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उत्तराखंड में 'प्यासे' झरने-गदेरे, टेंशन दे रही दिल्ली को पानी देने वाले उत्तराखंड की हालत


नई दिल्ली:

देश में इस बार भीषण गर्मी का सितम देखने को मिल रहा है. वहीं बढ़ती गर्मी में जल संकट भी बड़ी समस्या बन चुका है. दिल्ली में तो पानी की किल्लत का मामला रोज सुर्खियों में आ रहा है, लेकिन देश के बाकी राज्यों में भी जलसंकट गहराता जा रहा है. अब उत्तराखंड में भी पानी की किल्लत चिंता का सबब बन चुकी है. उत्तराखंड का जल संकट इसलिए भी बड़ा है क्योंकि दिल्ली की प्यास बुझाने के लिए यहां से भी पानी की सप्लाई होती है. आलम ये है कि उत्तराखंड में 477 जल स्रोत सूखने की कगार पर है. उत्तराखंड जल संस्थान के ताजे आंकड़े बेहद चिंताजनक है और इसकी वजह बारिश का ना होना और भीषण गर्मी कारण बताई जा रही है.

उत्तराखंड के जलसंकट की क्या वजह

एक्सपर्ट का कहना है कि उत्तराखंड में पानी की कमी का इसका सबसे बड़ा कारण अंधाधुंध पेड़ों का कटान और पहाड़ों में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य है. देहरादून का शिखर फॉल बड़े पैमाने पर शहर की आदि से ज्यादा आबादी की प्यास बुझाता है, लेकिन इसमें भी अब पानी कम हो गया है. उत्तराखंड इस वक्त पेयजल संकट से गुजर रहा है. 450 से ज्यादा झरने छोटी नदियां जिनका गदेरे कहा जाता है, उनमें पानी की कमी हो गई है. जल संस्थान के आंकड़ों के मुताबिक 50% से लेकर 80% तक इनमें पानी की कमी हो रही है.

450 से ज्यादा झरने छोटी नदियां जिनका गदेरे कहा जाता है, उनमें पानी की कमी हो गई है.

देहरादून के शिखर फॉल में भी पानी की कमी

इस वक्त देहरादून के शिखर फॉल से इस नदी से उनके आधे से ज्यादा लोगों की प्यास बुझाई जाती है. लेकिन यहां पर भी पानी की कमी हो गई है. बारिश ना होने इसकी  प्रमुख वजहों में से एक है. ऊपर से भीषण गर्मी ने समस्या और बढ़ा दी है. गढ़वाल रीजन में 263 जल स्रोत सूखने की कगार पर है. वहीं कुमाऊं रीजन में 214 स्रोत की संख्या है. जिनमें अल्मोड़ा  92, पौड़ी 72, चमोली 69 पिथौरागढ़ 47, उत्तरकाशी 36 टेहरी 37 नैनीताल 35 देहरादून 31 बागेश्वर 21 चंपावत 19 रुद्रप्रयाग 18 शामिल है.

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400 से ज्यादा बस्तियां में पानी की किल्लत

अब तो हालात ये है कि न सिर्फ शहर बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी अब पानी की किल्लत हो रही है. 400 से ज्यादा बस्तियां पेयजल संकट से जूझ रही है. सरकार अब स्रोतों को बचाने के लिए अथॉरिटी बनाने की बात कर रही है. पेयजल विभाग के सचिव अरविंद सिंह हयांकी ने कहा कि सारा का गठन किया गया है जलागम विभाग के अंतर्गत स्प्रिंगशेड और रिवर रिजुवेनेशन एजेंसी बनाई गई है. यह एजेंसी पूरे सोर्सेज की मैपिंग करेगी, हमारे स्रोत पूरे सूखने की कगार पर नही बल्कि कुछ 25 तो 50 प्रतिशत है. इसके लिए फ्यूचर के लिए ट्रीटमेंट कैसा होना है, सारा के अंदर एक्सपट्र्स देख रहे हैं.

क्यों सूख रहे हैं उत्तराखंड के जलस्त्रोत

एक्सपर्ट कहते हैं कि जल स्रोतों का सूखना का कारण अंधाधुंध पेड़ों का काटना और पहाड़ों में बड़े निर्माण कार्य है तो जंगलों में वॉटर बॉडी का न बनाना भी है. निर्देशक उत्तराखंड मौसम विज्ञान केंद्र के निर्देशक बिक्रम सिंह ने कहा कि लैंडयूज़ चेंज होता है या डिफोरेस्टेशन होता है, उसे दिक्कत जरूर होती है. पहाड़ों में रोड कंस्ट्रक्शन जिसमें ब्लास्टिंग होती है जो पानी के स्रोत है वह रास्ता बदल देता है. सोशल एक्टिविस्ट प्रदीप फस्वार्ण ने कहा कि इसका मुख्य कारण है कि पहले पहाड़ो में चाल खाल का निर्माण होता था जिनमे पानी रूकता था और अंडरग्राउंड वॉटर रिचार्ज हो जाता था. जंगलों में आग लगने की वजह से अभी काम पूरी तरह से बंद हो गया और स्रोत रिचार्ज नहीं हो पा रहे.

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पहाड़ों में रोड कंस्ट्रक्शन जिसमें ब्लास्टिंग की जाती है, उससे पानी के स्रोत का रास्ता बदल जाता है.

इस जलसंकट से उबरने के लिए सरकार का क्या प्लान

उत्तराखंड सरकार अब एक एक्शन प्लान ला रही है और एक कमेटी बना रही है. जिसे उत्तराखंड में पेयजल संकट को दूर किया जा सकेगा और जल्द ही जल स्रोतों को बचाने का काम भी शुरू किया जाएगा. लेकिन अगर सरकार पहले से ही एक्शन प्लान यह कमेटी लाती तो शायद उत्तराखंड में ये संकट ना खड़ा होता और नहीं लोगों को प्यास बुझाने के लिए धरने प्रदर्शन करने पड़ते. अब सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इस कमेटी की रिपोर्ट को लागू करें और जल्दी एक एक्शन प्लान तैयार करें ताकि आने वाले समय में पेयजल संकट से बचा जा सके.



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