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बहुमत की आड़ में देश चुनावी लोकतंत्र के बजाय ‘चुनावी तानाशाही’ में बदल रहा : शशि थरूर

उन्होंने कहा कि लेकिन अब देश को एक ऐसे वैकल्पिक नेतृत्व की जरूरत है, जो जनता जनार्दन की बात सुने, उसकी जरूरतों को समझे और उसकी समस्याओं का समधान निकाले .

पूर्व नौकरशाह, लेखक और कांग्रेस पार्टी के नेता शशि थरूर ने यहां 17वें जयपुर साहित्य महोत्सव में यूनिवर्सिटी ऑफ यॉर्क में ग्लोबल डेवलपमेंट पॉलिटिक्स के वरिष्ठ प्रोफेसर इंद्रजीत रॉय की पुस्तक पर आधारित सत्र ‘ऑडेसियस होप : हाउ टू सेव ए डेमोक्रेसी’ पर एक चर्चा में भाग लेते हुए केंद्र की भाजपा सरकार पर लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वायत्तता और उनके मूल ढांचे को ध्वस्त करने का भी आरोप लगाया.

आगामी आम चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के व्यक्तित्व का भारतीय जनता पार्टी को फायदा मिलने और इसके विपक्ष के लिए नुकसानदेह होने की आशंका पर तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस के सांसद थरूर ने कहा, ‘‘हमारे यहां संसदीय प्रणाली है, जिसे राष्ट्रपति द्वारा संचालित किया जाता है और हमें इस बारे में 2014 के ‘मैं नहीं, हम’ नारे को याद रखना चाहिए.

उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी का नाम लिए बिना कहा,” हमने पिछले दस साल में बहुत मैं, मैं सुना है. केवल एक व्यक्ति की बात होती रही है.” थरूर ने कहा कि इसका जवाब यह है कि एक भिन्न प्रकार का नेतृत्व तैयार किया जाए, जो केवल अपना ही बखान न करे, बल्कि पूरी विनम्रता के साथ आपकी बात सुने, आपके बारे में बात करे, आपकी जरूरतों को समझे और उनका समाधान करे.

श्रोताओं की ओर से यह सवाल भी पूछा गया कि ‘इंडिया’ गठबंधन मोदी के मुकाबले में किसी एक ऐसे नाम पर सहमति नहीं बना सका, जो उनका मुकाबला कर सके. श्रोताओं की ओर से वैकल्पिक नेतृत्व प्रदान करने की दिशा में ‘इंडिया’ गठबंधन की रणनीति संबंधी सवाल पर थरूर ने कहा, ”वोट दीजिए, और फिर हम इस सवाल का जवाब देंगे.”

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तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के क्रमश: पश्चिम बंगाल और पंजाब में अकेले चुनाव मैदान में उतरने संबंधी घोषणाओं के संदर्भ में यह पूछे जाने पर कि ‘इंडिया’ गठबंधन एकजुट क्यों नहीं हो रहा है? थरूर ने कहा, ”तथ्य की बात यह है कि इसमें कई सारी राजनीतिक पार्टियां शामिल हैं, कोई एक फार्मूला सभी पर लागू नहीं हो सकता, प्रत्येक राज्य की अपनी राजनीति और अपना राजनीतिक इतिहास है. इसलिए जब बात राष्ट्र की हो, तो आपको हैरानी नहीं होनी चाहिए. कुछ राज्य हैं, जहां हम एक-दूसरे से सहमत हैं, कुछ में सहमत नहीं हैं.”

न्यायपालिका, निर्वाचन आयोग, संसद और मीडिया जैसी संस्थाओं का क्षरण लोकतंत्र के भविष्य के लिए कितना गंभीर है, इस बारे में पूछे जाने पर थरूर ने कहा कि पिछले छह सात दशकों में पूर्ववर्ती सरकारों ने लोकतंत्र के सुचारू संचालन के लिए विभिन्न संस्थाओं को मजबूती प्रदान की थी, लेकिन आज इन संस्थाओं की स्वायत्तता को खत्म किया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि न केवल इन लोकतांत्रिक संस्थाओं की गरिमा का क्षरण हो रहा है, बल्कि इनसे जनता की आकांक्षाएं भी धूमिल पड़ रही हैं. उन्होंने कहा, ‘‘बहुमत की आड़ में देश चुनावी लोकतंत्र के बजाय चुनावी तानाशाही में बदल रहा है.”

थरूर ने प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो और अन्य जांच एजेंसियों का जिक्र करते हुए कहा कि केंद्र सरकार पूरी बेशर्मी के साथ इनका निहित स्वार्थों के लिए इस्तेमाल कर रही है. उन्होंने कहा कि आज लोकतंत्र के सामने ‘वास्तविक संकट’ है.

कांग्रेस नेता ने लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हो रहे प्रहार के संदर्भ में कहा कि कांग्रेस की अगुवाई वाली संप्रग सरकार के समय में संसद में 80 फीसदी विधेयकों को गहन जांच पड़ताल और विचार-विमर्श के लिए संसद की स्थायी समितियों को भेजा जाता था, लेकिन मोदी नीत सरकार के पहले कार्यकाल में यह 16 फीसदी और दूसरे कार्यकाल में तो और नीचे चला गया.

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उन्होंने कहा, ‘‘यह वह लोकतंत्र नहीं रह गया है, जिसकी बाबा साहेब भीमराव आम्बेडकर ने परिकल्पना की थी और निश्चित रूप से यह हम सब के लिए चिंतित होने वाली स्थिति है.”

एक से पांच फरवरी तक आयोजित किए जा रहे और ‘विश्व में सबसे बड़ा साहित्यिक उत्सव’ कहे जाने वाले जेएलएफ में पूरी दुनिया के श्रेष्ठ विचारक, लेखक और वक्ता भाग ले रहे हैं.

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को The Hindkeshariटीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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