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भारत में समलैंगिक विवाह की लड़ाई कितनी लंबी? देखें टाइमलाइन

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कोर्ट ने धारा-377 को अतार्किक और मनमानी वाली धारा बताते हुए कहा था कि LGBT समुदाय को भी समान अधिकार मिलने चाहिए. अदालत ने कहा था कि समलैंगिकता कोई मानसिक विकार नहीं है. धारा-377 के ज़रिए LGBT की यौन प्राथमिकताएं निशाना बनाई गईं. यौन प्राथमिकता बायोलोजिकल और प्राकृतिक है.अंतरंगता और निजता किसी की निजी पसंद है.

 कब से चल रही समलैंगिक विवाह की लड़ाई

17 अक्टूबर 2023: सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक शादी को मान्यता देने से किया इनकार, कहा कि यह ससंद के अधिकार क्षेत्र का मामला है.

11 मई 2023: सुप्रीम कोर्ट ने 10 दिन की सुनवाई के बाद समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाली याचिकाओं पर फ़ैसला सुरक्षित रखा.

18 अप्रैल 2023:  समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई.

24 मार्च 2023:  समलैंगिक विवाह से जुड़ी याचिकाओं का विरोध किया गया. हाइकोर्ट के 21 रिटायर्ड जजों ने खुला ख़त लिखा. उन्होंने कहा कि ‘इसकी मान्यता भारतीय वैवाहिक परंपराओं के लिए ख़तरा’ है. कई धार्मिक संगठनों ने भी इसका विरोध किया.

13 मार्च 2023: CJI की 3 जजों की पीठ ने मामला 5 जजों की पीठ में मामला भेजा.

12 मार्च 2023: केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल सभी याचिकाओं का विरोध किया.

6 जनवरी 2023: हाइकोर्ट में इससे जुड़ी सभी याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफ़र की गईं.

नवंबर-दिसंबर 2022:  समलैंगिक विवाह को मान्यता के लिए 20 और याचिकाएं दायर की गईं.

नवंबर, 2022: समलैंगिक जोड़े ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. याचिका में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग की गई.

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साल 2020-21: दिल्ली में समलैंगिक विवाह के हक़ के लिए 7 याचिकाएं दायर की गईं.

सितंबर, 2020: समलैंगिक विवाह के हक़ के लिए दिल्ली हाइकोर्ट में अर्ज़ी दाखिल की गई. हाइकोर्ट ने इस मामले पर केंद्र सरकार से मांगा जवाब.

जनवरी, 2020: समलैंगिक विवाह के हक़ के लिए केरल हाइकोर्ट में अर्ज़ी दाखिल की गई.

अक्टूबर, 2018: केरल हाइकोर्ट ने लेस्बियन जोड़े को लिव इन में रहने की इजाज़त दी.

सितंबर, 2018: समलैंगिक विवाह का मामला नवतेज सिंह बनाम भारत सरकार हो गया. सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर किया.

अगस्त, 2017: सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना

अप्रैल 2014: सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर को तीसरे जेंडर के तौर पर पहचान दी.

दिसंबर 2013: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाइकोर्ट का फ़ैसला पलटते हुए समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखा.

जुलाई 2009: दिल्ली हाइकोर्ट ने समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर किया.

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