ट्रंप का दांव काम आया, पनामा ने चीन को दिया झटका, क्या खुश होंगे अमेरिका के बॉस?
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पनामा नहर पर बीजिंग के प्रभाव को कम करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के दबाव के बाद पनामा ने औपचारिक रूप से चीन के बेल्ट और रोड बुनियादी ढांचे कार्यक्रम से बाहर निकल गया है. पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो ने बृहस्पतिवार को ये घोषणा की. मुलिनो ने संवाददाताओं से कहा कि बीजिंग में पनामा दूतावास ने इसके लिए चीन को योजना में अपनी भागीदारी को नवीनीकृत नहीं करने के फैसले के लिए आवश्यक 90 दिनों का नोटिस दिया था.
पहले पनामा दे रहा था चुनौती
इससे पहले पनामा ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पनामा नहर पर कब्जा करने की धमकी के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में शिकायत की थी. साथ ही उसने अंतरमहासागरीय जलमार्ग पर दो बंदरगाहों के हांगकांग से जुड़े संचालक की ऑडिट भी शुरू कर दी है. धमकी को लेकर पनामा सिटी की सरकार ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस को पत्र लिखा था और उसमें संयुक्त राष्ट्र चार्टर के एक आर्टिकल का हवाला दिया है, जो किसी भी सदस्य को किसी अन्य देश की क्षेत्रीय अखंडता या राजनीतिक स्वतंत्रता के विरुद्ध “बल की धमकी के इस्तेमाल” से रोक सकता है.
ट्रंप ने क्या कहा था
डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति पद की शपथ के बाद कहा था कि चीन ने पनामा नहर पर अघोषित रूप से कब्जा कर लिया है. डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि हमारी नौसेना और व्यवसाय के साथ बहुत अनुचित और अविवेकपूर्ण व्यवहार किया गया है. पनामा द्वारा ली जा रही फीस हास्यास्पद है. ऐसे में इस तरह की चीजों को तुरंत बंद किया जाना चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि यदि पनामा चैनल का “सुरक्षित, कुशल और विश्वसनीय संचालन” सुनिश्चित नहीं कर सका,तो हम मांग करेंगे कि पनामा नहर हमें पूरी तरह और बिना किसी सवाल के वापस कर दी जाए 1999 के अंत में संयुक्त राज्य अमेरिका ने इस नहर को पनामा को सौंप दिया था.
पनामा नहर क्यों महत्वपूर्ण
पनामा नहर को दुनिया की सबसे अनोखी नहर माना जाता है. ये नहर मध्य अमेरिका के पनामा में स्थित है. यह प्रशांत महासागर ओर अटलांटिक महासागर को जोड़ती है. इस नहर की लंबाई कुल 82 किलोमीटर की है. ये नहर अंतरराष्ट्रीय व्यापार के प्रमुख जलमार्गों में से एक है. इस नहर से हर साल 15 हजार से भी ज्यादा छोटे और बड़े जहाज गुजरते हैं.
अमेरिका के पनामा नहर का महत्व
इस नहर से होकर गुजरने की वजह से अमेरिका के पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच की दूरी 12,875 किलोमीटर तक घट जाती है. अगर यह नहर नहीं होती तो जहाजों को इतनी दूरी घूमकर तय करनी पड़ती. जिसे पूरा करने में अतिरिक्त ईंधन और समय भी लगता. इस नहर के बनने से अब जहाज इस दूरी को महज 10-12 घंट में ही पूरी कर लेते हैं.