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महिला शोषण केस: मलयालम फिल्म डायरेक्टर को SC से झटका, पुलिस के सामने FIR का रास्ता साफ

मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं के शोषण मामले पर सुप्रीम कोर्ट.


नई दिल्ली:

मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं के शोषण मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court On Malayalam film industry women exploitation) ने फिल्म निदेशक साजिमोन परायिल को बड़ा झटका लगा है. उन्होंने दो एक्टर्स के साथ मिलकर सुप्रीम कोर्ट में केरल हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक याचिका दायर की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा और इस फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट से मलयालम फिल्म डायरेक्टर को झटका

जस्टिस हेमा कमेटी के सामने गवाहों के बयानों के आधार पर FIR दर्ज करने का केरल हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा गया है. इसके बाद अब पुलिस का गवाहों के बयान के आधार पर FIR दर्ज करने का रास्ता साफ हो गया है. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने सुनवाई की. उन्होंने अपने फैसले में कहा कि आपराधिक न्यायशास्त्र इसकी अनुमति देता है.

SC ने केरल HC के फैसले को रखा बरकरार

अदालत ने कहा कि एक बार संज्ञेय अपराध के बारे में सूचना मिलने के बाद, पुलिस अधिकारी कानून के तहत आगे बढ़ने के लिए बाध्य हैं. इसीलिए पुलिस की जांच करने की शक्तियों पर रोक लगाने का निर्देश नहीं दिया जा सकता. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला फिल्म निदेशक साजिमोन परायिल और दो एक्टरों की याचिका पर दिया है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर पिछले साल अक्टूबर में केरल हाईकोर्ट द्वारा जारी निर्देश को चुनौती दी गई थी. 

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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

  • पुलिस को कानून के अनुसार आगे बढ़ने से रोकने या रोकने का कोई निर्देश नहीं दिया जा सकता है
  •  केरल हाईकोर्ट जांच की निगरानी कर रहा है
  • उन व्यक्तियों के लिए यह खुला है जिन्होंने हेमा कमेटी के समक्ष गवाही दी है 
  • जिन्हें SIT द्वारा कथित रूप से परेशान किया गया है कि वे अपनी शिकायतें हाईकोर्ट में उठा सकते हैं 
  • अगर ऐसी कोई शिकायत उठाई जाती है, तो हाईकोर्ट इसकी जांच करेगा
  • हाईकोर्ट यह भी जांच करेगा कि क्या SIT ने  एकत्र की गई सामग्रियों के आधार पर FIR दर्ज की हैं या  उन्हें बिना किसी सामग्री के दर्ज किया गया है
  • हाई कोर्ट उन लोगों की शिकायतों पर भी गौर करेगा, जिन्होंने जस्टिस हेमा कमेटी के सामने गवाही दी थी कि उन्हें अनावश्यक रूप से परेशान नहीं किया गया या SIT के सामने गवाही देने के लिए मजबूर नहीं किया गया

पुलिस के पास कार्रवाई की छूट

बेंच ने कहा कि आपराधिक न्यायशास्त्र के तहत, एक बार सूचना प्राप्त होने या पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी के पास यह संदेह करने का कारण है कि कोई संज्ञेय अपराध किया गया है, तो वह धारा 176 BNSS के तहत निर्धारित कानून के अनुसार आगे बढ़ने के लिए बाध्य है. 


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