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जज की भूमिका तलवार की धार पर चलने जैसी : CJI संजीव खन्ना


नई दिल्ली:

भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने मंगलवार को कहा कि भारत एक जीवंत लोकतंत्र और भू-राजनीतिक नेता के रूप में उभरा है, तथा इस बदलाव में देश के संविधान ने उल्लेखनीय योगदान दिया है. न्यायमूर्ति खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह में कहा कि संविधान न्यायालयों को न्यायिक समीक्षा का अधिकार देता है.

सीजेआई ने कहा कि हम जनहित याचिकाओं पर विचार करते हैं, स्वत: संज्ञान मामलों की शुरुआत करते हैं, मामलों का फैसला करने में मदद के लिए एमिकस नियुक्त करते हैं. न्यायाधीशों के रूप में हम मामलों पर नज़र रखते हैं और उनको आलोचनात्मक तरीके से देखते हैं. उन्होंने कहा कि खुला और पारदर्शी होना न्यायपालिका की सबसे बड़ी ताकत है. रचनात्मक तरीके से काम करने के लिए उत्तरदायी होने से हम ज़्यादा जवाबदेह बनते हैं.

संविधान न्यायपालिका को चुनावी प्रक्रिया के उतार-चढ़ाव से बचाता है- CJI

उन्होंने कहा कि संविधान न्यायपालिका को चुनावी प्रक्रिया के उतार-चढ़ाव से बचाता है. यह सुनिश्चित करता है कि निर्णय निष्पक्ष और इच्छाशक्ति से मुक्त हों. प्रत्येक शाखा को अपने संवैधानिक डिजाइन का सम्मान करना चाहिए. न्यायिक स्वतंत्रता एक ऊंची दीवार के रूप में नहीं, बल्कि उत्प्रेरक के रूप में काम करती है.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि एक जज की भूमिका अक्सर तलवार की धार पर चलने जैसी होती है. हमारे द्वारा सुने जाने वाले प्रत्येक मामले में निष्पक्षता, सहानुभूति और प्रक्रिया के साथ प्रतिस्पर्धी अधिकारों और दायित्वों को संतुलित करने की जरूरत होती है.

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हम जनता के प्रति जवाबदेह हैं- चीफ जस्टिस

चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि 75 साल पहले इस पवित्र जीते जागते ग्रन्थ भारत के संविधान के रूप में भारत के इतिहास का एक पन्ना खुला. बुनियादी अधिकारों के कस्टोडियन यानी संरक्षक के रूप में न्यायपालिका निचले स्तर से सर्वोच्च स्तर तक कार्यरत है. हम अपने संवैधानिक कर्तव्य से बंधे हैं. साथ ही हम खुले यानी ओपन और पारदर्शी भी हैं. इसके साथ हमारा फोकस जनहित यानी उनके अधिकारों की सुरक्षा है. हम जनता के प्रति जवाबदेह भी हैं. हमें अपनी स्वायत्तता और जवाबदेही का भान भी है.

उन्होंने कहा कि हमारी चिंताएं भी हैं. लंबित मामलों का बोझ, न्याय पाने के लिए फरियादियों पर बढ़ता बोझ भी चिंता का विषय है. जिला अदालतों ने साढ़े चार करोड़ से अधिक मुकदमों के बोझ के बावजूद काफी बढ़िया काम किया है. सुप्रीम कोर्ट भी सफलता से मुकदमों का बोझ घटाने में जुटा है. सरकार का आभार कि कोर्ट्स का मूलभूत ढांचा खासकर ई-कोर्ट्स की स्थापना और विकास के लिए 700 करोड़ रुपए से ज़्यादा का बजट उपलब्ध कराया.

सिर्फ जिला अदालतों में इस साल 2.8  करोड़ से ज़्यादा मामले आए

सीजेआई ने कहा कि इस साल अकेले हमारी न्यायिक प्रणाली में जिला अदालतों में 2.8  करोड़ से ज़्यादा मामले आए, जबकि हाईकोर्ट में करीब 16.6 लाख मामले और सुप्रीम कोर्ट में 54,000 मामले आए. इसलिए ये आश्चर्य की बात नहीं है कि जिला अदालतों में 5.4 करोड़ से ज़्यादा मामले और हाईकोर्ट में 61 लाख से ज़्यादा मामले लंबित हैं.

उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को लेकर मेरी वर्तमान चिंताएं हैं. इसमें लंबित मामलों की संख्या, मुकदमेबाजी की लागत, न्याय तक आसान पहुंच और विचाराधीन कैदियों की बड़ी संख्या जैसे मुद्दे शामिल हैं.

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