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शिवसेना बनाम शिवसेना मामला : SC ने विधानसभा अध्यक्ष के फैसले पर उठाए सवाल, किया मूल रिकॉर्ड तलब

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना बनाम शिवसेना मामले में महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष के फैसले पर सवाल उठाए हैं. कोर्ट ने स्पीकर के कार्यालय से उद्धव ठाकरे समूह की अयोग्यता याचिका से संबंधित मूल रिकॉर्ड तलब किया है. साथ ही उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट से एक अप्रैल या उससे पहले उद्धव ठाकरे गुट की याचिका पर जवाब देने को कहा है.

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सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर कार्यालय से अयोग्यता को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई का ऑरिजिनल रिकॉर्ड तलब किया है. साथ ही कोर्ट ने इस मामले पर अगली सुनवाई अप्रैल के दूसरे हफ्ते में तय की है.

शिंदे गुट के वकील हरीश साल्वे ने हाजिरी रजिस्टर के साथ प्रतिनिधि सभा में अध्यक्ष और कार्यकारिणी के चुनाव का भी हवाला देते हुए कहा कि इन सभी मुद्दों पर निर्वाचन आयोग के सामने भी चर्चा हो चुकी है. 

उन्होंने कहा कि प्रस्तुत दस्तावेज़, जून 2022 के प्रस्ताव, पर चार व्यक्तियों द्वारा हस्ताक्षर किए जाने की बात कही गई है, जबकि उनमें से कुछ बैठक में शामिल नहीं हुए. UT गुट द्वारा जाली दस्तावेज दिखाए गए, उन्होंने धोखाधड़ी की. याचिकाकर्ता मनगढ़ंत दस्तावेज पेश करने के बाद ‘कानून के सवाल’ उठा रहे हैं.

उद्धव बनाम शिंदे शिवसेना विवाद मामले में उद्धव ठाकरे गुट की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि समय इस मुद्दे का सार है. अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होंगे. स्पीकर विधायी बहुमत पर गए. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पता चला कि दलबदल के बाद विधायी बहुमत को गिना नहीं जा सकता.

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कपिल सिब्बल ने कहा कि नोटिस जारी हो चुका है, लेकिन जवाब अभी तक नहीं आया है. सिब्बल ने कई पुराने मामलों का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि ये गंभीर और संवेदनशील मामला है. कोर्ट में इस मामले पर जल्द निर्णय आना चाहिए. स्पीकर स्थापित संवैधानिक और कानूनी व्यवस्थाओं से इतर जाकर मनमानी कर रहे हैं.

पिछली सुनवाई में उद्धव गुट के नेता सुनील प्रभु की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने एकनाथ शिंदे समेत 39 अन्य विधायकों को नोटिस जारी किया था. महाराष्ट्र विधानसभा स्पीकर के फैसले के खिलाफ उद्धव ठाकरे गुट का कहना है कि विधानमंडल में बहुमत के आधार पर शिंदे ग्रुप को ही असल शिवसेना करार देना स्पीकर का फैसला ग़लत है. ये सुप्रीम कोर्ट के फैसले में दी गई उस व्यवस्था के खिलाफ है, जिसमे कोर्ट ने कहा था कि महज विधानमंडल के संख्या बल के आधार पर स्पीकर को इस नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहिए. 

 

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