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याचिका दाखिल किसने की? सुप्रीम कोर्ट ने पता लगाने के लिए सीबीआई को दिया जांच का आदेश


नई दिल्‍ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को एक अजीबोगरीब मामले में सीबीआई (CBI) जांच का आदेश दिया है, जिसमें तमाम कोशिशों के बाद भी यह पता नहीं चल पाया कि आखिर याचिका दाखिल किसने की? इसमें याचिकाकर्ता ने अपील दायर करने से इनकार कर दिया था. याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि उसने अपनी ओर से मामला दायर करने के लिए अदालत में मौजूद किसी भी वकील को नियुक्त नहीं किया था.  जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि हालांकि याचिकाकर्ता भगवान सिंह ने कभी भी उक्त वकीलों से मुलाकात नहीं की और न ही उन्हें कार्यवाही दायर करने का निर्देश दिया, लेकिन वकीलों की मदद से पक्षकारों ने कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने और न्याय की धारा को बदनाम करने की कोशिश की. 

पीठ ने कहा कि मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रतिवादियों, संबंधित सहयोगियों और वकीलों द्वारा हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को धोखा देने की कोशिश की गई और पूरी न्याय वितरण प्रणाली को दांव पर लगाने की कोशिश की गई. जिन्होंने हाईकोर्ट और सुप्रीम में दाखिल किए जाने वाले दस्तावेजों को जाली बनाने और भगवान सिंह के नाम पर उनकी जानकारी, सहमति के बिना दायर की गई झूठी कार्यवाही को आगे बढ़ाने में उनकी मदद की. इसलिए हम मामले की जांच सीबीआई को सौंपना उचित समझते हैं. 

सीबीआई को दो महीने में रिपोर्ट देने के लिए कहा 

सीबीआई यदि आवश्यक हो तो सभी शामिल और जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ प्रारंभिक जांच करने के बाद एक नियमित मामला दर्ज करेगी और कथित अपराधों और अदालत पर धोखाधड़ी के लिए सभी लिंक की जांच करेगी. पीठ ने सीबीआई के निदेशक को इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई करने और दो महीने के भीतर इस अदालत को रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया. 

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अदालत ने कहा कि यह मामला तब गंभीर हो जाता है जब वकील, जो न्यायालय के अधिकारी होते हैं, इसमें शामिल होते हैं और जब वे बेईमानवादियों के गलत इरादे वाले मुकदमों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और अपने गुप्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने में उनकी सहायता करते हैं. 

पेशेवर कदाचार के मामले बढ़ रहे हैं : सुप्रीम कोर्ट 

 अदालत ने कहा कि लोगों को न्यायपालिका में बहुत विश्वास है और न्याय-प्रणाली का एक अभिन्न अंग होने के नाते बार को न्याय की स्वतंत्रता और देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका सौंपी गई है. कानूनी पेशे को अनिवार्य रूप से एक सेवा-उन्मुख, महान पेशा माना जाता है और वकीलों को न्यायालय के बहुत जिम्मेदार अधिकारी और न्याय प्रशासन का एक महत्वपूर्ण सहायक माना जाता है. नैतिक मूल्यों के समग्र ह्रास और क्षरण और पेशेवर नैतिकता के ह्रास की प्रक्रिया में पेशेवर कदाचार के मामले भी बढ़ रहे हैं. 

न्‍यायालय आंखें नहीं मूंद सकता है : सुप्रीम कोर्ट 

पीठ ने कहा कि अदालत में की जाने वाली कार्यवाही से बहुत पवित्रता जुड़ी होती है. वकालतनामा और अदालतों में दाखिल किए जाने वाले दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने वाले प्रत्येक वकील और अदालत में किसी पक्ष की ओर से पेश होने वाले प्रत्येक वकील से यह माना जाता है कि उसने कार्यवाही दाखिल की है और पूरी जिम्मेदारी और गंभीरता के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. कोई भी पेशेवर, खास तौर पर कानूनी पेशेवर, अपने आपराधिक कृत्यों के लिए मुकदमा चलाए जाने से सुरक्षित नहीं है. ऐसा मामला सामने आने के बाद न्यायालय आंखें मूंद नहीं सकता है. 

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यह मामला जुलाई में तब सामने आया जब एक वादी ने कहा कि वह उन वकीलों में से किसी को नहीं जानता जो अदालत में उसका प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं. 



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