पीएम नरेंद्र मोदी की यूक्रेन यात्रा से क्या हासिल कर सकता है भारत, कितने पुराने हैं संबंध
नई दिल्ली:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज यूक्रेन की यात्रा पर हैं. वो वार्सा से ट्रेन यात्रा कर यूक्रेन की राजधानी कीव पहुंचे. दोनों देशों में 1992 में राजनयिक संबंध स्थापित होने के बाद यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यूक्रेन यात्रा है.मोदी पिछले दो दिन से पोलैंड में थे.प्रधानमंत्री मोदी यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की के निमंत्रण पर गए हैं.कीव में दोनों नेता पहली बार आधिकारिक तौर पर मिलेंगे.रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच मोदी की इस यात्रा को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है.मोदी ने जुलाई में रूस की यात्रा की थी.उनकी इस यात्रा पर यूक्रेन ने आपत्ति जताई थी.इसके बाद से मोदी यूक्रेन की यात्रा पर गए हैं.
क्या बदल रही है भारत की विदेश नीति
सोवियत संघ के विघटन के बाद यूक्रेन का जन्म 1991 में हुआ. इसके बाद से ही भारत ने यूक्रेन से राजनयिक संबंध स्थापित कर लिए थे.यूक्रेन ने एशिया में अपना पहला दूतावास 1993 में भारत में खोला था. सोवियत संघ के विघटन और रूस बनने के बाद भारत ने जितनी दोस्ती रूस से निभाई उतनी यूक्रेन से नहीं निभाई.यूक्रेन के पड़ोसी पोलैंड से भारत के संबंध काफी मुधर रहे हैं. यह तबतक ही रहा जब तक पोलैंड वारसॉ संधि का सदस्य था. इस दौरान भारत के तीन प्रधानमंत्रियों ने 1955 से 79 तक पोलैंड का दौरा किया था.लेकिन वारसॉ संधि के विघटन के बाद भारत पोलैंड से दूर होता चला गया.इसमें भारत की रूस से दोस्ती एक बड़ा कारण था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब कीव रेलवे स्टेशन पर उतरे तो उनका स्वागत इस तरीक़े से किया गया
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प्रधानमंत्री मोदी की इन दोनों देशों की यात्रा भारत की विदेश नीति में एक बड़े बदलाव का प्रतीक है.ये दोनों देश यूरोप के बड़े देश हैं. यूक्रेन यूरोप में रूस के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है. पोलैंड और यूक्रेन जनसंख्या के मामले में क्रमश: सातवें और आठवें नंबर पर हैं. अगर अर्थव्यवस्था की बात करें तो पोलैंड मध्य यूरोप की सबसे बड़ी और यूरोप की आठवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है.
इससे पहले भारत की विदेशनीति में पूरे यूरोप के साथ संबंध अपेक्षाकृत कम प्राथमिकता वाला रहा है.भारत का जोर यूरोप के चार बड़े देशों ब्रिटेन, रूस, जर्मनी और फ्रांस के साथ संबंध को सुधारने और प्रगाढ़ बनाने पर रहा. लेकिन नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस नीति में बदलाव आया.भारत यूरोप के दूसरे देशों से संबंध सुधारने पर जोर दे रहा है.प्रधानमंत्री के रूप में अपने पहले दो कार्यकाल में नरेंद्र मोदी ने 27 बार यूरोप की यात्रा की और 37 यूरोपीय राष्ट्राध्यक्षों और शासकों से मुलाकात की.वहीं डॉक्टर एस जयशंकर ने विदेश मंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल में 29 बार यूरोप की यात्रा की और अपने 36 यूरोपीय समकक्षों की दिल्ली में अगवानी की.
भारत-यूक्रेन में व्यापार
फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से भारत-यूक्रेन व्यापार में कमी आई. साल 2021-22 में दोनों देशों ने 3.39 अरब डॉलर का व्यापार किया था.यह 2022-23 और 2023-24 में घटकर क्रमशः 0.78 अरब डॉलर और 0.71 अरब डॉलर रह गई.लेकिन इसी युद्ध ने यूक्रेन से संबंधों को सुधारने का एक अवसर भी उपलब्ध कराया. इस लड़ाई में भारत ने किसी का पक्ष नहीं लिया है. भारत ने मसले को बातचीत से हल करने की अपील की है. प्रधानमंत्री मोदी की यूक्रेन यात्रा को लेकर एक संभावना यह जताई जा रही है कि भारत युद्ध को खत्म करवा सकता है. प्रधानमंत्री मोदी ने गुरुवार को वार्सा में कहा था,जल्द से जल्द शांति और स्थिरता की बहाली के लिए बातचीत और कूटनीतिक प्रयासों का समर्थन करता है. इसके लिए वो हरसंभव मदद देने के लिए तैयार है.
युद्ध के दौरान भारत और यूक्रेन के नेता आपसी संबंध बनाए हुए हैं. रूसी हमले के बाद से नरेंद्र मोदी और वोलोदिमिर जेलेंस्की दो बार मुलाकात कर चुके हैं. विदेश मंत्री एस जयशंकर भी अपने यूक्रेनी समकक्ष से मुलाकात कर चुके हैं.यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा भारत का दौरा कर चुके हैं.शांति प्रयासों के लिए होने वाली बैठकों में भी भारत शामिल रहा है.दोनों देशों की कोशिश युद्ध से पहले के संबंधों के स्तर को बहाल करने की है.
पीएम मोदी की यूक्रेन यात्रा
प्रधानमंत्री मोदी की यूक्रेन यात्रा को संबंधों में सुधारने की दिशा में उठाए गए एक कदम के रूप में तैयार किया गया है.युद्ध खत्म होने के बाद यूक्रेन में होने वाली पुनर्निर्माण की गतिविधियों में भारत संभावनाएं तलाश रहा है. दोनों देशों में रक्षा सहयोग की भी गुंजाइश है. भारत कृषि के क्षेत्र में यूक्रेन की महारत का भी लाभ उठा सकता है. युद्ध से पहले भारत यूक्रेन से सूरजमुखी तेल का आयात करता था.
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