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लोकसभा चुनाव: आरा से आरके सिंह का दावा मजबूत! बक्सर, पूर्वी चंपारण और सिवान से उम्मीदवार कौन?

आइए जानते हैं कि इन सीटों पर किसे मिल सकता है मौका और कौन हो सकता रिजेक्ट :-

आरा सीट (बिहार)

आरा लोकसभा सीट बिहार के भोजपुर ज़िले में पड़ता है. कभी ये इलाक़ा हरा भरा और घने जंगलों से भरपूर था. 1529 में मुग़ल बादशाह ने अफ़ग़ान शासकों को हराकर इस शहर का नाम शाहाबाद रखा था. यहां 44 जैन मंदिर हैं और ये अरण्य देवी के मंदिर के लिए भी जाना जाता है.

अगर यहां की राजनीति की बात करें तो 2019 में आरा से बीजेपी के आरके सिंह सांसद चुने गए थे, उन्होंने सीपीआईएमएल के राजू यादव को हराया था. पिछले लोकसभा चुनाव में यहां 10,80,684 वोट पड़े थे इसमें आरके सिंह को 5,66,480 वोट मिले, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी सीपीआईएमएल के राजू यादव को 4,19,195 वोट हासिल हुए, यानी आरके सिंह की 1,47,285 मतों से जीत हुई.

आरा लोकसभा सीट से टिकट के दावेदार

बीजेपी – 1. पूर्व गृह सचिव आर के सिंह ने रिटायर होने के बाद आरा से 2014 में चुनाव लड़ा और जेडीयू की मीना सिंह को हराया. फिर 2019 में दोबारा ये सीट जीती और एक बार फिर केंद्रीय मंत्री के नाम पर ही मुहर लगने के आसार हैं. हालांकि अभी ये बात कंफ़र्म नहीं हुई है. उनका टिकट आरएसी में ही है.

बीजेपी – 2. मीना सिंह पिछले ही साल जेडीयू छोड़कर बीजेपी में शामिल हुई थीं. दस साल पहले आरा से ही वो बीजेपी के आरके सिंह से हार गई थीं. वो अपने नाम की दावेदारी इस क्षेत्र से कर रही हैं. हालांकि इनका नाम अभी वेटिंग लिस्ट में ही है.

आरा से विपक्ष के उम्मीदवार कौन? 

सीपीआई माले – 1. राजू यादव सीपीआई माले के जुझारु नेता हैं, वो कई बार विधानसभा चुनाव भी लड़े, लेकिन सफलता नहीं मिली. वो 2019 में आरा से माले से महागठबंधन के लोकसभा उम्मीदवार थे.

सीपीआई माले – 2. सुदामा प्रसाद पिछले दो बार से सीपीआई माले की तरफ से तरारी विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं और लोकसभा उम्मीदवार बनने के इच्छुक हैं. महागठबंधन इन्हें भी आरा से उम्मीदवार बना सकता है.

आरजेडी – वैसे अगर महागठबंधन ने ये सीट सीपीआई माले को नहीं दी तो राष्ट्रीय जनता दल की कांति सिंह भी यहां से उम्मीदवार हो सकती हैं. वो बीस साल पहले 2004 में यहां से सांसद रह चुकी हैं.

बक्सर सीट (बिहार)

भोजपुर में ही चुनाव क्षेत्र है बक्सर… जिसका नाम बक्सर के युद्ध की वजह से इतिहास की किताबों में दर्ज है, यहां 1764 में ईस्ट इंडिया कंपनी की फ़ौज मुग़लों, नवाबों और बनारस के राजा की सेनाओं से टकराई थी. इसमें भारतीय फ़ौजों की हार हुई थी. 

2019 में बीजेपी के अश्विनी कुमार चौबे बक्सर से सांसद चुने गए थे, उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल के जगदानंद सिंह को हराया था. 2019 में यहां 9,86,861 वोट पड़े थे. इसमें अश्विनी कुमार चौबे को 4,73,053 वोट मिले थे, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी जगदानंद सिंह को 3,55,444 वोट मिले थे, यानी अश्विनी चौबे की 1,17,609 मतों से जीत हुई थी.

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बक्सर से उम्मीदवार कौन? 

बीजेपी – 1. टिकट के दावेदारों में सबसे पहला नाम मौजूदा सांसद अश्विनी कुमार चौबे का है. चौबे बिहार बीजेपी के बड़े नेता हैं, लगातार पांच बार विधायक रह चुके हैं और फिलहाल केंद्रीय राज्य मंत्री हैं. आसार हैं कि इस बार भी बक्सर से इन्हें ही टिकट मिलेगा, लेकिन सीट कन्फ़र्म नहीं हुई है. अभी आरएसी में ही इनका नाम है.

बीजेपी – 2. प्रदीप दुबे भारतीय जनता पार्टी के टिकट से बक्सर विधान सभा में अपनी किस्मत आजमा चुके हैं, बहुत कम अंतर से हार हुई थी. फ़िलहाल ये पार्टी में राष्ट्रीय कार्यक्रम समिति के सदस्य हैं. इनका नाम वेटिंग लिस्ट में ही है.

बीजेपी – 3. असम कैडर के आईपीएस आनंद मिश्रा बक्सर में अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत करना चाह रहे हैं. आनंद मिश्रा बक्सर के सिघनपुरा गांव के निवासी हैं, इसलिए वो ज़ोर लगा रहे हैं कि इसी सीट से उन्हें बीजेपी टिकट दे.

बीजेपी – 4. बक्सर निवासी डॉ राजेश मिश्रा हृदय रोग विशेषज्ञ के रूप में दिल्ली में काफी समय तक नाम कमाने के बाद बक्सर में करीब 2 साल से आम जनता से जुड़े रहे और अब भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के तौर टिकट की कोशिश कर रहे हैं.

बीजेपी – 5. चिकित्सा प्रकोष्ट भारतीय जनता पार्टी प्रदेश से जुड़े रहे मनोज मिश्रा भी लगातार जनता से अपना सरोकार बढ़ाने में लगे हैं और भारतीय जनता पार्टी से अपना दावा ठोकने के प्रयास में जुटे हैं.

विपक्ष किस पर खेलेगा दांव?

कांग्रेस में जिस नाम की सबसे ज़्यादा चर्चा है वो है निर्मल वर्मा, प्रदेश कांग्रेस कमिटी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले निर्मल वर्मा को इस सीट से कांग्रेस अपना उमीदवार बनाना चाहती है.

महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल को सीट दी गई तो सुधाकर सिंह को उम्मीदवार बनाया जा सकता है. इनके पिता जगदानंद नीतीश कुमार सरकार में कृषि मंत्री रहे थे, इनकी किसान वोट पर गहरी पकड़ है.

इसके अलावा सुगबुगाहट है कि बहुजन समाज पार्टी भी मैदान में उतरेगी और उसके प्रदेश महासचिव अनिल सिंह के यहां से लड़ने की ख़बर है. अनिल सिंह पहले भी बक्सर से बसपा से लड़ चुके हैं.

पूर्वी चंपारण सीट (बिहार)

मोतिहारी पूर्वी चंपारण का मुख्यालय है और नेपाल से सटा हुआ है. महात्मा गांधी ने अपने राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत चंपारण से ही की थी. मोतीहारी में मोतीझील शहर को दो हिस्सों में बांटती है. 

2019 में बीजेपी के राधा मोहन सिंह पूर्वी चंपारण से सांसद चुने गए थे, उन्होंने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के आकाश कुमार सिंह को हराया था. 2019 में यहां 9,99,400 वोट पड़े थे. इसमें राधा मोहन सिंह को 5,77,787 वोट मिले, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी आकाश कुमार सिंह को 2,84,139 वोट मिले थे, राधा मोहन सिंह की 2,93,648 मतों से जीत हुई था.

पूर्वी चंपारण से उम्मीदवार कौन? 

बीजेपी – 1. मौजूदा सांसद राधामोहन सिंह केंद्रीय कृषि मंत्री भी रह चुके हैं, इन्होंने सबसे पहले 1989 में बीजेपी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव  लड़ा था, तबसे लेकर वो नौ बार लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं और छह बार जीते हैं. पूर्वी चंपारण को बीजेपी का गढ़ बनाने में इनका अहम योगदान है. राधामोहन सिंह बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुके हैं. इनकी दसवीं बार अपने इलाक़े से टिकट मिलने की मज़बूत दावेदारी है, लेकिन उम्र को लेकर राधामोहन सिंह का नाम आरएसी में है.

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बीजेपी – 2. एक और नाम बीजेपी में तेज़ी से उभरा है, डॉक्टर आशुतोष शरण का. आशुतोष शरण आईएमए अध्यक्ष हैं, मशहूर डॉक्टर हैं और उनकी शोहरत पूरे उत्तर बिहार में फैली हुई है. राजनीतिक गलियारों में ये क़यास लगाए जा रहे हैं कि अगर राधामोहन सिंह चुनाव नहीं लड़े तो डॉक्टर आशुतोष शरण को चुनाव लड़ाया जा सकता है, ये राधा मोहन सिंह के विश्वासपात्र भी माने जाते हैं.

बीजेपी – 3. यहां से कल्याणपुर और केसरिया के पूर्व विधायक सचिंद्र प्रसाद सिंह का नाम भी बीजेपी ख़ेमे से लिया जा रहा है. पिछली बार 2020 में हालांकि वो आरजेडी से विधायक का चुनाव महज़ 500 वोट के अंतर से हार गए थे, लेकिन इस बार उनका नाम पूर्वी चंपारण से वेटिंग लिस्ट में है.

बीजेपी – 4. एक और नाम है अखिलेश सिंह का जो बिहार बीजेपी के प्रवक्ता रह चुके हैं. विद्यार्थी परिषद से राजनीतिक जीवन की शुरुआत करके पार्टी के कई सांगठनिक पदों पर रहे. इनका नाम भी वेटिंग लिस्ट में है.

विपक्ष का दांव किस पर?

आरजेडी – 1. विनोद श्रीवास्तव, आरजेडी के बिहार उपाध्यक्ष हैं और लालू परिवार के नज़दीकी माने जाते हैं. विनोद श्रीवास्तव 2014 में यहां से राधामोहन सिंह के ख़िलाफ़ चुनाव लड़े थे और हार गए थे, 2015 में विधानसभा चुनाव भी लड़े और हार गए. इस क्षेत्र में कायस्थ समाज के काफ़ी वोट हैं और उसके बल पर एक बार फिर विनोद श्रीवास्तव को टिकट मिल सकता है.

आरजेडी – 2. मनोज यादव कल्याणपुर के मौजूदा विधायक हैं, राजद के संभावित उम्मीदवारों में इनका नाम भी ज़ोर-शोर से लिया जा रहा है. इन्होंने 2020 में भाजपा के मज़बूत विधायक सचिंद्र सिंह को हराया था. मनोज यादव के पिता यमुना यादव भी कल्याणपुर से विधायक रह चुके हैं. मनोज यादव का नाम फ़िलहाल वेटिंग लिस्ट में है.

आरजेडी – 3. केसरिया के पूर्व विधायक राजेश कुशवाहा जो एक डॉक्टर भी हैं. उनका नाम भी पूर्वी चंपारण से लिया जा हा है.

सिवान सीट (बिहार)

अब बात करते हैं बिहार के सिवान की. भोजपुरी में सिवान का मतलब होता है किसी स्थान की सीमा और सिवान नेपाल की दक्षिणी सीमा से मिला हुआ है. भारत के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद इसी इलाक़े के थे और 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भी इस क्षेत्र की अहम भूमिका रही थी.

2019 में जेडीयू की कविता सिंह सिवान से सांसद चुनी गईं थी, उन्होंने आरजेडी की हिना शहाब को हराया था. 2019 में यहां 9,84,810 वोट पड़े थे, इसमें कविता सिंह को 4,48,473 वोट मिले, जबकि उनकी निकटतम प्रतिद्वंदी हिना शबाब को 3,31,515 वोट मिले थे. कविता सिंह 1,16,958 वोटों से जीती थीं.

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सिवान से एनडीए का उम्मीदवार कौन?

जेडीयू – 1. मौजूदा सांसद कविता सिंह को जेडीयू यहां से अपना उम्मीदवार बना सकता है. कविता सिंह दो बार विधायक भी रह चुकी हैं, लेकिन बिहार के बाहुबली अजय कुमार सिंह की पत्नी कविता सिंह का नाम अभी तक पक्का नहीं हुआ है. फ़िलहाल वो वेटिंग लिस्ट में ही हैं.

जेडीयू – 2. जनता दल यूनाइटेड से और भी नाम चल रहे हैं, जैसे महाराजगंज के पूर्व विधायक हेम नारायण साह का. 2015 से लेकर 2020 तक विधायक रहे हेम नारायण साह को भी पार्टी सिवान से खड़ा कर सकती है.

जेडीयू – 3. महिला नेता संगीता यादव जो सिवान की ज़िला परिषद की दूसरी बार अध्यक्ष बनी हैं, उनके नाम पर भी पार्टी मुहर लगा सकती है और वो सिवान से जेडीयू की उम्मीदवार बन सकती हैं. 

जेडीयू – 4. कुचायकोट के मौजूदा विधायक अमरेन्द्र कुमार उर्फ़ पप्पू पाण्डेय भी यहां के लोकप्रिय नेता हैं और उनके नाम की भी पार्टी में चर्चा हो रही है.

जेडीयू – 5. वैसे एक और नाम चल रहा है. राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व विधायक रमेश सिंह कुशवाहा को भी गठबंधन से टिकट मिल सकता है.

महागठबंधन से प्रत्याशी कौन?

आरजेडी – 1. सबसे पहला नाम है आरजेडी की हिना शहाब का जो पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन की पत्नी हैं और पिछली बार इसी सीट पर कविता सिंह से टक्कर ली थी, लेकिन हार गई थीं. इस बार फिर गठबंधन उनके नाम पर सहमत हो सकता है.

आरजेडी – 1. अवध बिहारी चौधरी पिछले महीने तक बिहार विधान सभा के अध्यक्ष थे. वो सिवान सदर से विधायक हैं और पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं. लोकसभा के उम्मीदवार के तौर पर आरजेडी इन्हें सिवान से अपना उम्मीदवार बना सकती है.

सीपीआई – अमरनाथ यादव सीपीआई माले के दरौली से पूर्व विधायक हैं और इलाक़े से विपक्ष के नेताओं में इनका नाम काफ़ी जाना माना है. महागठबंधन इन पर भी अपने उम्मीदवार के तौर पर दांव लगा सकता है.

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