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जम्मू-कश्मीर विधानसभा के पहले सत्र में अनुच्छेद 370 को लेकर हुआ जोरदार हंगामा


श्रीनगर:

जम्मू एवं कश्मीर विधानसभा का पांच दिवसीय सत्र आज सुबह उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के अभिभाषण के साथ शुरू हुआ. इस दौरान सदन में जमकर हंगामा हुआ. दरअसल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी’ (पीडीपी) विधायक वहीद पारा ने विधानसभा में, पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने के प्रावधान वाले अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का विरोध करते हुए प्रस्ताव पेश किया. जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा बहाल करने की मांग की. जिसके बाद विधानसभा में विपक्ष ने हंगामा शुरू कर दिया. 

जम्मू-कश्मीर विधानसभा में भाजपा सांसदों ने पारा के प्रस्ताव का विरोध किया. वहीं सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष रहीम राथर ने कहा कि उन्होंने अभी तक किसी भी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया है.

बता दें एनसी के पास विधानसभा में 42 सीटें हैं, भाजपा के पास 28 (विधायक देवेंद्र सिंह राणा की मृत्यु के कारण एक सीट रिक्त हुई है), कांग्रेस के पास 6, पीडीपी के पास 3, सीपीआई-एम के पास 1, आम आदमी पार्टी (आप) के पास 1, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (पीसी) के पास 1 और निर्दलीय 7 हैं.

अब्दुल रहीम राथर विधानसभा के अध्यक्ष चुने गए

नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) के वरिष्ठ नेता और चरार-ए-शरीफ से सात बार के विधायक अब्दुल रहीम राथर को सोमवार को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का पहला अध्यक्ष चुना गया. विपक्षी दलों द्वारा इस पद के लिए चुनाव न लड़ने का फैसला किए जाने के बाद राथर (80) को ध्वनि मत से अध्यक्ष चुना गया. ‘प्रोटेम स्पीकर‘ मुबारक गुल ने चुनाव का संचालन किया.

कृषि मंत्री जावेद अहमद डार ने पांच दिवसीय सत्र के पहले दिन राथर को अध्यक्ष पद के लिए नामित करने का प्रस्ताव पेश किया और नेकां के विधायक रामबन अर्जुन सिंह राजू ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया. इसके बाद सदन के नेता उमर अब्दुल्ला और विपक्ष के नेता सुनील शर्मा (भाजपा) राथर को अध्यक्ष की कुर्सी तक लेकर गए.

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राथर इससे पहले, पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में अध्यक्ष का पद संभाल चुके हैं. वह 2002 से 2008 तक उस समय विपक्ष के नेता भी थे, जब ‘पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी’ (पीडीपी)-कांग्रेस गठबंधन सरकार ने राज्य में शासन किया था.

सदन की छह साल से अधिक के अंतराल के बाद सोमवार को बैठक हुई. विधानसभा का आखिरी सत्र जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने से एक साल पहले 2018 की शुरुआत में बुलाया गया था.

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