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दुनिया

हिज़्बुल्लाह की इज़रायल के खिलाफ जंग लेबनान को करेगी नुकसान…

जैसे-जैसे इज़रायल और हमास के बीच युद्ध तेज़ होता जा रहा है, इज़रायल की चार-चार मोर्चों पर एक साथ जंग की आशंकाएं बढ़ती जा रही हैं. इज़रायल दक्षिण में हमास के साथ लड़ रहा है, वहीं उत्तर में हिज़्बुल्लाह ने भी इज़रायली ज़मीन को रॉकेट हमलों से निशाना बनाया है. कुछ ऐसा ही सूरत-ए-हाल इज़रायल की सीरिया के साथ लगती गोलान पहाड़ियों का भी है, जहां इज़रायल को ईरान-समर्थित आतंकवादी गुटों से हमले की बड़ी आशंका है. इन्हीं आशंकाओं के कारण इज़रायल ने दमिश्क हवाई अड्डे पर अचानक हवाई हमले भी किए.

इज़रायल के ग़ाज़ा अभियान के गति पकड़ने के साथ ही इज़रायल और हिज़्बुल्लाह के बीच व्यापक युद्ध की सम्भावनाएं भी व्यापक रूप से बढ़ गई हैं. वैसे तो हिज़्बुल्लाह ने इज़रायल के उत्तरी क्षेत्रों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है, लेकिन अभी भी दोनों के बीच टकराव युद्ध की स्थिति में नहीं पहुंचा है. लेकिन हिज़्बुल्लाह और ईरान की तरफ से इज़रायल पर लेबनान मोर्चे से हमलों की धमकी लगातार दी जा रही है.

किन्तु इस बात पर अभी तक किसी ने ध्यान नहीं दिया है कि क्या लेबनान वास्तव में इस समय युद्ध करने की हालत में है. एक ऐसे समय में, जब लेबनान लगातार आर्थिक, सामजिक और राजनैतिक अस्थिरता के दौर से गुज़र रहा है, हिज़्बुल्लाह द्वारा लेबनान को इज़रायल युद्ध में झोंक देना निस्संदेह बेवकूफ़ी-भरा कदम होगा.

क्या है लेबनान की हालत…?

वर्ष 2019 से लेबनान कभी न ख़त्म होने वाली उथल-पुथल में फंसा हुआ है, जिसका समाधान लगभग असंभव है. लेबनान में खस्ताहाल आर्थिक स्थिति के ख़िलाफ़ जो प्रोटेस्ट शुरू हुए थे, वे नियमित अंतराल पर बार-बार देश की राजनैतिक अस्थिरता को प्रभावित करते रहे हैं. बेरुत बम धमाकों के बाद से देश में लगातार राजनैतिक अस्थिरता बनी हुई है. एक साल में 13 बार राष्ट्रपत्ति चुनने की कोशिश की जा चुकी है, किन्तु लेबनान के स्वार्थी सांसदों ने अब तक राष्ट्रपति चुनने में सफलता नहीं पाई है. इस समय लेबनान में राष्ट्रपति का पद खाली होने के साथ-साथ सरकार की कमान भी केयर-टेकर प्रधानमंत्री के हाथ में है. वर्ष 2022 में चुनाव होने के बाद से अभी तक लेबनानी संसद सदस्य एक नई स्थिर सरकार चुन पाने में असमर्थ साबित हुए हैं.

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देश के आंतरिक हालात भी अच्छे नहीं हैं. लेबनान के नागरिक देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लगातार आवाज उठाते रहे हैं. वर्तमान समय में  भ्रष्टाचार की जड़ें देश के राजनैतिक और आर्थिक परिदृश्य में बहुत नीचे तक जाती दिखाई देती है. यदि बात लेबनान की आर्थिक स्थिति की करें, तो स्पष्ट है कि लेबनान लगभग पतन के कगार पर है. देश की अर्थव्यवस्था इस समय धरातल पर गिरी नज़र आती है तथा व्यापक रूप से विदेशों (फ्रांस, यूरोपियन यूनियन तथा खाड़ी देशों) से आने वाली सहायता पर आश्रित है. देश में बेरोज़गारी व्यापक रूप से फैली हुई है. ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स के अनुसार वर्ष 2023 में देश की बेरोज़गारी दर 15.50 तक पहुंचने की संभावना है. ‘अल-जज़ीरा’ के अनुसार, लेबनान की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी में जीवन बसर कर रही है. स्टैटिस्टा (Statista) का अनुमान है कि लेबनान में वर्ष 2023 में बेरोज़गारी दर 48.91 प्रतिशत तक पहुंचने के आसार हैं. एक ऐसे समय में जब लेबनान के आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक हालात व्यापक रूप से ख़राब हैं, लेबनान को इज़रायल के साथ किसी भी तरह की सैनिक तकरार से बचना चाहिए. हिज़्बुल्लाह द्वारा उठाया गया एक भी गलत कदम लेबनान में फैली हुई अस्थिरता को और व्यापक बना देगा.

हिज़्बुल्लाह का इज़रायल के साथ युद्ध में जाना पश्चिम एशिया की भू-राजनीति को भी कतई अस्त-व्यस्त कर देगा. एक ऐसे समय में, जब पश्चिम एशिया में सीरिया, लीबिया, यमन तथा इराक जैसे देश अस्थिरता के दौर से गुज़र रहे हैं, इज़रायल के साथ हिज़्बुल्लाह के युद्ध का आगाज़ पश्चिम एशियाई क्षेत्र में एक और कॉन्फ़्लिक्ट ज़ोन बना देगा, जो अंतरराष्ट्रीय राजनीति के लिए भी उचित नहीं होगा.

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हिज़्बुल्लाह के इज़रायल से युद्ध के लेबनान पर क्या प्रभाव…?

एक ऐसे समय में, जब लेबनान आर्थिक और राजनैतिक समस्याएं झेल रहा है, इज़रायल के साथ लड़ाई का फ़ैसल कई समस्याएं खड़ी कर सकता है. इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि दोनों के बीच टकराव बढ़ता है, तो इसका लेबनान की पहले से बर्बाद अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ना लगभग तय है. इतना ही नहीं, हिज़्बुल्लाह का इज़रायल के साथ टकराव, सांप्रदायिक रूप से बंटे हुए लेबनान के विभिन राजनैतिक दलों के बीच भी पहले से पड़ी दरार को व्यापक रूप से बढ़ा सकता है. पहले ही कहा जा चुका है कि लेबनान आर्थिक रूप से विदेशों से आने वाली सहायता पर काफी हद तक निर्भर है, इसलिए हिज़्बुल्लाह का इज़रायल के साथ बढ़ने वाला टकराव लेबनान को फ्रांस तथा यूरोप से मिलने वाली सहायता को भी निस्संदेह प्रभावित करेगा, इसलिए लेबनान की वर्तमान स्थिति निस्संदेह हिज़्बुल्लाह को इज़रायल के साथ युद्ध में जाने की अनुमति बिल्कुल भी नहीं देती.

डॉ जतिन कुमार दिल्ली विश्वविद्यालय के रामलाल आनंद कॉलेज में असिस्‍टेंट प्रोफ़ेसर हैं, इज़रायल एवं लेबनान से जुड़े विषयों के जानकार हैं…

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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