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"प्रणब मुखर्जी का राहुल गांधी पर से कब उठा विश्वास?" बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने The Hindkeshariको बताया

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अपनी किताब – “प्रणब माई फादर” में शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा कि अध्यादेश की कॉपी फाड़ने के अलावा कुछ अन्य घटनाएं, जैसे “बार-बार गायब होने वाली हरकतें” और दोनों के बीच एक बैठक के समय को लेकर भ्रम की वजह से उनके पिता प्रणब मुखर्जी का देश की परवाह नहीं करने और पार्टी को लीड करने की राहुल गांधी की क्षमता पर से विश्वास उठ गया था.

2013 में क्या हुआ था?

अध्यादेश में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को पलटने की मांग की गई थी, जिसमें दोषी सांसदों और विधायकों को अपील के लिए तीन महीने का समय दिए बिना तुरंत अयोग्य घोषित किए जाने की बात शामिल थी. इस पर राहुल गांधी ने कहा था कि सरकार अध्यादेश पर जो कर रही है वह गलत है …यह एक राजनीतिक निर्णय था…”

शर्मिष्ठा मुखर्जी ने The Hindkeshariको बताया कि उनके पिता इस बात से बिल्कुल भी खुश नहीं थे. उन्होंने ही अपने पिता को अध्यादेश की घटना के बारे में जानकारी दी थी, इसके बाद वह बहुत गुस्से में थे, उनका चेहरा लाल हो गया था और वह चिल्ला रहे थे. प्रणव मुखर्जी ने कहा था,” वह (राहुल) अपने बारे में क्या सोचते हैं, कि वह कौन हैं?”

प्रणब मुखर्जी ने क्या कहा?

प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा, “बाद में मुझे एहसास हुआ कि बाबा, सैद्धांतिक रूप से, राहुल गांधी से सहमत थे. अध्यादेश को व्यापक परामर्श के बिना लागू नहीं किया जा सकता था, और इसे एक अधिनियम के रूप में पारित किया जाना था, न कि अध्यादेश के रूप में. उन्होंने अनौपचारिक रूप से सरकार को इस रास्ते से आगे नहीं बढ़ाने की सलाह दी. उन्होंने यह भी कहा पूछा ‘फाड़ने की जल्दी क्या है? हालांकि वह राहुल गांधी से नाराज़ थे.”

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शर्मिष्ठा मखर्जी ने कहा, “वह राहुल के विरोध के तरीके से हैरान थे… खासकर यह देखते हुए कि मनमोहन सिंह (तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह) विदेश में थे,” शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा कि ”गठबंधन सहयोगियों पर प्रभाव को समझने की भी जरूरत थी. मुझे लगता है कि तभी से बाबा का राहुल गांधी पर विश्वास डगमगाने लगा था.”

शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा कि इस तरह की घटनाओं से उनके पिता को यह विश्वास हो गया कि राहुल गांधी “अभी राजनीतिक रूप से परिपक्व नहीं हुए हैं”. उन्होंने कहा, “… विशेष रूप से 2014 के बाद जब बीजेपी ने कांग्रेस को करारी शिकस्त दी थी, पार्टी ने सिर्फ  44 सीटें जीती थीं) ऐसे में लगातार राहुल गांधी की अनुपस्थिति अच्छी नहीं थी.  बाबा का मानना ​​था कि वह परसेप्शन की लड़ाई हार रहे हैं.”

प्रणब मुखर्जी: पीएम-इन-वेटिंग

किताब में 2004 में कांग्रेस की जीत के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए उनके नाम पर विचार नहीं किए जाने पर प्रणब मुखर्जी की प्रतिक्रियाओं पर भी चर्चा की गई है. “मैंने UPA-1 के दौरान एक दिन उनसे पूछा, ‘बाबा, क्या आप प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं?’ उन्होंने कहा, ‘बेशक. कोई भी योग्य राजनेता ऐसा चाहता है… इसका मतलब यह नहीं है कि मैं बनूंगा.’ “तो मैंने उनसे कहा, ‘आप सोनिया गांधी से बात क्यों नहीं करते?’ उन्होंने तुरंत कहा, ‘किस बारे में बात करें?'”

शर्मिष्ठा  मुखर्जी ने एनडीटीवी को बताया कि उनके पिता ने फिर विषय बदल दिया. बाद में उन्हें एहसास हुआ कि “वह बनना चाहते थे… लेकिन अपनी सीमाएं जानते थे कि सोनिया गांधी के साथ ट्रस्ट इशूज के बीच वह कभी भी नंबर 1 नहीं बन पाएंगे. “उन्होंने एक बार मुझसे कहा था, ‘राजनीति की दुनिया में, हर कोई अपने हितों की रक्षा करता है और सोनिया शायद किसी ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाकर अपने परिवार की रक्षा कर रही थीं, जो उन्हें चुनौती नहीं देगा.” शर्मिष्ठा मुखर्जी ने पूछा, “क्या आप चुनौती देंगे?” ”फिर उन्होंने चतुराई से विषय बदलते हुए कहा, ”सवाल यह नहीं है. मुद्दा यह है कि उसने सोचा कि मैं ऐसा कर सकता हूं.”’

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सोनिया-मनमोहन संग रिश्तों में नहीं आई कड़वाहट

शर्मिष्ठा मुखर्जी ने यह भी कहा कि तथ्य यह है कि प्रधानमंत्री पद के लिए नहीं चुने जाने के बाद भी सोनिया गांधी या डॉ. मनमोहन सिंह के साथ उनके संबंधों में कोई खटास नहीं आई. शर्मिष्ठा ने कहा कि प्रणब मुखर्जी भले ही राहुल गांधी के आलोचक रहे हों, लेकिन उन्होंने “भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल के समर्पण, दृढ़ता और पहुंच की निश्चित रूप से सराहना की होगी.”

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