कांवड़ रूट पर 'सुप्रीम' आदेश, कोर्ट ने आज क्या कहा 7 प्वाइंट में समझिए सार
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में उठे नेमप्लेट विवाद पर दुकानदारों को सुप्रीम कोर्ट से कुछ राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों के मालिकों के नाम प्रदर्शित करने संबंधी यूपी और उत्तराखंड सरकार के निर्देश पर अंतरिम रोक लगा दी है. साथ ही कोर्ट ने यूपी और उत्तराखंड के इन निर्देशों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड एवं मध्य प्रदेश सरकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने आरोप लगाया कि आदेश मुस्लिम दुकान मालिकों और कारीगरों के आर्थिक बहिष्कार तथा उनकी आजीविका को नुकसान पहुंचाने के लिए दिया गया है.
- तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों के उस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसमें कहा गया है कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों को अपने मालिकों के नाम प्रदर्शित करने होंगे. मोइत्रा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एस वी एन भट्टी की पीठ से कहा कि भोजनालयों के मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के लिए ‘परोक्ष’ आदेश पारित किए गए हैं.
- सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सिंघवी से पूछा कि क्या उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड ने भोजनालय मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के संबंध में कोई औपचारिक आदेश दिया है? क्या राज्य सरकारों ने कोई औपचारिक आदेश पारित किया है? हालांकि, खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि भोजनालयों को परोसे जा रहे भोजन के प्रकार को प्रदर्शित करना चाहिए.
- सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश में कहा, “राज्य पुलिस दुकानदारों को अपना नाम प्रदर्शित करने के लिए बाध्य नहीं कर सकती. उन्हें केवल खाद्य पदार्थ की जानकारी प्रदर्शित करने के लिए कहा जा सकता है. दुकान मालिकों, उनके कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए. दुकानों पर मालिक और कर्मियों के नाम लिखने पर दबाव ना डाला जाए.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये स्वैच्छिक है…. लेकिन याचिकाकर्ता ने कहा कि हरिद्वार पुलिस ने केस इसको लागू किया है. इसको देखें, वहां पुलिस की तरफ से चेतावनी दे गई कि अगर नहीं करते तो कार्रवाई होगी. मध्य प्रदेश में भी इस तरह की कार्रवाई की बात की गई है. याचिकाकर्ता ने कहा कि ये विक्रेताओं के लिए आर्थिक मौत को तरह है. याचिकाकर्ता के वकील सिंघवी ने कहा कि भोजनालयों के मालिकों के नाम प्रदर्शित करने संबंधी उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड का आदेश ‘पहचान के आधार पर बहिष्कार’ है और यह संविधान के खिलाफ है.
- अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि कांवड़ यात्रा तो सदियों से चला आ रही है, लेकिन इससे ऐसा कोई आदेश सरकार की ओर से जारी नहीं किया गया. इस आदेश को लेकर पहले मेरठ पुलिस और फिर मुज्जफरनगर पुलिस ने नोटिस जारी किया. रिपोर्टों से पता चला है कि नगर निगम ने निर्देश दिया है कि 2000 रुपये और 5000 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा. हिंदुओं द्वारा चलाए जाने वाले बहुत से शुद्ध शाकाहारी रेस्टोरेंट हैं…लेकिन उनमें मुस्लिम कर्मचारी भी हो सकते हैं…क्या कोई कह सकता है कि मैं वहां जाकर खाना नहीं खाऊं, क्योंकि उस खाने पर किसी न किसी तरह से उन लोगो का हाथ है?
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह भी मायने रखता है कि कांवड़ियां क्या ये सोचते हैं? क्या उन्हें खाना किसी चुनिंदा दुकानदार से मिले? कांवड़ियों की क्या अपेक्षा है? क्या वे यह भी कहते हैं कि खाद्यान्न किसी खास समुदाय के सदस्यों द्वारा ही उगाया जाना चाहिए? फिर कानूनी सवाल- क्या कोई आदेश है?
- मोइत्रा ने अपनी याचिका में दोनों राज्य सरकारों द्वारा जारी आदेश पर रोक लगाए जाने का आग्रह करते हुए कहा कि ऐसे निर्देश समुदायों के बीच विवाद को बढ़ावा देते हैं. इसमें आरोप लगाया गया है कि संबंधित आदेश मुस्लिम दुकान मालिकों और कारीगरों के आर्थिक बहिष्कार तथा उनकी आजीविका को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से जारी किया गया है.