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इस बार किधर जाएंगे दिल्ली के स्विंग वोटर्स? समझिए AAP और BJP का सियासी हिसाब-किताब


नई दिल्ली:

दिल्ली को लेकर एक चर्चा आम है. ऐसा क्यों होता है कि बीजेपी लोक सभा चुनाव में तो सभी सातों सीटें जीत लेती है. लेकिन विधानसभा चुनाव में हार जाती है. ऐसा उन मतदाताओं के कारण होता है जो लोक सभा और विधानसभा चुनाव में अलग-अलग ढंग से वोट डालते हैं. अगर ऐसा है तो उनके रुख बदलने से इस बार चुनाव परिणाम पर क्या असर होगा?

दिल्ली का मतदाता लोक सभा चुनाव में अलग और विधानसभा चुनाव में अलग ढंग से वोट डालता है. वैसे यह भी ट्रेंड रहा है कि दिल्ली में लोक सभा जीतने वाला ही केंद्र में सरकार बनाता है और एमसीडी जीतने वाला दिल्ली विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाता. इसके पीछे कारण यह है कि दिल्ली का मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा है जो चुनाव देख कर अपना फैसला करता है, पार्टी देख कर नहीं. इसे स्विंग वोटर कह सकते हैं. सरकार बनाने में इनकी बड़ी भूमिका रहती है.

2014 लोकसभा बनाम 2015 विधानसभा
बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में सातों सीटें जीतीं, उन्हें 46 फीसदी वोट मिले. वहीं, AAP का खाता नहीं खुला और उसे 33 फीसदी वोट मिले. कांग्रेस भी खाता खोलने में नाकाम रही और उसे 15 फीसदी वोट मिले. लेकिन कुछ महीनों बाद हुए 2015 के विधानसभा चुनाव में स्थिति पलट गई. AAP ने विधानसभा की 70 सीटों में से 67 सीटें जीतीं और उसे 54 फीसदी वोट मिले, जो कि लोकसभा चुनाव की तुलना में 21 फीसदी अधिक था. दूसरी ओर, बीजेपी का वोट प्रतिशत 14 फीसदी घट गया, जबकि कांग्रेस का वोट प्रतिशत 5 फीसदी कम हो गया.

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2019 लोकसभा बनाम 2020 विधानसभा
बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में सातों सीटें जीतीं और उसे 57 फीसदी वोट मिले. AAP का खाता नहीं खुला, उसे 18 फीसदी वोट मिले, जबकि कांग्रेस को 23 फीसदी वोट मिले. लेकिन कुछ महीनों बाद, 2020 के विधानसभा चुनाव में तस्वीर बदल गई. AAP ने विधानसभा की 70 में से 62 सीटें जीतीं और उसे 54 फीसदी वोट मिले, जो लोकसभा चुनाव के मुकाबले 36 फीसदी अधिक था. वहीं, बीजेपी का वोट प्रतिशत 18 फीसदी घट गया और कांग्रेस का वोट प्रतिशत 19 फीसदी कम हो गया.

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30 प्रतिशत स्विंग वोटर
राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि दिल्ली के वोटर्स लोकसभा चुनाव में एक पार्टी को और विधानसभा चुनाव में दूसरी पार्टी को वोट देते हैं और यह प्रवृत्ति कई अन्य राज्यों में भी देखी गई है. पंजाब, कर्नाटक, हिमाचल और तेलंगाना में भी ऐसा हुआ है. 2019 में लोकसभा चुनाव में बीजेपी या कांग्रेस को वोट दिया और विधानसभा में आम आदमी पार्टी को चुना. इसका मतलब यह है कि ये वोटर एक जगह स्थिर नहीं रहते. दिलचस्प बात यह है कि करीब 30 प्रतिशत वोटर वोटिंग के दौरान अपना रुख बदलते रहते हैं.

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स्विंग वोटर्स कर सकते हैं ‘खेला’
अमिताभ तिवारी ने कहा कि जो वोटर बीजेपी और आम आदमी पार्टी की ओर जा रहे हैं, वे मुख्य रूप से सामान्य वर्ग से हो सकते हैं. ये ऐसे वोटर हैं जो दिल्ली सरकार की योजनाओं के आधार पर आम आदमी पार्टी को वोट देते हैं, जबकि केंद्र की योजनाओं को लेकर बीजेपी को समर्थन करते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि आम आदमी पार्टी के पास कोर वोट्स काफी कम हैं. अगर स्विंग वोटर्स ने आम आदमी पार्टी को वोट नहीं दिया, तो पार्टी के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं.

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‘आप’ के खिलाफ तीन स्तरों पर एंटी इनकंबेंसी
अमिताभ तिवारी ने कहा कि जो पार्टी दिल्ली में लोकसभा या एमसीडी चुनाव जीतती है, वह अक्सर विधानसभा चुनाव में जीत नहीं पाती. उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली में कई मुद्दे हैं और पिछले 15 सालों तक एमसीडी में रहने के बावजूद बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा. इस बार आम आदमी पार्टी के सामने एक बड़ी चुनौती है. आम आदमी पार्टी के खिलाफ तीन स्तरों पर एंटी इनकंबेंसी है. पहला अरविंद केजरीवाल पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं. दूसरा, पार्टी के विधायकों के खिलाफ भी एंटी इनकंबेंसी है. पहले आम आदमी पार्टी बीजेपी पर काम नहीं करने देने का आरोप लगाती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है, क्योंकि एमसीडी में भी आम आदमी पार्टी ही है.

अमिताभ तिवारी ने कहा कि आम आदमी पार्टी के खिलाफ तीन स्तर पर एंटी इनकंबेंसी है. एक तो केजरीवाल पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे. वहीं, एक विधायकों के खिलाफ भी एंटी इनकंबेंसी है. पहले ‘आप’ बीजेपी पर काम नहीं करने देने का आरोप लगाती थी. लेकिन अब ऐसा नहीं है. एमसीडी में भी आप ही है. 


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