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ABVP से तेलंगाना के CM की कुर्सी तक… दिलचस्प है रेवंत रेड्डी का सियासी सफर

भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के प्रमुख केसीआर के मुखर आलोचक प्रदेश कांग्रेस प्रमुख रेड्डी अक्सर बीआरएस और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के तीखे राजनीतिक हमलों का निशाना बनते रहे हैं. बीआरएस नेता उन पर पार्टी बदलने को लेकर निशाना साधते रहे हैं. 2015 के ‘नोट के बदले वोट’ मामले में रेड्डी को गिरफ्तार किया गया था और उस समय उन्हें तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) के अध्यक्ष एन चंद्रबाबू नायडू का ‘एजेंट’ बताया गया था.

एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की रेड्डी की पृष्ठभूमि को लेकर उन पर निशाना साधते रहे हैं. रेड्डी पहले कुछ समय के लिए बीआरएस (तब तेलंगाना राष्ट्र समिति) में रह चुके हैं. वह 2006 में जिला परिषद चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीते थे.

2007 में विधान परिषद बने थे रेवंत रेड्डी

वह 2007 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अविभाजित आंध्र प्रदेश में विधान परिषद में निर्वाचित हुए. रेड्डी तेदेपा में शामिल हो गए थे और पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के करीबी थे. कला में स्नातक रेड्डी ने 2009 में तेदेपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीता था और 2014 में तेलंगाना के अलग राज्य बनने पर भी उन्होंने चुनाव में जीत दर्ज की थी.

रिश्वत के आरोप में जल भी जा चुके हैं रेवंत रेड्डी

रेड्डी को 2015 में अपने राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी चुनौती का तब सामना करना पड़ा जब उन्होंने विधान परिषद चुनाव में तेदेपा के पक्ष में वोट देने के लिए एक मनोनीत विधायक को रिश्वत देने की कोशिश की थी. यह घटना कैमरे के सामने हुई थी. रेड्डी को हैदराबाद की एक जेल में भेज दिया गया था और बाद में उन्हें जमानत मिल गई.

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रेड्डी 2018 के विधानसभा चुनाव में बीआरएस उम्मीदवार से हार गए थे और कुछ समय तक चर्चाओं से दूर रहे. उन्होंने तेदेपा छोड़कर 2017-18 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की उपस्थिति में दिल्ली में पार्टी की सदस्यता ग्रहण की थी.

रेड्डी 2019 के लोकसभा चुनाव में तेलंगाना की मल्काजगिरि संसदीय सीट से कांग्रेस सांसद के रूप में निर्वाचित हुए. इस निर्वाचन क्षेत्र में देश भर के लोगों की मौजूदगी के कारण इसे ‘मिनी-इंडिया’ बताया जाता है. उन्हें 2021 में कांग्रेस में ‘जूनियर’ नेता होने के बावजूद प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई. इससे प्रदेश कांग्रेस इकाई में अनेक वरिष्ठ नेता असंतुष्ट दिखे.

रेड्डी के सामने चुनौतीपूर्ण हालात के बीच कांग्रेस का भविष्य संवारने का कठिन कार्य था और वह पार्टी नेताओं को एकजुट करने में लग गए. तेलंगाना में 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के 12 विधायकों का 2019 में बीआरएस में शामिल हो जाना भी कांग्रेस पार्टी को असहज करने वाला घटनाक्रम था.

तेलंगाना में बंडी संजय कुमार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की कमान मिलने के बाद 2020 और 2021 में दो विधानसभा उपचुनावों और ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में भाजपा को बड़ी सफलता मिली और कांग्रेस को एक बार फिर झटका लगा. इन कड़ी चुनौतियों के बावजूद रेड्डी कांग्रेस को सफलता दिलाने की मशक्कत करते रहे और इस साल मई में कर्नाटक चुनाव के बाद कांग्रेस को थोड़ी ऊर्जा मिली.

कर्नाटक में जीत के बाद तेलंगाना की जनता में कांग्रेस को लेकर धारणाएं बदलने के साथ पार्टी का ग्राफ बढ़ता दिखाई दिया. बीआरएस और भाजपा के बीच कथित मौन सहमति के बारे में लोगों और राजनीतिक हलकों के बीच धारणा के मद्देनजर तेलंगाना में कांग्रेस अपनी पकड़ बनाने लगी. केसीआर की बेटी के. कविता पर दिल्ली आबकारी नीति मामले में लगे आरोपों ने भी कांग्रेस को बल प्रदान किया. फुटबॉल प्रेमी रेड्डी को राहुल गांधी और कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी शिवकुमार का करीबी माना जाता है.

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