड़ रहे हैं. मिसाल के तौर पर लेटरल एंट्री के फैसले की वापसी के पीछे ये तर्क है कि सरकार को लगा कि इसके लिए और बड़े पैमाने पर विमर्श और सामाजिक न्याय के पैमानों के हिसाब से सटीक आकलन जरूरी था.
सरकार के सूत्रों का कहना है कि बड़े प्रोजेक्ट को पटरी पर लाने की कमान पीएम मोदी ने खुद संभाली हुई है. वो खुद इनके रास्ते में आ रही अड़चनों को दूर करते हैं. दावा किया जा रहा है कि बड़े फैसलों से पहले व्यापक विचार विमर्श होता है. नई शिक्षा नीति लाने से पहले ऐसा ही किया गया. इसके लिए सभी से चर्चा की गई. सरकारी सूत्रों ने चुटकी लेते हुए कहा कि वामपंथियों ने नई शिक्षा नीति का विरोध नहीं किया, ये एक बड़ी उपलब्धि है.
सरकार कहती है कि विपक्षी दलों की आलोचना पर उनका ज्यादा ध्यान नहीं है. उनका सारा फोकस जनता पर है. इसी के तहत पहले 100 दिनों में ही लगभग 15 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएं शुरू की गईं. इनमें 76,200 करोड़ रुपए की लागत से महाराष्ट्र में वधावन बंदरगाह को मंजूरी और 50,600 करोड़ रुपए के सड़क नेटवर्क को मंजूरी देना शामिल है.
इसी तरह सड़क, रेल, हवाई मार्ग और बंदरगाह- इंफ्रा के क्षेत्र में पहले सौ दिनों में ही एक के बाद एक कई बड़े फैसले किए गए हैं जो आने वाले दिनों में देश को मजूबती देने की दिशा में सहयोग करेंगे.
तीसरी पारी में मोदी सरकार मानती है कि युवाओं पर खासा जोर देना है. रोज़गार और सरकारी नौकरी के बीच किसी किस्म की भ्रांति नहीं रहनी चाहिए, क्योंकि गैर सरकारी क्षेत्रों में अवसर पैदा करना भी रोज़गार को बढ़ावा देना ही है.
2014 में जब पहली बार मोदी सरकार आई, तब उसके सामने दो विकल्प थे.
- पहला विकल्प- वो मनमोहन सिंह सरकार की तरह कर्ज़ माफ़ करने जैसा पॉपुलिस्ट कदम उठाए.
- दूसरा विकल्प- पब्लिक की समस्याओं का स्थायी हल निकाले.
सरकार के सूत्र तर्क देते हैं कि किसानों के लिए प्रति ढाई एकड़ जमीन पर इनपुट कॉस्ट साढ़े पांच हज़ार रुपए प्रति वर्ष आती थी. पीएम मोदी ने 6 हज़ार रुपए प्रति वर्ष किसान सम्मान निधि दी. आप इसे रेवड़ी बांटना नहीं कह सकते, क्योंकि ये किसान को हमेशा के लिए कर्ज मुक्त करना है और अब तक 12 करोड़ 33 लाख किसानों को तीन लाख करोड़ रुपए की किसान सम्मान निधि दी जा चुकी है.
इसी तरह पीएम मोदी ने 11 लाख लखपति दीदियों को प्रमाणपत्र दिए. अब एक करोड़ से अधिक लखपति दीदियां हर साल एक लाख रुपए से अधिक की कमाई कर रही हैं.
पिछले दिनों राहुल गांधी के अमेरिका दौरे पर उनके बयानों से काफी विवाद हुआ है. राहुल गांधी ने हाल में हुए चुनावों पर भी सवाल उठाए हैं. इस पर सूत्रों ने कहा कि अगर राहुल गांधी को लगता है कि विदेश में भाषण देने से चुनाव जीता जा सकता है तो वे वहीं रहें.
मोदी सरकार के पहले 100 दिनों में एक तस्वीर और चर्चित रही. पीएम ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के घर गणपति आरती में भाग लिया. सूत्रों के मुताबिक कहा गया कि प्रधानमंत्री छुपकर नहीं गए, खुलेआम गए. अगर विपक्ष सोचता है कि इससे जज प्रभावित हो जाएंगे, तो ये कमजोर सोच है.