कौन हैं वी रामसुब्रमण्यम, जिन्हें बनाया गया राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का नया चेयरमैन
नई दिल्ली:
केंद्र सरकार ने जस्टिस (रिटायर) वी. रामसुब्रमण्यम (V Ramasubramaniam) को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) का नया अध्यक्ष नियुक्त किया है. ये एक नोडल निकाय है, जो सरकार या लोक सेवक द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच कर करता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एक उच्चस्तरीय समिति ने 18 दिसंबर 2024) को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अगले अध्यक्ष का चयन करने के लिए बैठक की थी. इससे पहले NHRC के चेयरमैन के लिए पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ की चर्चा थी. हालांकि, जस्टिस चंद्रचूड़ ने इन खबरों को खारिज किया था.
वी. रामसुब्रमण्यम का जन्म 30 जून, 1958 को हुआ था. उन्होंने चेन्नई के रामकृष्ण मिशन, विवेकानंद कॉलेज से रसायन विज्ञान में ग्रेजुएट की डिग्री ली और फिर मद्रास लॉ कॉलेज में कानून की पढ़ाई की. 16 फरवरी, 1983 को वो बार के सदस्य के रूप में नामांकित हुए. रामसुब्रमण्यम ने मद्रास हाईकोर्ट में लगभग 23 साल तक वकालत की. जिसमें उन्होंने सीनियर वकील के. सर्वभौमन और टी.आर. मणि के साथ 1983 से 1987 तक चार साल तक काम किया.
31 जुलाई 2006 को बने थे मद्रास हाईकोर्ट के जज
रामसुब्रमण्यम को 31 जुलाई, 2006 को मद्रास हाईकोर्ट के एडिशनल जज के रूप में नियुक्त किया गया. 9 नवंबर 2009 को उनको स्थायी जज के रूप में नियुक्त किया गया. 27 अप्रैल 2016 से तेलंगाना और आंध्र प्रदेश राज्यों के लिए हैदराबाद में हाईकोर्ट में अपने खुद के अनुरोध पर उनका तबादला कर दिया गया था. राज्य के विभाजन और आंध्र प्रदेश राज्य के लिए एक अलग हाईकोर्ट के बनने के बाद 1 जनवरी 2019 से हैदराबाद में तेलंगाना के हाईकोर्ट के जज के रूप में वी. रामसुब्रमण्यम ने काम किया.
22 जून 2019 को बने हिमाचल कोर्ट के चीफ जस्टिस
वी. रामसुब्रमण्यम ने 22 जून, 2019 को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली. 23 सितंबर, 2019 को वी. रामसुब्रमण्यम भारत के सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त किए गए. जहां से वो अपनी सेवा से रिटायर हुए.
वी. रामसुब्रमण्यम के बड़े फैसले
-जस्टिस रामसुब्रमण्यम ने 2018 में बिटकॉइन और एथेरियम जैसी क्रिप्टोकरेंसी में ट्रेडिंग पर प्रतिबंध लगाने वाली भारतीय रिजर्व बैंक (RBI)के सर्कुलर को रोक दिया था.
-जस्टिस रामसुब्रमण्यम ने अपने एक फैसले में कहा था कि केंद्र सरकार अपने मंत्रियों द्वारा निजी क्षमता में दिए गए बयानों के लिए जिम्मेदार नहीं है, लेकिन संसद या राज्य विधानसभाओं में दिए गए बयानों के लिए जिम्मेदार है.
-जस्टिस रामसुब्रमण्यम पांच-जजों की संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने 2016 की डिमोनेटाइजेशन योजना की संवैधानिकता को बरकरार रखा था.