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असद सरकार के पतन के बाद सीरिया में अमेरिका, रूस और ईरान का क्या हित है, क्या कर रहा है इजरायल


नई दिल्ली:

सीरिया में बशर अल असद का सूरज अस्त हो चुका है. राजधानी दमिश्क पर हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएएस) के लड़ाकों ने कब्जा कर लिया है. इस वक्त इन लड़ाकों का देश के बहुत बड़े इलाके पर कब्जा हो गया है.ये लड़ाके सीरिया के उत्तर में स्थित इदलिब से निकले थे और अलेप्पो और होम्स जैसे शहरों को कब्जे में लेते हुए दमिश्क पहुंचे हैं.उनके दमिश्क पहुंचने से पहले ही राष्ट्रपति बशर अल असद देश छोड़कर रूस भाग गए.इसके साथ ही सीरिया एक ऐसी स्थिति में पहुंच गया है, जिसपर कई शक्तियों की नजर है. 

सीरिया में दुनिया का हित क्या है

इस वक्त सीरिया पर रूस, अमेरिका, इजरायल, ईरान, तुर्किए जैसे देशों की नजर हैं. इनके अलावा हयात तहरीर अल-शाम, कुर्द सेना, सीरियन नेशनल आर्मी और इस्लामिक स्टेट की मौजूदगी पहले से ही वहां मौजूद हैं. दमिश्क पर हयात तहरीर अल-शाम के कब्जे के बाद रविवार को अमेरिका ने एक बयान में कहा कि सीरिया का शक्ति संतुलन बदल गया है.इस्लामिक स्टेट इसका फायदा उठाने की कोशिश करेगा, लेकिन हम ऐसा होने नहीं देंगे. हालांकि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की राय अलग है. उन्होंने शनिवार को एक ट्वीट में कहा था, ”सीरिया एक समस्या है, लेकिन हमारा दोस्त नहीं है,संयुक्त राज्य अमेरिका को इससे कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए. यह हमारी लड़ाई नहीं है. इसे खत्म होने दें. इसमें शामिल न हों!” उन्होंने यह भी लिखा था कि रूस ने दशकों तक सीरिया को बचाया, लेकिन उन्होंने भी बसर अल असद की मदद नहीं, क्योंकि वो खुद यूक्रेन के साथ युद्ध में उलझे हैं,जिनमें उनके छह लाख सैनिक मारे जा चुके हैं. रूस को वहां बहुत फायदा नहीं है. ट्रंप की यह राय तब है, जब उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ नहीं ली है. यह देखना दिलचस्प होगा कि राष्ट्रपति बनने के बाद वो कैसा रुख अपनाते हैं.  

विद्रोही लड़ाकों के साथ तस्वीरें लेती सीरियन लड़कियां.

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अरब स्प्रिंग के दौरान 2011 में सीरिया में असद सरकार के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए थे. बाद यह गृहयुद्ध में बदल गया. असद ने अपने विरोधियों पर कठोर कार्रवाई की. इस गृह युद्ध में कई पक्ष शामिल थे, जैसे सीरियाई सरकार, अमेरिका, ईरान और रूस जैसे देश और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकवादी संगठन. इस गृहयुद्ध में पांच लाख से अधिक सीरियाई मारे गए और लाखों लोगों को बेघर होकर दूसरे देशों में शरण लेनी पड़ी. 

बशर अल असद और रूस की दोस्ती

इस गृहयुद्ध से निपटने में रूस ने बशर अल असद की मदद की. रूसी सेना की मदद से असद ने खुद को मजबूत किया. गृहयुद्ध के 13 साल बाद हयात तहरीर अल-शाम के लड़ाके जब दमिश्क पहुंचे तो असद को बचाने के लिए न तो रूस आगे आया और न ही ईरान. इसका नतीजा यह हुआ कि सीरिया के अधिकांश हिस्से पर हयात तहरीर अल-शाम का कब्जा हो गया. अब उन्हें सीरियाई नेशनल कोलिशन का भी साथ मिल गया है. आज सीरिया में अमेरिका और इजरायल की सेनाएं भी कार्रवाई कर रही हैं. ऐसी खबरें हैं कि असद ने अपने अंतिम दिनों में अमेरिका के साथ भी संबंध बनाए थे.अमेरिका वहां से रूस और ईरान को हटाने की कोशिश कर रहा था.अब असद के जाने के बाद अमेरिका को अपना यह मकसद दूर होता हुआ लग सकता है. उसे डर है कि वहां कुछ और विद्रोही संगठन सिर उठा सकते हैं. अमेरिकी सेना आईएस के ठिकानों को निशाना बना रही है. अमेरिका को शक है कि हयात तहरीर अल-शाम के लड़ाके ने आईएस के लड़ाकों से भी संबंध बढ़ाए हैं. अमेरिका इसी गठजोड़ को तोड़ने के लिए कार्रवाई कर रहा है. इसके जरिए वह बाकी के आतंकी संगठनों को यह संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि आईएस के साथ संबंध रखने पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.

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तुर्किए की सीमा पर सीरिया में दाखिल होने का इंतजार करते सीरियाई शरणार्थी.

तुर्किए की सीमा पर सीरिया में दाखिल होने का इंतजार करते सीरियाई शरणार्थी.

बशर अल असद ने सीरिया से फरार होने के बाद रूस में शरण ली है. रूस ने इसकी पुष्टि भी कर दी है. दरअसल सीरिया रणनीतिक रूप से रूस के लिए बहुत जरूरी है. सोवियत काल से ही सीरिया में रूस का सैन्य अड्डा है.पश्चिम एशिया में यह रूस का एकमात्र सैन्य अड्डा है.गृह युद्ध से निपटने में असद की मदद करने के लिए रूस ने अपनी सेना भी भेजी थी. हम यह कह सकते हैं कि असद की सत्ता को रूस ने ही बचाया था. अगर सीरिया पर रूस की पकड़ कमजोर हुई तो पश्चिम एशिया से रूस की मौजूदगी खत्म हो जाएगी.    

ईरान ने क्यों आंख मूद ली

ईरान को सीरिया की बशर अल असद की सरकार का बड़ा सहयोगी माना जाता था.ईरान सीरिया को लड़ने के लिए हथियार, सैन्य टुकड़ियां और सेना को ट्रेनिंग देकर असद की मदद करता था.लेकिन अंतिम समय में ईरान ने भी उनकी मदद नहीं की. दरअसल रूस और ईरान से मदद लेने के साथ-साथ असद चोरी छिपे अमेरिका से भी संबंध सुधारने में लगे हुए थे. यही वजह है कि ईरान के एक्सिस ऑफ रेजिटेंस में शामिल सभी देश और संगठन इजरायल-गजा युद्ध या लेबनान पर इजरायली हमले के समय हिजबुल्लाह की मदद कर रहे थे. लेकिन बशर अल असद निर्विकार भाव से सबकुछ होते हुए देख रहे थे. इससे ईरान को काफी नाराजगी हुई. इसके बाद उसने विद्रोहियों की मदद से अपने लिए एक सुरक्षित रास्ता लेकर सीरिया से निकल जाना बेहतर समझा. सीरिया में असद सरकार का पतन हो जाना ईरान के लिए किसी झटके से कम नहीं है.  

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सीरिया में क्यों घुसी है इजरायली सेना

असद के पतन के बाद इजरायली सेना सीरिया में घुस आई है. उसने सीरिया के गोलान हाइट्स के 10 किलोमीटर इलाके पर कब्जा जमा लिया है. इजरायली सेना 1974 के समझौते के बाद पहली बार सीरिया में दाखिल हुई है. इजरायल सीरिया पर हिजबुल्लाह के लड़ाकों को पनाह देने का आरोप लगाते रहा है. इस वजह से दोनों के रिश्ते कभी सामान्य नहीं रहे. इजरायल सीरिया पर कब्जा कर ईरान के मैसेज देना चाहता है. इजरायल कुर्दिश फ्रंट की मदद दे सकता है.इस स्थिति में ईरान हिजबुल्लाह की मदद नहीं कर पाएगा. यह स्थिति इजरायल के लिए फायदे वाली होगी. 

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