कांग्रेस से दूरी और केजरीवाल से नजदीकी… आखिर क्या चाहते हैं अखिलेश यादव? समझिए दिल्ली में A+A का मतलब
नई दिल्ली:
“मैं आपको भरोसा दिलाता हूं कि समाजवादी पार्टी पूरी जिम्मेदारी से आपके साथ खड़ी है. कभी भी आपको मदद और सहयोग की जरूरत पड़ेगी, हम आपके साथ दिखाई देंगे. दिल्ली जितनी आपकी है, जितना आप सरकार ने काम किया है, उतना हम भी महसूस करते हैं. आपको यहां एक बार फिर से काम करने का मौका मिलना चाहिए.”
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और कन्नौज से सांसद अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने सोमवार को दिल्ली के पूर्व CM अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) से ये बातें कही. मौका था ‘महिला अदालत’ का, जिसका आयोजन आम आदमी पार्टी (AAP) ने दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम में 12 साल पहले हुए निर्भया कांड (Nirbhaya Case) को लेकर किया था. इस मंच से सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अरविंद केजरीवाल के लिए ‘फ्रेंड्स फॉर एवर’ का ऐलान करके कांग्रेस और BJP दोनों को टेंशन दे दी. अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव की इस नई जोड़ी को एक नए फॉर्मूले A+A के रूप में भी देखा जा रहा है.
आइए समझते हैं कि दिल्ली में A+A (अरविंद+ अखिलेश) का मतलब क्या है? INDIA अलायंस की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए ये टेंशन वाली बात क्यों है. इसमें BJP के लिए क्या मैसेज छिपा हुआ है:-
कहां से हुई शुरुआत?
7 दिसंबर को सपा महासचिव रामगोपाल यादव ने एक बयान दिया. उन्होंने कहा- “लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी INDIA अलायंस के लीडर नहीं हैं.” INDIA अलायंस में लीडरशिप को लेकर फिर लालू प्रसाद यादव ने ममता बनर्जी के लिए फील्डिंग कर दी. उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी को विपक्षी गठबंधन को लीड करना चाहिए. लालू के बेटे तेजस्वी यादव ने भी ऐसे बयान दिए. इन बयानों के कई मतलब निकाले जाने लगे.
राजनाथ, प्रियंका से लेकर अखिलेश तक… लोकसभा में संविधान पर विशेष चर्चा के दौरान किसने क्या कहा?
अब अखिलेश यादव ने दिल्ली में AAP संयोजक अरविंद केजरीवाल का सपोर्ट किया. अखिलेश ने न सिर्फ केजरीवाल का हौसला बढ़ाया, बल्कि AAP सरकार के हेल्थ मॉडल, एजुकेशन मॉडल की तारीफ करते नजर आए. इस तरह से अखिलेश यादव ने ये मैसेज दिया कि उनके पास कांग्रेस के विकल्प मौजूद हैं.
इंडिया गठबंधन से अलग हो जाएगी SP? कांग्रेस के साथ अनबन के बाद उठने लगे सवाल
अरविंद केजरीवाल के समर्थन में अखिलेश यादव ने कहा, “मैं अरविंद केजरीवाल को बधाई देता हूं. इतना कुछ हो जाने के बाद भी आपका हौसला कम नहीं हुआ. आपका हौसला-संघर्ष मुझे दिखाई दे रहा है. आज आपने जो सुरक्षा का सवाल उठाया है. मुझे पूरा भरोसा है कि यहां की माता-बहनें मिलकर अपने दिल्ली के लाल को दोबारा सम्मान दिलाने का काम करेंगी.”
अखिलेश यादव को कांग्रेस से क्या नाराजगी?
-अखिलेश यादव की कांग्रेस से नाराजगी मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 से शुरू हुई थी. अखिलेश ने कहा था, “कांग्रेस के नेताओं ने हमें बुलाकर पूरे आंकड़े देखे. भरोसा दिया कि 6 सीटों पर सपा के लिए विचार करेंगे, लेकिन सीटें घोषित की गईं तो सपा शून्य रही.
-यूपी में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने कहा था, “मध्य प्रदेश में सपा की कोई हैसियत नहीं है. INDIA गठबंधन केंद्र के लेवल पर है. इसलिए सीटें देने का सवाल ही नहीं.” इसके बाद अखिलेश यादन ने कहा, “सपा के साथ जैसा व्यवहार होगा, वैसा व्यवहार उनको (कांग्रेस) देखने को भी मिलेगा.”
-फिर हरियाणा में सीट शेयरिंग पर बात हुई थी. लेकिन कांग्रेस ने सपा को लड़ने के लिए एक भी सीट नहीं दी. महाराष्ट्र में काफी मशक्कत के बाद सपा को MVA 2 सीटें देने के लिए तैयार हुई थी, जबकि सपा ने 5 सीटें मांगी थी. सीटों पर आम सहमति नहीं बन पाने पर आखिरकार सपा ने 8 सीटों पर अपने कैंडिडेट खड़े किए थे. इनमें से सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल हुई थी. सपा के रईस शेख भिवंडी ईस्ट से विधायक हैं.
महाराष्ट्र तक पहुंची इंडिया गठबंधन की खटपट, अखिलेश यादव-राहुल गांधी की दोस्ती का क्या होगा
-इसके बाद 20 नवंबर को यूपी की 9 सीटों पर उपचुनाव हुए. उपचुनाव के लिए कांग्रेस-सपा के साथ सीट शेयरिंग चाहती थी. लेकिन दोनों पार्टियों के बीच सीट बंटवारे पर बात नहीं बन पाई. ऐसे में सपा ने सभी 9 सीटों पर उम्मीदवार उतारे. उपचुनाव में 7 सीटें BJP ने जीत ली. 2 सीटों पर सपा को जीत मिली. कांग्रेस ने चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया.
-अखिलेश यादव लोकसभा में सिटिंग अरेंजमेंट लेकर भी नाराज बताए जाते हैं. पहले अखिलेश यादव, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और अयोध्या से सपा सांसद अवधेश प्रसाद के साथ बैठते थे. सीटिंग अरेंजमेंट बदली, तो अयोध्या सांसद को सेकेंड लाइन में भेजा गया. अखिलेश यादव ने इसपर आपत्ति जताई. अब अखिलेश सदन में राहुल के बगल में नहीं बैठते. वो अलॉट की हुई सीट पर बैठते हैं.
-अखिलेश यादव को यह भी लगता है कि संसद में कांग्रेस बाकी मुद्दों को नजरअंदाज कर रही है. संभल हिंसा पर चर्चा को लेकर कांग्रेस और सपा सांसद एक बात तो आमने-सामने भी आ गए थे. जब संसद में राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्ष का प्रदर्शन हुआ, तो सपा उसमें शामिल नहीं हुई थी.
अखिलेश और केजरीवाल की नजदीकी कांग्रेस के लिए टेंशन वाली बात क्यों?
कांग्रेस की सबसे बड़ी टेंशन INDIA अलायंस में साइडलाइन होने को लेकर है. कांग्रेस के नेतृत्व पर गठबंधन की कई छोटी-बड़ी पार्टियों ने आपत्ति जताई है. राहुल गांधी की लीडरशिप को लेकर लालू यादव, ममता बनर्जी और अखिलेश खुले तौर पर ऐतराज जता चुके हैं. ऐसे में अगर केजरीवाल और अखिलेश यादव की नजदीकियां बढ़ीं, तो जाहिर तौर पर नए फॉर्मूले भी बन सकते हैं. अखिलेश की मदद से यूपी में केजरीवाल को फायदा हो सकता है. केजरीवाल की मदद से अखिलेश भी दिल्ली में ‘साइकिल’ चलाने की कोशिश कर सकते हैं.
सपा में खलबली : आजम खान अब चंद्रशेखर और ओवैसी के साथ मिलकर कौन सी खिचड़ी पका रहे?
राहुल को छोड़कर अखिलेश को क्यों साध रहे केजरीवाल?
AAP ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि वह कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेगी. अब दिल्ली के बाहर खासतौर पर यूपी में अपने पैर रखने के लिए हो सकता है कि अरविंद केजरीवाल सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को एक मीडिएम के तौर पर देख रहे हों. क्योंकि अब तक AAP यूपी में बुरी तरह से फेल साबित हुई है. केजरीवाल ने मोदी के खिलाफ वाराणसी से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था. लेकिन वो बुरी तरह से फेल हुए थे.
कैसे हाथ से छूटता गया झाड़ू?
– साल 2013 में पहली बार AAP ने दिल्ली की सियासत में कदम रखा था. इस दौरान हुए चुनाव में AAP ने 70 में से 28 सीटों पर जीत दर्ज की थी. कांग्रेस को सिर्फ 8 सीटें ही मिली थी. BJP ने 31 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी. किसी भी पार्टी को बहुमत न मिलने की स्थिति में कांग्रेस और AAP ने पहली बार हाथ मिलाया. इस गठबंधन की सरकार में कांग्रेस और AAP की सहमति से अरविंद केजरीवाल पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने.
-इस बीच गठबंधन पर सवाल उठने लगे कि जिस भ्रष्टाचार-जन लोकपाल बिल के मुद्दे उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ा और अब उन्हीं के साथ गठबंधन की सरकार बना ली गई. ऐसे में महज 49 दिन बाद 14 फरवरी 2014 को अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया.
-2015 में फिर से चुनाव हुए और AAP ने 70 में से 67 सीटों पर विजय पाकर इतिहास रच दिया. यह पहली बार था कि किसी भी पार्टी को दिल्ली में इतनी सीटें मिली थी. इस चुनाव में AAP और कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ा. इसके बाद AAP-कांग्रेस के बीच की दूरियां इस साल हुए लोकसभा चुनाव में कम हुई, जब AAP और कांग्रेस समेत 28 विपक्षी पार्टियों ने INDIA ब्लॉक बनाया.
-दोनों दलों ने दिल्ली, हरियाणा, गुजरात और गोवा में साथ ही लोकसभा का चुनाव भी लड़ा. पंजाब में दोनों दलों ने अकेले चुनाव लड़ा. दिल्ली में AAP ने 4 और कांग्रेस ने 3 सीटों पर चुनाव लड़ा. हालांकि, दोनों ही पार्टियों को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली.
-पंजाब के उलट चंडीगढ़ में 2 चुनाव में AAP-कांग्रेस के गठबंधन का फॉर्मूला हिट रहा. दोनों पार्टियों ने नगर निगम के 35 वार्डों का चुनाव गठबंधन में लड़ा. AAP को 13 और कांग्रेस ने 7 वार्डों में जीत हासिल की. जबकि BJP 14 पर ही सिमट गई थी. एक सीट अकाली दल को मिली. काफी सियासी उठापटक के बाद AAP का मेयर बना.
-हरियाणा चुनाव में दोनों दलों की तल्खियां फिर सामने आ गईं. गठबंधन को लेकर कांग्रेस-AAP के बीच 3 मीटिंग हो चुकी थी. INDIA गठबंधन के तहत AAP, कांग्रेस से 10 सीटें मांग रही थी. जबकि कांग्रेस ने AAP को साफ-साफ कह दिया था कि 4 से 5 सीटें ले ले.
-कांग्रेस की तरफ से AAP को 4+1 फॉर्मूला यानी 5 सीट का ऑफर दिया गया है. इनमें जींद, कलायत, पानीपत (ग्रामीण), गुरुग्राम और पिहोवा सीट शामिल है. हालांकि, AAP ओल्ड फरीदाबाद सीट समेत कुल 10 सीटों की मांग पर अड़ी हुई थी. गठबंधन को लेकर स्थिति साफ नहीं होने पर AAP ने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया. इसके बाद से कांग्रेस और AAP की दूरियां बढ़ती जा रही हैं. दिल्ली के मुद्दों पर कांग्रेस और INDIA अलायंस का साथ नहीं देना, केजरीवाल को अखर गया. जिसके बाद से पार्टी के नेता एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करने लगे.
क्या दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ेगी सपा?
इसकी गुंजाइश कम लगती है. क्योंकि सपा ने आखिरी बार 2013 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव लड़ा था. तब सपा ने 25 सीटों पर कैंडिडेट उतारे थे. इन सभी सीटों पर उसके कैंडिडेट की जमानत तक जब्त हो गई थी. इसके बाद सपा ने 2015 और 2020 का इलेक्शन नहीं लड़ा.
अखिलेश और केजरीवाल की दोस्ती और कांग्रेस से बढ़ती तल्खी में BJP के लिए भी एक मैसेज छिपा है. मैसेज है गठबंधन के भीतर एक अलग गठबंधन का. इससे पहले एक बार अखिलेश और राहुल गांधी की जोड़ी फ्लॉप हो चुकी थी. लेकिन दोनों ने खुद को रिवाइव किया. जिसका नतीजा यूपी में लोकसभा चुनाव में देखने को मिला. अब देखना होगा कि अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव की नई जोड़ी सियासत में कौन से नए रंग दिखाती है.
संभल हिंसा और कुंदरकी में जीत… CM योगी ने समझाया विपक्ष की ‘खटाखट साजिशों’ का जनता ने कैसे किया सफाचट