इजरायल पर मिसाइल हमला, क्या अब युद्ध में खुद शामिल होना चाहता है ईरान, क्या होंगे परिणाम
नई दिल्ली:
इजरायल की राजधानी तेल अवीव में मंगलवार रात ईरान ने करीब 180 मिसाइलें दागीं. इनमें से कुछ को इजरायल की रक्षा प्रणाली ने हवा में ही नष्ट कर दिया तो कुछ अपने लक्ष्य में पहुंचने में सफल रहीं. इन हमलों के बाद ईरान ने कहा कि उसने यह हमला हिज्बुल्लाह के प्रमुख सैय्यद हसन नसरल्लाह और हमास नेता इस्माइल हानिया की हत्या के प्रतिरोध में किया गया है. ईरान ने कहा है कि अगर इजरायल ने जवाबी कार्रवाई की तो और हमला किया जाएगा. इस बीच अमेरिका ने कहा है कि वो इजरायल की रक्षा करने को तैयार है.
ईरान की इजरायल को चेतावनी
ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन ने इन हमलों के बाद कहा है कि ईरान ने वैध अधिकारों के साथ ईरान और क्षेत्र की शांति और सुरक्षा के लिए निर्णायक प्रतिक्रिया दी है, जो ईरान के हितों और नागरिकों की सुरक्षा के लिए है.इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को संबोधित करते हुए पेजेशकियन ने लिखा है कि इजरायल के प्रधानमंत्री को ये जानना चाहिए कि ईरान युद्ध का पक्षधर नहीं है लेकिन किसी भी खतरे के खिलाफ मजबूती से खड़ा रहेगा. उन्होंने कहा है कि आज का हमला ईरान की क्षमताओं की एक झलक थी और ईरान के साथ संघर्ष में शामिल न हों.
ईरान की ओर से यह हमला अप्रत्याशित नहीं था.इजरायल ने बीते हफ्ते लेबनान में हवाई हमला कर हिज्बुल्लाह के प्रमुख सैय्यद हसन नसरल्लाह की हत्या कर दी थी.इस हमले में हिज्बुल्लाह के कई और वरिष्ठ नेता भी मारे गए थे.इससे पहले इजरायल ने 30-31 जुलाई की रात ईरान की राजधानी तेहरान में हमला कर हमास की राजनीतिक शाखा के प्रमुख इस्माइल हानिया की हत्या कर दी थी. इसके बाद से ही ईरान ने इजरायल के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी थी.इसके बाद से ही ईरान की ओर से कार्रवाई की उम्मीद की जा रही थी.
सात अक्टूबर के हमले की बरसी
ईरान ने इजरायल पर यह हमला ऐसे समय किया है, जब हमास की ओर से इजरायल पर सात अक्तूबर 2023 को किए गए हमले के एक साल पूरे होने वाले हैं. सात अक्तूबर के हमले में 12 सौ से अधिक इजरायली मारे गए थे. हमास ने करीब ढाई सौ लोगों को बंधक बना लिया था. इसमें इजरायली और विदेशी नागरिक शामिल थे. इस हमले के बाद से इजरायल से गाजा में पहले हवाई हमले किए और बाद में जमीनी कार्रवाई शुरू की. इन हमलों में अब तक करीब 50 हजार लोगों को जान जा चुकी है.बाद में इजरायल ने युद्ध का दायरा बढ़ा दिया.उसने यमन में हूतियों और लेबनान में हिज्बुल्लाह के खिलाफ भी अभियान छेड़ रखा है.
इजरायल-हमास युद्ध से अशांत होता मध्य-पूर्व
इजरायल-हमास युद्ध के फैलते जाने से मध्य पूर्व और अशांत हो गया है. दोनों पक्षों में सुलह समझौते की कोशिशें नाकाम हो चुकी हैं. इसके बाद भी समझौते की कोशिशें पर्दे के पीछे से जारी हैं.ईरान की सरकारी समाचार एजेंसी ईरना ने मंगलवार को ही खबर दी थी कि ब्रिटेन भी सुलह-समझौते की कोशिशों में लगा हुआ है. लेकिन पर्दे पर आकर अमेरिका-फ्रांस जैसे पश्चिम के अधिकतर ताकतवर देश इजरायल के साथ खड़े नजर आते हैं.हालांकि ये देश सुलह-समझौते की कोशिशें करते हुए भी दिख रहे हैं, लेकिन उनकी कोशिशें परवान नहीं चढ़ रही हैं.इजरायल उनकी अपीलों को अनसुनी कर दे रहा है. वहीं ईरान अपने प्रॉक्सी के जरिए इस लड़ाई में शामिल है.हमास, हिज्बुल्लाह और हूती के अलावा मध्य पूर्व के कई देशों में उसके प्रॉक्सी संगठन काम कर रहे हैं. वो अपने-अपने तरीके से इजरायल को निशाना बनाते रहते हैं. ईरान इन संगठनों को ‘एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस’ का नाम देता है.इसके अलावा रूस और मध्य पूर्व के कुछ और देशों का भी समर्थन हासिल है.रूस हालांकि खुद ही यूक्रेन के साथ युद्ध में फंसा हुआ है, वैसे में वह इस लड़ाई में कभी खुलकर सामने नहीं आता है.हालांकि अभी कुछ समय पहले तक सीरिया में आईएस के खिलाफ राष्ट्रपति असद की लड़ाई में रूस खुलकर उनके साथ.लेकिन अभी उसका सारा ध्यान यूक्रेन से जारी युद्ध पर लगा हुआ है.
इजरायल से युद्ध पर ईरान का स्टैंड
इस साल अप्रैल में सीरिया में ईरानी दूतावास पर हमला हुआ था.इसमें इस्लामिक रिवॉल्यूशन गार्ड कोर के उच्च रैंक वाले आठ कमांडरों की मौत हो गई थी. ईरान ने इसे इजरायल का हमला बताया था. उस समय भी तनाव बढ़ गया था.ईरान ने इसका जवाब देने की कसम खाई थी. इसके बाद ईरान ने इजरायल पर सैकड़ों मिसाइलें छोड़ी थीं.हालांकि यह लड़ाई बहुत लंबी नहीं चली थी. दोनों पक्षों ने संयम बरतते हुए हमले बंद कर दिए थे. लेकिन तेहाइन में हानिया की हत्या ने ईरान को भड़का दिया.
उसने हानिया की हत्या की बदला लेने की कमस खाई. लेकिन अब तक कुछ कर नहीं पाया था या अगर कुछ किया भी तो किसी को पता नहीं चला. इस बीच नसरूल्लाह की हत्या ने इस आग को और हवा दे दी. इससे ईरान के विदेशी समर्थकों में उसकी छवि धूमिल होने लगी. उसकी विश्वसनीयता पर संकट आ गया. इससे निपटने के लिए मंगलवार रात उसने इजरायल पर मिसाइलें दागीं.
सुलह-समझौते के पक्ष में है ईरान का नेतृत्व
ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन ने 24 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक को संबोधित किया था.इसमें उन्होंने कहा था कि हम सभी के लिए शांति चाहते हैं.हम किसी भी देश के साथ विवाद नहीं चाहते हैं.ईरानी राष्ट्रपति का यह रवैया वहां के रूढ़िवादी नेताओं के रवैये के विपरीत सुलह-समझौते वाला था.इससे पहले उन्होंने अमेरिका के कुछ पत्रकारों से बातचीत में कहा था कि इजरायल उन्हें युद्ध में घसीटने की कोशिश कर रहा है.उन्होंने कहा था कि वो इजरायल के साथ तनाव खत्म करने के लिए तैयार हैं.अगर इजरायल हथियार डालता है तो ईरान भी ऐसा करने के लिए तैयार है.राष्ट्रपति पेजेशकियन के इस बयान की ईरान में काफी आलोचना हुई थी.
इसके अगले दिन ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामनेई ने भी देश को संबोधित करते हुए इजरायल को धमकाने या जवाबी कार्रवाई जैसी बातें नहीं की थीं. इससे भी लोगों को आश्चर्य हुआ था.दरअसल ईरान इस युद्ध में सीधे नहीं उलझना चाहता है. अगर वह इस युद्ध में सीधे शामिल हुआ तो अमेरिकी आर्थिक पाबंदियों की वजह से हिचकोले खा रही उसकी अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी. इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार का हमला भी तनाव बहुत ज्यादा नहीं बढ़ाएगा, यह वैसा ही होगा, जैसा अप्रैल में हुआ था.
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