देश

"पैसे पर ध्यान क्यों? चुनाव महंगे हैं": लोकसभा चुनाव में सबसे अमीर उम्मीदवार पेम्मासानी चन्द्रशेखर

डॉ. पेम्मासानी ने The Hindkeshariको एक विशेष साक्षात्कार में बताया, “मुझे नहीं पता कि आप लोग पैसे के पहलू पर इतना ध्यान क्यों दे रहे हैं. दुर्भाग्य से, इन दिनों राजनीति महंगी हो गई है. ऐसा नहीं है कि यह बदलाव है. वास्तव में, हम सभी को इसके बारे में चर्चा करने की ज़रूरत है. आम लोग इनमें से किसी भी चुनाव में चुनाव नहीं लड़ सकते हैं.”

डॉ. पेम्मासानी चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी से उम्मीदवार हैं, जो लगभग छह साल बाद एनडीए में वापस आ गई है. वह गुंटूर से चुनाव लड़ रहे हैं.

यहां दो बार के सांसद गल्ला जयदेव ने व्यावसायिक प्रतिबद्धताओं और आंध्र प्रदेश सरकार और केंद्र द्वारा पैदा की गई परेशानियों का हवाला देते हुए अपना नाम वापस ले लिया है. 

यह पूछे जाने पर कि उन्होंने चुनाव लड़ने का फैसला क्यों किया, डॉ. पेम्मासानी ने कहा कि यह समाज को वापस लौटाने के बारे में है.  उन्होंने कहा कि मुझे आने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि मेरे पास संभवतः वे सभी सुख-सुविधाएं हैं. मेरे आने का मुख्य कारण यह है कि मैं इसे समाज को वापस देना चाहता हूं. एक बार जब आप उस विचारधारा को प्राप्त कर लेते हैं, आप अधिकांश मानवीय समस्याओं को धैर्यपूर्वक सुन सकते हैं और उनमें से अधिकांश को हल कर सकते हैं.

उस्मानिया मेडिकल कॉलेज से स्नातक, डॉ. पेम्मासानी ने अमेरिका में जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी – सिनाई अस्पताल में पांच साल तक काम किया. भारत वापस आकर, राजनीति में उतरने का निर्णय लेने से पहले वह एक शिक्षाविद् और उद्यमी बन गए. 

यह भी पढ़ें :-  "ममता बनर्जी पर भरोसा न करें": INDIA गठबंधन को समर्थन देने के बयान पर बोले अधीर रंजन

वह जोर देकर कहते हैं कि उनका अभियान नकारात्मक नहीं है. उन्होंने कहा, “राज्य बहुत अधिक कर्ज में है. हमारे पास पूंजी नहीं है. हमारे पास एक भी उद्योग नहीं है. इसलिए हमें केंद्र सरकार के समर्थन की जरूरत है.”

उनकी पार्टी का लक्ष्य उन 130 संस्थानों को बहाल करना है जिन्हें नायडू ने मुख्यमंत्री रहते हुए अनुमति दी थी. उन्होंने कहा, ”जगन मोहन रेड्डी ने सभी 130 को पूरी तरह से रद्द कर दिया.

उन्होंने कहा कि यहां तक ​​कि अनुरोध करने के लिए भी दो से तीन साल की प्रक्रिया है. किसी को आकर परियोजना रिपोर्ट बनानी होगी, कुछ बुनियादी ढांचे का निर्माण करना होगा नौकरी बनाने में दो से तीन साल लगेंगे. मैं हर किसी को बता रहा हूं कि हम पहले दिन एक भी नौकरी नहीं दे सकते. यह समस्या है जब आप ऐसी सरकार चुनते हैं जिसमें यह विकास-समर्थक प्रकृति नहीं है. आप आम तौर पर न्यूनतम 7 से 8 साल खोते हैं.”

ये भी पढ़ें:- 
Explainer : लोकसभा चुनाव के बीच ‘हिंदू-मुस्लिम’ आबादी वाली रिपोर्ट के क्या हैं सियासी मायने? एक्सपर्ट्स से समझें

Show More

संबंधित खबरें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button