इजरायल ने गाज़ा पर की 'मौत की बारिश', जानें फॉस्फोरस बम कैसे ऑक्सीजन के साथ रिएक्शन कर मचाता है तबाही
आइए जानते हैं क्या है फॉस्फोरस बम और ये ऑक्सीजन के साथ रिएक्शन करके कैसे मचाता है तबाही:-
क्या है फॉस्फोरस बम?
फॉस्फोरस एक केमिकल होता है, जिसकी खरीदारी पर तो कोई प्रतिबंध नहीं है, लेकिन इससे तैयार बम को इस्तेमाल को लेकर नियम हैं. फॉस्फोरस मुलायम रवेदार केमिकल होता है. यह ऑक्सीजन के संपर्क में आने पर तेजी से जलने लगता है. इसमें से लहसुन जैसी गंध आती है. यही वजह है कि इससे तैयार बम तेजी से आग को फैलाता है.
किसने किया था आविष्कार?
ऐसा माना जाता है कि सफेद फास्फोरस का इस्तेमाल पहली बार 19वीं शताब्दी में फेनियन (आयरिश राष्ट्रवादी) आगजनी करने वालों द्वारा किया गया था. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 1916 के अंत में ब्रिटिश सेना द्वारा पहला कारखाना-निर्मित सफेद फास्फोरस ग्रेनेड पेश किया गया था.
यह कितना खतरनाक है?
फॉस्फोरस का टेम्प्रेचर 800 डिग्री सेंटीग्रेट से ज्यादा होता है. जब इसका धमाका होता है, तो इसके कण बहुत दूर तक फैलते हैं. ये शरीर में पहुंचने या इनके संपर्क में आने वाले इंसान की जान भी जा सकती है. इसका धुआं इंसान का दम घोंट देता है. यही वजह है कि इसके धुएं के गुबार में फंसे लोग दम तोड़ देते हैं. फॉस्फोरस स्किन के अंदरूनी टिश्यू को बुरी तरह से डैमेज कर देता है. यह अंदरूनी अंगों तक को नुकसान पहुंचा सकता है.
व्हाइट फॉस्फोरस को लेकर क्या है अंतरराष्ट्रीय नियम?
व्हाइट फॉस्फोरस को लेकर अंतरराष्ट्रीय नियम भी हैं. 1977 में जिनेवा कन्वेंशन में ये नियम बने. आम लोगों की मौजूदगी में इसके इस्तेमाल पर पाबंदी है. ऐसा करने पर इसे रासायनिक हथियार में गिना जाएगा. हालांकि, जंग में इसका प्रयोग करने की बात कही गई.
यूक्रेन पर रूस की ओर से फॉस्फोरस बम गिराने का आरोप
रूस-यूक्रेन जंग अभी तक भी किसी निर्णायक मोड़ पर नहीं पहुंची है. रूस की ओर से यूक्रेन पर कई तरह से हमले किए गए हैं. इसी क्रम में अब यूक्रेन की ओर से दावा किया गया है कि रूस ने उसके शहर बखमुत पर फॉस्फोरस बम गिराया है. वायरल हुए ड्रोन फुटेज में देखा जा सकता है कि कैसे फॉस्फोरस बम ने शहर में मचाई.
फास्फोरस बम का इस्तेमाल कब-कब हुआ?
रूस-यूक्रेन युद्ध, इराक युद्ध, अरब-इजरायल संघर्ष जैसे आधुनिक युद्धों में फास्फोरस गोला बारूद का इस्तेमाल किया गया था. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 1916 के अंत में ब्रिटिश सेना द्वारा पहला कारखाना-निर्मित सफेद फास्फोरस ग्रेनेड पेश किया गया था.
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