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ये न्याय का मखौल… इन 10 दलीलों के साथ सुप्रीम कोर्ट ने मनीष सिसोदिया को दी जमानत

- बिना सजा जेल में नहीं रख सकते: मनीष सिसोदिया ने सीबीआई मामले में 13 और ईडी मामले में निचली अदालत में 14 अर्जियां दाखिल की थीं. उनको लंबे समय से जेल में रखा गया. बिना सजा के किसी को इतने लंबे समय तक जेल में नहीं रखा जा सकता.
- ये मामला सांप- सीढी के खेल जैसा: जब जमानत पर दूसरा आदेश सुप्रीम कोर्ट ने पास किया तो पहले आदेश के सात महीने चार दिन हो चुके थे. किसी भी नागरिक को पिलर टू पोस्ट भागने के लिए नहीं कहा जा सकता. ये मामला सांप- सीढी जैसा खेल बन गया है.
- ED की आपत्ति को मानना नहीं चाहते: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हम ED की प्रारंभिक आपत्ति को मानने के इच्छुक नहीं कि ये याचिका सुनवाई योग्य नहीं.”
- अदालतों के चक्कर लगवाए: मनीष सिसोदिया को निचली अदालत फिर हाई कोर्ट जाने और फिर सुप्रीम कोर्ट आने को कहा. उन्होंने दोनों अदालत में याचिका दाखिल की थी. पहले आदेश के मुताबिक 6 से 8 महीने की समय सीमा बीत गई है.
- ट्रिपल टेस्ट आड़े नहीं आएगा: देरी के आधार पर जमनात की बात हमने पिछले साल अक्टूबर के आदेश में कही थी. इस मामले में ट्रिपल टेस्ट आड़े नहीं आएगा, क्योंकि यहां मामला ट्रॉयल के शुरू होने में देरी को लेकर है.
- ये न्याय का मखौल होगा: अगर सिसोदिया को जमानत के लिए फिर से ट्रायल कोर्ट जाने को कहा जाता है तो ये न्याय का मखौल उड़ाना होगा. निचली अदालत ने राइट टू स्पीडी ट्रॉयल को अनदेखा दिया और मेरिट के आधार पर जमानत रद्द नहीं की थी.
- ट्रायल खत्म नहीं होगा: जमानत एक नियम है, जेल एक अपवाद है. हमने लंबे समय तक कैद रखे जाने पर विचार किया. ट्रायल निकट भविष्य में खत्म नहीं होगा.
- इधर-उधर भागने पर मजबूर नहीं कर सकते: अपीलकर्ता को ट्रायल कोर्ट में वापस भेजना उसके साथ सांप-सीढ़ी का खेल खेलने जैसा होगा. किसी व्यक्ति को एक जगह से दूसरी जगह भागने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.
- सुनवाई में देरी का कोई सबूत नहीं: आरोपी को त्वरित सुनवाई का अधिकार है. ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे पता चले कि याचिकाकर्ता ने सुनवाई में देरी की.
- स्वतंत्रता का अधिकार हर दिन जरूरी: दिल्ली सीएम ऑफिस में सिसोदिया को जाने से रोकने की ASG की अपील पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि इसकी परमिशन नहीं दी जा सकती, क्यों कि स्वतंत्रता का अधिकार हर दिन मायने रखता है.