ईरान के उपराष्ट्रपति ने इजरायल और अमेरिका के साथ तनाव के बीच क्यों दिया इस्तीफा?
Iran’s Vice President resign : ईरान के उपराष्ट्रपति जावेद जरीफ ने आज अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया. वह पूर्व विदेश मंत्री भी रहे हैं और उन्हीं के कार्यकाल में ईरान ने 2015 में ऐतिहासिक परमाणु समझौते पर बातचीत की थी.एएफपी के अनुसार, सोमवार जावेद जरीफ ने बताया कि उन्होंने उपराष्ट्रपति के रूप में अपने नए पद से इस्तीफा दे दिया है. दो सप्ताह से भी कम समय पहले ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन ने उन्हें अपना डिप्टी चुना था और आज उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इससे पता चलता है कि ईरान की राजनीति में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है और मतभेद काफी बड़े स्तर पर हैं.
क्यों दिया इस्तीफा?
अपने इस्तीफे की घोषणा करते हुए जरीफ ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा, “मुझे शर्म आ रही है कि मैं कैबिनेट में उम्मीदवारों के चयन के लिए समिति की राय को लागू नहीं कर सका. मैं महिलाओं, युवाओं और दूसरे समूहों को नये मंत्रीमंडल में मौका नहीं दिला पाया.” राष्ट्रपति पेजेशकियन ने रविवार को ही अपनी कैबिनेट की घोषणा की है और इसमें सिर्फ एक महिला को शामिल किया गया है. कैबिनेट में दिवंगत राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी की सरकार के रूढ़िवादियों को भी शामिल किया गया है.
क्या शक करते थे राष्ट्रपति?
प्रस्तावित कैबिनेट की सूची की ईरान के सुधारवादी खेमे के लोगों ने आलोचना की है. जरीफ ने बताया कि उपराष्ट्रपति के रूप में नियुक्ति के बाद उन्हें भी दबाव का सामना करना पड़ा, क्योंकि उनके बच्चों के पास अमेरिकी नागरिकता है. अक्टूबर 2022 में बने एक ईरानी कानून के अनुसार, संवेदनशील नौकरियों और पदों पर ऐसे लोगों की नियुक्ति नहीं हो सकती, जिनके पास स्वयं, उनके बच्चों या उनके पति या पत्नी के पास दोहरी नागरिकता है. इसी के आधार पर उन पर दबाव बनाया जा रहा था.
जरीफ ने खुद बताया
जरीफ ने दबाव को और स्पष्ठ करते हुए लिखा, “मेरा संदेश… प्रिय डॉ. पेजेशकियान के प्रति अफसोस या निराशा या यथार्थवाद के विरोध का संकेत नहीं है; बल्कि इसका मतलब है कि रणनीतिक मामलों के लिए उपराष्ट्रपति के तौर पर मुझ पर संदेह करना मेरे लिए पीड़ादायक था.” उन्होंने कहा कि अब वह ईरान की घरेलू राजनीति पर कम ध्यान देंगे. जरीफ उदारवादी राष्ट्रपति हसन रूहानी की सरकार में 2013 से 2021 के बीच ईरान के शीर्ष राजनयिक थे. औपचारिक रूप से संयुक्त व्यापक कार्य योजना के रूप में जाने जाने वाले 2015 समझौते के लिए लंबी बातचीत के दौरान उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच पर ख्याति मिली. यह सौदा तीन साल बाद प्रभावी रूप से विफल हो गया, जब तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संयुक्त राज्य अमेरिका को समझौते से बाहर कर दिया और इस्लामी गणतंत्र ईरान पर फिर से गंभीर प्रतिबंध लगा दिए.