"दो साल तक बिलों को लेकर क्या कर रहे थे…": केरल राज्यपाल को SC से फटकार
नई दिल्ली:
केरल सरकार बनाम राज्यपाल मामले में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केरल के राज्यपाल पर सवाल उठाए और कहा कि दो साल तक वो बिलों को लेकर क्या कर रहे थे. जैसे राज्यपाल की संवैधानिक जवाबदेही है, ऐसे ही अदालत की भी संविधान और लोगों के प्रति जवाबदेही है. सुप्रीम कोर्ट राज्यपालों के अध्यादेशों पर फैसला लेने के लिए गाइडलाइन बनाने पर विचार करेगा.
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सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केरल सरकार को याचिका में संशोधन करने की इजाजत दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य के संवैधानिक पदाधिकारियों को कुछ राजनीतिक दूरदर्शिता दिखाने दीजिए. सुनवाई के दौरान राज्यपाल की ओर से AG आर वेंकटरमणी ने कहा कि राज्यपाल चाहते हैं कि मुद्दों को मंत्री के साथ राज्यपाल और सीएम के बीच बैठक के माध्यम से हल किया जाए.
CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम कहेंगे कि राज्यपाल मुख्यमंत्री और संबंधित मंत्री को आमंत्रित करें, जिनके विभाग के तहत इससे संबंधित विधेयक लंबित है. वहीं, केरल सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील के के वेणुगोपाल ने कहा कि आठ लंबित विधेयकों में से राज्यपाल ने बिना कोई कारण बताए सात विधेयक राष्ट्रपति के लिए भेज दिए हैं. लेकिन इनके लिए कारण नहीं बताया गया है. समय आ गया है कि अदालत इस मामले में दखल दे.
केरल सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि अदालत राज्यपाल के लिए बिलों पर फैसला करने के लिए गाइडलाइन जारी करे. गौरतलब है कि पिछली सुनवाई में केरल के राज्यपाल द्वारा विधानसभा से पास बिलों पर मंजूरी नहीं दिए जाने का मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यपाल ऑफिस को नोटिस जारी किया था.
CJI डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल को अगली सुनवाई के दौरान कोर्ट में तथ्यों के साथ मौजूद रहने को कहा था. केरल सरकार ने राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान पर विधानसभा से पारित बिलों पर कोई कार्यवाही न करने और उन पर सरकार द्वारा पारित महत्वपूर्ण विधेयकों को दबाकर बैठे रहने का आरोप लगाया है.
केरल सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि विधेयकों को लंबे समय तक और अनिश्चित काल तक लंबित रखने का राज्यपाल का आचरण स्पष्ट रूप से मनमाना है और संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का भी उल्लंघन करता है.
राज्य सरकार का कहना है कि सरकार द्वारा राज्य के लोगों के लिए विधानसभा द्वारा कल्याणकारी बिल पारित किए गए हैं. राज्यपाल द्वारा इन बिलों पर कोई कार्यवाही न करना, जनता को मिले अधिकारों से वंचित करता है.