"पीएम मोदी का जाति दृष्टिकोण DMK की राजनीति को पुराना बना देता है": विचारक एस गुरुमूर्ति
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फाइल फोटो
देश की राजनीति में जाति (Caste) का मुद्दा कितना बड़ा ये किसी है छिपा नहीं है. हर दल जातिगत वोट को साधने के लिए क्या कुछ नहीं करता है. देश में जब लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) बेहद नजदीक है, ऐसे में जाति की चर्चा होना तो लाजिमी है. कई लोग बीजेपी (BJP) को ब्राह्मण बनिया की पार्टी के रूप में देखते हैं. वहीं तमिलनाडु में भी जाति का मुद्दा काफी मायने रखता है. इसी मुद्दे पर The Hindkeshariके एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया ने मशहूर विचारक एस गुरुमूर्ति से बात की. जिन्होंने इस मुद्दे पर बात करते हुए कहा कि अगर आप देखेंगे तो जाति सिर्फ एक सामाजिक संस्था नहीं है, कई लोगों ने इसे गलत समझा, यह सांस्कृतिक संस्था है. इसका एक भगवान है, इसमें जीवन जीने का एक तरीका है, शादी का जश्न मनाने का इसका अपना एक तरीका है. इसका भी अपना साहित्य है. लोग यह नहीं जानते.
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इसी के साथ एस गुरुमूर्ति ने कहा कि राम जन्मभूमि आंदोलन और बाद में सेनगोल पर बताया कि जाति केवल राजनीतिक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली सामाजिक संस्था नहीं है, यह सिर्फ एक और दूसरे के खिलाफ स्थापित की जाने वाली सामाजिक संस्था नहीं है. जाति तो असल में एक बड़ी पहचान है. जो अत्यधिक आध्यात्मिक और अत्यधिक धार्मिक और सांस्कृतिक है, ये एक प्रकार का जाति का गठबंधन है. डीएमके ने उनके खिलाफ लड़ाई लड़ी, वह जाति को उसकी सांस्कृतिक जड़ों से अलग रखना चाहती थी. उनका कहना है कि जाति सिर्फ एक सामाजिक नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक संरचना है, जब देश के पीएम इसे समझ चुके हैं. जाति के इस पहलू और उनके दृष्टिकोण ने डीएमके की राजनीति को पुराना बना दिया है. इसलिए बीजेपी का उदय हो रहा है.
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