संसद को फ्रीबीज पर विचार करने की जरूरत…; उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

नई दिल्ली:
देश के उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने ‘फ्रीबीज’ यानी मुफ्त प्रलोभनों के बढ़ते चलन पर चिंता जताते हुए इस मुद्दे पर गंभीर विचार-मंथन की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने कहा कि देश की प्रगति तभी संभव है जब सरकार का निवेश और पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) एक संरचित तरीके से उपयोग हो. अपने संबोधन में उन्होंने कहा, “प्रलोभन तंत्र और तुष्टिकरण, जिन्हें अक्सर ‘फ्रीबीज’ कहा जाता है, पर इस सदन को विचार करने की जरूरत है.”
चुनावी प्रलोभन और सरकारों की मजबूरी
चुनावी प्रक्रिया में ‘फ्रीबीज’ के चलन पर चिंता जताते हुए अध्यक्ष ने कहा कि ये प्रलोभन अब एक आम बात बन गए हैं. इसके परिणामस्वरूप, सत्ता में आने वाली सरकारें असहज स्थिति में आकर अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने को मजबूर होती हैं. उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार के सभी निवेश को बड़े हित में संरचित ढंग से उपयोग करने के लिए एक राष्ट्रीय नीति बेहद जरूरी है.
वेतन, भत्ते और पेंशन में असमानता का मुद्दा
अध्यक्ष ने विधायकों और सांसदों के वेतन, भत्ते और पेंशन में असमानता को भी रेखांकित किया. उन्होंने बताया कि कई राज्यों में विधायकों को सांसदों से अधिक सुविधाएं मिलती हैं, और पूर्व विधायकों की पेंशन में 1 से 10 गुना तक का अंतर है. उन्होंने कहा, “यदि एक राज्य में पेंशन एक रुपया है, तो दूसरे में यह 10 गुना हो सकती है. ऐसे मुद्दों को कानून के जरिए हल करना चाहिए, जिससे सरकार, कार्यपालिका और राजनेताओं को लाभ हो और उच्च गुणवत्ता वाला निवेश सुनिश्चित हो.”
कृषि सब्सिडी के लिए अमेरिकी मॉडल का सुझाव
कृषि सब्सिडी के संदर्भ में अध्यक्ष ने अमेरिकी मॉडल का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा, “अमेरिका में हमारे देश की तुलना में 1/5वां कृषि परिवार है, फिर भी वहां औसत किसान परिवार की आय सामान्य परिवार से अधिक है. इसका कारण है कि वहां सब्सिडी सीधी, पारदर्शी और बिना बिचौलियों के दी जाती है. ” उन्होंने सुझाव दिया कि भारत में भी आवश्यक क्षेत्रों जैसे कृषि के लिए सब्सिडी को इसी तरह पारदर्शी तरीके से लागू करना चाहिए.
संविधान सभा की बहस की प्रासंगिकता
अध्यक्ष ने संविधान सभा की बहस का जिक्र करते हुए कहा कि सिधवा ने न्यायाधीशों को हटाने की संसद की शक्ति पर चर्चा के दौरान भविष्यवाणी की थी कि न्यायाधीशों की संख्या बढ़ेगी, लेकिन मामले निष्पादित नहीं हो पाएंगे. उन्होंने कहा, “यह आज भी प्रासंगिक है.” इस संबोधन से स्पष्ट है कि संसद में ‘फ्रीबीज’ और संसाधनों के दुरुपयोग पर व्यापक बहस की जरूरत है, ताकि देश के विकास के लिए एक ठोस और संतुलित नीति बन सके.