देश

छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ एक्शन, तत्काल कैंप लगाकर अभियान चलाने की तैयारी

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि रोज नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं, जिसके चलते फोर्स हमेशा मूवमेंट पर रहती है. तत्काल शिविर स्थापित किए जा रहे हैं और कभी-कभी सुरक्षा मापदंडों की अनदेखी की जाती है, जिसके कारण ऐसे हमले हो रहे हैं. जिस कैम्प पर 30 जनवरी को हमला हुआ था, वो हमले के चंद घंटे पहले ही स्थापित किया गया था.

जानकारी के मुताबिक़ पिछले एक महीने में सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के गढ़- पाडिया, मुलेर, सुकमा जिले के सलातोंग, बीजापुर जिले के मुरकराजबेड़ा और दुलेड़ में कई कैंप बनाए हैं. कावरगांव, चिंतागुफा के अलावा डुमरीपालनार, पालनार, मुतावेंडी में भी कैंप लगाये गये हैं.

एक अधिकारी ने बताया कि जब टेकेलगुडेम में ऐसा एक शिविर स्थापित किया जा रहा था, जब सुरक्षा बल आसपास के क्षेत्र को सुरक्षित करने की कोशिश कर रही थी, तभी एक दल पर नक्सलियों ने हमला कर दिया. उनके मुताबिक इस इलाके में हिडमा का यह दूसरा हमला है. पिछले साल 3 अप्रैल 2023 को सुरक्षा बलों के यहां घुसने पर 23 जवान शहीद हो गए थे.

दिलचस्प बात यह है कि सिलगिर गांव में जहां हमला हुआ, उससे कुछ ही किलोमीटर दूर कई ग्रामीण ऐसे शिविरों के विरोध में धरने पर बैठे हैं. अकेले बस्तर में इन सुरक्षा शिविरों की स्थापना के खिलाफ 23 बार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. जिला प्रशासन के मुताबिक़ टेकेलगुडेम पिछले चार दशकों से नक्सल प्रभावित रहा है और इसीलिए इस क्षेत्र में विकास नहीं हो पा रहा था.

एक अधिकारी ने बताया कि यहां से चार किमी दूर पूर्व नक्सली कमांडर हिडमा का गांव है. इस वजह से टेकेलगुडेम समेत आसपास के कई गांवों में सड़क, बिजली, स्कूल और अस्पताल नहीं हैं. नक्सली अपने दबाव में अधिकतर ग्रामीणों को संगठन में शामिल होने के लिए मजबूर करते रहे हैं. बच्चों को बचपन से ही नक्सलवाद का पाठ पढ़ाया जाता है, भ्रमित किया जाता है और संगठन में भर्ती कर लिया जाता है.

यह भी पढ़ें :-  दिल्ली में प्रदूषण संकट : वायु गुणवत्ता ‘खराब’ श्रेणी में बरकरार; क्या है इसका समाधान?

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह हाल ही में इस बात पर जोर देते रहे हैं कि अगले तीन वर्षों में भारत में नक्सली खतरा खत्म हो जाएगा. सुरक्षा बल उनसे प्रेरणा लेते हुए सावधानीपूर्वक जमीन पर अभियान की योजना बना रहे हैं. विशेष फोकस उन इलाक़ों में किया जा रहा है जहां सीपीआई (माओवादी) के केंद्रीय क्षेत्रीय ब्यूरो के दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी (डीकेएसजेडसी) का दबदबा है.

डीकेएसजेडसी में पहाड़ी इलाके और घने जंगल का एक विशाल क्षेत्र शामिल है जो बड़ी संख्या में केंद्रीय समिति के सदस्यों को आश्रय देता है. केंद्रीय समिति के लगभग 80 प्रतिशत सदस्य दंडकारण्य क्षेत्र में तैनात हैं, जो माओवादियों के लिए प्रशासनिक रूप से एक कार्यात्मक रूप से कॉम्पैक्ट क्षेत्र बन गया है.

माना जा रहा है कि  देश के अन्य हिस्सों में हार झेलने के बाद सरकार ने इस क्षेत्र को माओवादियों के आखिरी गढ़ के रूप में भी चिन्हित किया है. पिछले हफ्ते 16 जनवरी को 400 से ज्यादा नक्सलियों ने धर्मावरम कैंप पर हमला किया था और एक हजार बैरल से ज्यादा ग्रेनेड लॉन्चर से फायरिंग कर सुरक्षा बलों का ध्यान भटकाने की कोशिश की थी.

Show More

संबंधित खबरें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button