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"UPSC समय की बर्बादी", अर्थशास्त्री संजीव सान्याल के बयान पर जानकारों ने समर्थन और विरोध में दिए तर्क

हाल ही में इस गहन विषय पर चर्चा की गई कि क्या संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की कठिन परीक्षा की तैयारी करना प्रयास के लायक है या नहीं?

मनी कंट्रोल (Money Control) की रिपोर्ट के मुताबिक संजीव सान्याल ने कहा, “जैसे बंगाल छद्म बुद्धिजीवियों और नेताओं की आकांक्षा रखता है, वैसे ही बिहार छोटे-मोटे स्थानीय गुंडों के राजनेता बनने की आकांक्षा रखता है. ऐसे माहौल में जहां वे रोल मॉडल हैं, आप या तो स्थानीय गुंडा बन सकते हैं, या फिर आपका रास्ता सिविल सेवक बनने का होगा.”

सान्याल ने कहा, “सिविल सेवक गुंडा होने से बेहतर है, लेकिन फिर भी ये महत्वाकांक्षा की गरीबी है. यदि आपको सपना ही देखना ही है, तो आपको एलोन मस्क या मुकेश अंबानी बनने का सपना देखना चाहिए, आप संयुक्त सचिव बनने का सपना क्यों देखते हैं? आपको ये सोचने की ज़रूरत है कि एक समाज जोखिम लेने के बारे में कैसे सोचता है. मुझे लगता है कि बिहार जैसी जगह की समस्याओं में से एक ये नहीं है कि वहां बुरे नेता थे, बुरे नेता उस समाज की आकांक्षाओं का प्रतिबिंब हैं.”

ईएसी-पीएम के सदस्य और अर्थशास्त्री संजीव सान्याल के इस बयान पर कई आर्थशास्त्रियों और जानकारों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. 

यूपीएससी मेंटर और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर लिखने वाले दीपांशु सिंह संजीव सान्याल से अपनी सहमति जताते हुए इसके समर्थन में कई तर्क दिए. उन्होंने एक्स पर एक के बाद एक कई पोस्ट कर कहा कि सिविल सेवाओं को लेकर धारणाएं जो हैं उनसे वास्तविकता काफी अलग है.

वहीं मार्केटिंग और कंटेंट स्ट्रैटेजिस्ट ऋषिकेश टकसाले ने कहा कि लोअर मिडिल क्लास के लिए यूपीएससी जीवन बदलने वाला हो सकता है, क्योंकि ये उन्हें उच्च स्तर पर ले जाएगा. वहीं मध्यम वर्ग के लिए अच्छी शिक्षा के साथ, खुद कुछ बनने का मौका देता है. जबकि उच्च मध्यम वर्ग और अभिजात्य वर्ग, जिनके पास बड़े विश्वविद्यालयों में शिक्षा हासिल करने की क्षमता है, वो यूपीएससी चुनने को समय की बर्बादी समझते हैं.

अर्थशास्त्र के जानकार और रियल स्टेट पर नजर रखने वाले विशाल भार्गव ने एक्स पर पोस्ट कहा, “असहमत. यूपीएससी कई लोगों के लिए एक सपना है. किसी दूसरी नौकरी के जरिए क्या आपके पास इतनी शक्ति और इतनी कम जवाबदेही है? अधिकांश नौकरशाह छोटा व्यवसाय चलाने में सक्षम नहीं होंगे, दुनिया को बदलने की बात तो दूर की बात है.”

ऊर्जा, तकनीक और बुनियादी ढांचे पर लिखने वाले रितिक भंडारी ने कहा कि, “ऐसी ईमानदारी की उम्मीद केवल एक लेटरल एंट्री नौकरशाह से ही की जा सकती है. यूपीएससी लोक में कईयों को ये कहने की हिम्मत नहीं होगी, क्योंकि वो सिस्टम पर निर्भर है.”

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